ऐसे थे चौधरी कृपाल सिंह लाम्बा
सत्यखबर, सतनाली मंडी (मुन्ना लाम्बा)। इंडियन नेशनल लोकदल पार्टी के सशक्त व वरिष्ठ कार्यकर्ता तथा क्षेत्र के गांव डालनवास के पूर्व सरपंच चौधरी कृपाल सिंह लाम्बा के निधन से पार्टी को तो भारी नुकसान हुआ ही है, साथ ही महेंद्रगढ़ जिले ने एक कर्मठ, जूझारू व ईमानदार सख्सियत को भी खोया है। चौधरी कृपाल सिंह लाम्बा इनेलो पार्टी से महेंद्रगढ़ जिल की राजनीति के चाणक्यकार भी कहे जाते थे। गत 23 अगस्त बृहस्पतिवार को अचानक हार्ट अटैक होने के कारण उनका आकस्मिक निधन हो जाने से क्षेत्र को भारी आघात पहुंचा है।
आपको बता दें कि चौधारी कृपाल सिंह लाम्बा का जन्म डालनवास निवासी घोगाराम के घर 2 अगस्त 1961 को हुआ। उन्होंने 8वीं तक की शिक्षा गांव के विद्यालय से ग्रहण करने के पश्चात बारहवीं तक की शिक्षा महेंद्रगढ़ से प्राप्त की। इसके पूर्व वे पहली बार 25 वर्ष की आयु में ग्राम पंचायत डालनवास के सरपंच पद पर नियुक्त हुए तथा 1989 से 1992 तक गांव का कार्यभार संभाला। चौधरी कृपाल सिंह लाम्बा सरपंच पद पर रहकर अनेकों गांवों के आमजन तक पहुंचकर उनके सुख-दु:ख की स्थिति में भागीदार बनते रहे तथा ग्रामीणों की समस्या सुन जहां तक संभव हो सका मौके पर ही निदान किया। 1989 से उन्होंने इनेलो पार्टी की सरकार में कष्ट निवारण कमेटी सदस्य रहकर लोगों की सेवा की तथा बाद में वे इनेलो किसान शैल के हल्का अध्यक्ष, जिला महासचिव संगठन के महासचिव व प्रधान, मंडल महामंत्री आदि पदों पर रहकर जनता के कार्य करवा लोगों के दिलों पर राज किया। उन्होंने प्रत्येक गांव की पंचायतों में उनकी अहम भूमिका रहती थी तथा वे लोगों के आपसी मामले मौके पर ही सुलझाने का प्रयत्न करते थे।
57 वर्ष की उम्र तक के अपने जीवन में वे हमेशा किसानों के हकों की लड़ाई लड़ते रहे। 1995 के चर्चित मंढियाली कांड में वे बिजली-पानी की समस्या से त्रस्त किसानों के साथ उनके हक को लेकर डटे रहे व 3 महीने जेल में रहकर सजा भी काटी। वे एक बेहतरीन वक्ता होने के साथ-साथ रागनी व कविता गाने के शौकीन थे। वैसे तो चौधरी कृपाल सिंह लाम्बा ने अनेकों पदों पर रहते हुए जिले के हजारों लोगों के बिना लोभ-लालच, निष्ठाभाव से कार्य किए। तो वहीं उनकी हर तरह के सामाजिक कार्यक्रमों में अहम व उल्लेखनीय भूमिका रहती थी। जिले में रचनात्मक, सांस्कृतिक व धार्मिक कार्यक्रमों में उनका भरपूर सहयोग मिलता रहा। चाहे वे गरीब परिवार की बेटी की शादी में आर्थिक मदद हो या धार्मिक कार्य के लिए दिया गया दान हो। अपने पिता को आदर्श मानने वाले चौधरी कृपाल सिंह ने उन्हीं के पद चिन्हों पर चलकर अपने जीवन को भी समाजसेवा हेतु समर्पित कर दिया। क्षेत्र ने ऐसे बुद्धिजीवी सख्सियत को खोया है जिसकी कमी को कभी भरा नहीं जा सकता।
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