Haryana
किसान बिजाई के 21 दिन बाद सिंचाई व 35 दिन बाद खरपतवार नाशक स्प्रे करें – महेंद्र संधू
सत्यखबर निसिंग। (सोहन पोरिया) – क्षेत्र में गेंहू बिजाई का कार्य लक्ष्य के नजदीक है। 20 अक्तूबर के आसपास अगेती गेहूं की बिजाई करने वाले किसान सिंचाई में जुटे है। सिंचाई के साथ पौधों में फुटाव के लिए किसान पहली यूरिया खाद भी डाल रहे है। ताकि भरपूर फुटाव से फसल की बंपर पैदावार ली […]
सत्यखबर निसिंग। (सोहन पोरिया) – क्षेत्र में गेंहू बिजाई का कार्य लक्ष्य के नजदीक है। 20 अक्तूबर के आसपास अगेती गेहूं की बिजाई करने वाले किसान सिंचाई में जुटे है। सिंचाई के साथ पौधों में फुटाव के लिए किसान पहली यूरिया खाद भी डाल रहे है। ताकि भरपूर फुटाव से फसल की बंपर पैदावार ली जा सके। लेकिन जिन किसानों ने नवंबर के पहले सप्ताह में गेंहू की बिजाई की थी। उन फसलों में सिंचाई का उचित समय है। बीएओ डा० महेंद्र सिंह संधू ने बताया कि किसान बिजाई के 21 दिन बाद फसल की पहली सिंचाई करें। देरी से सिंचाई करने पर पौधों की जड़ों में दीमक, सूंडी लगने से नुकसान होता है। सिंचाई के बिना फसल में उर्वरक नही डाले जा सकते। जिस कारण गेंहू में कम फुटाव होने से पैदावार प्रभावित होती है। उन्होंने किसानों को बिजाई से 21 दिन बाद फसल की सिंचाई व बिजाई से 35 दिन बाद खरपतवार नाशक दवा का छिडक़ाव करने की सलाह दी है।
सिंचाई के बाद डाले गेंहू में उर्वरक
एडीओ डा. राधेश्याम गुप्ता ने बताया कि कुछ किसान गेंहू की सिंचाई से पूर्व ही उसमें यूरिया खाद डाल देते है। जो लीच डाउन होकर पानी के साथ जमीन में समा जाता है। जिसका किसान को पूरा फायदा नही मिल पाता। उन्होंने किसानों को सिंचाई के दो चार दिन बाद फसल में उर्वरक डालने की सलाह दी है। ताकि उर्वरक का पूरा फायदा लिया जा सके। उन्होंने बताया किे 21 दिन बाद गेंहू की सिंचाई करें। ताकि गेहूं के दाने से निकलने वाली क्राउन रूट ईनीसेसन अर्थात मुकुट जड़ दीक्षा में पूरा फुटाव हो सके। इन जडों को पौधों की प्राथमिक जड़े भी कहा जाता है। जिनमें भरपूर फुटाव होने से पैदावार में बढ़ौतरी होती है। पानी नही मिलने पर जड़े सूखने से पौधा कमजोर हो जाता है। फिर उसमें पानी देने से कमजोर पौधा अधिक उर्वरक डालने के बाद भी पूरा फुटाव नही करता। कई बार फसल में अधिक पानी देने से भी पौधे कमजोर पड़ जाते है। उन्होंने किसानों को पहली सिंचाई हल्के(कम) पानी से करने की नसीहत दी है। ताकि खेत में पानी ठहरने से पौधे प्रभावित न हो।