सत्य खबर चंडीगढ़ (संदीप चौधरी) – केवल जाट, जट सिख और राजपूत जाति के लोगों को ही राष्ट्रपति के अंगरक्षक के तौर पर नियुक्ति देने से जुड़ी याचिका पर पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखा। केंद्र सरकार ने कहा कि राष्ट्रपति के अंगरक्षकों की अलग से भर्ती नहीं होती। आर्मी से ही कार्य के अनुरूप टुकड़ियों को बांटा जाता है और कार्य के अनुरूप उनको नियुक्ति दी जाती हैं। ऐसे में ये कहना कि राष्ट्रपति के अंगरक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया में जातिवाद है, पूरी तरह से गलत है।
कोर्ट में दाखिल की गई थी याचिका
छात्र सौरव यादव ने एडवोकेट हिमांशु राज के माध्यम से हाईकोर्ट में जनहित याचिका दखिल की थी। याचिका में कहा गया कि हमारे देश के संविधान में प्रावधान है कि हर नागरिक को बराबरी का हक दिया जाएगा और जाति, रंग, क्षेत्र आदि के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं होगा। इस सब के बावजूद देश के संविधान का सबसे बड़ा पद जो राष्ट्रपति का है, उनकी सुरक्षा के लिए गार्ड की नियुक्ति में ही जाति के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है। याची ने कहा कि आजादी के बाद से लेकर आज तक राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए केवल जाट, जट सिख और राजपूत जाति के लोगों को ही रखा जाता है। ऐसा करना सीधे तौर पर संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है।
इस दलील के साथ उन्होंने डायरेक्टर आर्मी रिक्रूटमेंट ऑफिस द्वारा हाल ही में की जा रही नियुक्ति की प्रक्रिया को रद्द करने की अपील की थी। केंद्र सरकार ने कहा कि नियुक्ति करते हुए कास्ट नहीं बल्कि क्लास देखी जाती है। कद और अन्य मानक पूरे करने वालों को इस दस्ते में स्थान मिल सकता है और जाति की कोई शर्त नहीं है।
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