सत्यखबर जाखल (दीपक) – गांव म्योंद कलां “मेरा गांव स्वच्छ एवं हरा भरा हरियाणा” मिशन के तहत ग्राम पंचायत अपने काम को अंजाम दे रही है। रंगोई नाले के तट पर बसे गांव म्योंद कला के लगभग 70 घरों के सैंकड़ों लोग विदेशों में रह रहे है। इसके बावजूद गांव में मूलभूत सुविधाएं न मात्र थी। परंतु अब इस गांव का भाग्य भी बदल चुका है। जो विकास कार्य यहां जो 30 साल में नहीं हुआ था वो तीन साल में ही हो गया। जी हां, गांव में चमचमाती सड़कें, गांव में सीसीटीवी कैमरे, गांव में लघु सचिवालय, गांव में एक सुंदर पार्क, गांव के एक छोर से प्रवेश करते समय “शहीद ए आजम भगत सिंह, शहीद उदम सिंह” की प्रतिमा युवाओं में जोश भरती हुई। वहीं जाखल से आते समय गांव में प्रवेश करते ही स्वतंत्रता सेनानी की याद में बना तोरण द्वार, गांव में डाकघर, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, गांव में सरकारी हिसार-सिरसा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, बीएसएनल दूरसंचार एक्सचेंज, सीनियर सेकेंडरी हाई स्कूल, नसों जैसी प्रवृत्ति से दूर करने के लिए युवाओं के लिए गांव में जिम की व्यवस्था सहित जाखल-भूना मार्ग पर बना बाजार जहां पर आपको जरूरत की हर चीज खरीदने को मिल जाती है। यह सब नजारा देखने की ललक गांव के लोगों के मन में थी। यहां के संघर्षशील बुजुर्गों को गांव की यह तस्वीर सिर्फ सपनों में ही दिखती रही। जो आज विकास की गंगा बहने से सपनों को हकीकत में बदल रही है।
गांव म्योंद कलां से रोजगार के लिए विदेश जाकर बसे सैंकड़ो लोगों का अपने गांव के प्रति लगाव जगजाहिर है, पर वे भले ही सरकार या पंचायत बनाने में दिलचस्पी नहीं लेते। परंतु यह एनआरआई लोग समय-समय पर अपने गांव के विकास के लिए वित्तीय सहयोग भी देते हैं। ताकि उनके ख्वाबों का गांव बन सके। गांव की एक विशेषता यह भी है कि यहां के लोग दुनिया के किसी भी कोने में रहते हो। सोशल मीडिया, व्हाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर एवं वेबसाइट के जरिए ये लोग एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं।
जिला फतेहाबाद के खंड जाखल में स्थित गांव म्योंद कला गांव का नाम राजा बोगा सिंह के नाम पर पड़ा। बुजुर्ग बताते हैं की राजा बोगा सिंह के नाम से म्योंद बोगावाली, वही राजा की बहन के नाम से म्योंद बेगमवाली पढ़ा जो आज भी जमीन इत्यादि के कागजातों पर यही नाम चल रहे हैं परंतु हरियाणा की स्थापना के बाद म्योंद बोगावाली से म्योंद कलां नाम से जाना जाने लगा, गांव से लगभग 70 घरों के सैंकड़ों लोग विदेशों में रहे है। इसके बावजूद गांव में मूलभूत सुविधाएं न मात्र थी। परंतु अब इस गांव का भाग्य भी बदल चुका है। गांव म्योंद कलां के लोग मात्र पैसे को ही समृद्ध नहीं मानते हैं, लेकिन सर्वांगी विकास को सच्ची समृद्धि मानते हैं। इसलिए यहां पर आपस में भाईचारा जातिवाद धर्म संप्रदाय से दूर रहकर लोग एक दूसरे से मिलनसार हैं। गांववालों ने अपने स्तर पर गांव में एक सुंदर एवं विशाल गुरुद्वारा, सुंदर चर्च, रविदास मंदिर माता का मंदिर इत्यादि धार्मिक स्थान बनाए हुए हैं। जिनमें हर वर्ष अपने अपने धर्मानुसार विशाल कार्यक्रम होते हैं जिसमें सभी ग्रामीण लोग भाग लेते हैं।
इस गांव के लोग ज्यादातर खेती पर निर्भर है। यहां के किसान बहुत मेहनती है। जिससे यहां की एक विशेषता यह भी है कि यहां के जमीदार अत्याधुनिक तरीके से आलू, भिंडी, टमाटर व खीरा सहित अन्य सब्जियां अपनी जमीन में उगाते हैं जिसका मंडीकरण मुंबई, लुधियाना, जालंधर, दिल्ली, शिमला जैसे बड़े शहरों में किया जाता है। सब्जी के सीजन के उपरांत अपने खेतों में हरा चारा उगा लेते हैं जिसको सस्ते दाम पर स्थानीय पशुपालकों व आसपास लगती मंडियों की टाल इत्यादि पर बेच दी जाती है। जिससे यहां के किसान से लेकर मजदूर तक सभी लोग भी खुशहाल हैं।
गांव की समृद्धि की बात के लिए ग्रामवासी युवा आज भी अपने पूर्वजों का आभार मानना नहीं भूलते हैं, क्योंकि भले ही उन्होंने अपने लिए कोई लग्जरी वस्तुएं नहीं जुटाईं, लेकिन अच्छे शिक्षा संस्थान, अस्पताल, सड़कें जैसी अनेक सुविधाओं को आने वाली पीढ़ी के लिए बनाया और आज उनकी पीढ़ी गांव में इन सभी सुविधाओं में बढ़ोतरी करने के लिए प्रयास कर रही है। आज इस गांव का जो विकास हुआ है इसमें मुख्य भूमिका यहां की ग्राम पंचायतों की है जो पढ़ी लिखी रही है इसके अलावा समाजसेवी लोगों की है जिनकी आज भी अपने समाज और गांव के लिए भावनाएं जिंदा है।
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