सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एससी, एसटी एक्ट में बदलाव करने से क्रांतिकारी युवा संगठन के कार्यकत्र्ताओं ने विरोध दर्ज करवाया। उन्होंने एक ज्ञापन नायब तहसीलदार ओमप्रकाश जांगड़ा को सौंपा। जिसमें उन्होंने मांग की कि केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायलय के फैसले पर पुनर्विचार हेतु समीक्षा याचिका दायक करे। केवाईएस का मानना है कि सर्वोच्च न्यायलय का यह फैसला न सिर्फ जमीनी हकीक त को नजरअंदाज कर रहा है, बल्कि जातीय उत्पीडऩ से जुड़े सरकारी आकड़ों से सामने आने वाली सच्चाई की अनदेखी भी कर रहा है। न्यायधीश यूयू ललित और आदर्श गोएल ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 में 5, 347 मामले गलत पाए गए हैं, लेकिन वे इस तथ्य की अनदेखी कर गए कि इसी वर्ष जातीय उत्पीडन के 40,801 मामले दर्ज हुए हैं। ध्यान देने के बात है कि इन 40,801 मामलों में उन मामलों को नहीं शामिल गया है, जिनपर एफआईआर दर्ज ही नहीं हुई है। ऐसे में सर्वोच्च न्यायलय के मौजूदा फैसले के बाद से उच्च जाति के दबंगों को हिंसा व उत्पीडऩ करने की खुली छूट मिलेगी। उन्होंने कहा कि यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब देश में जातिगत हिंसा के मामलों में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिली है। इस सबके मद्देनजर केवाईएस मांग करता है कि केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायलय में समीक्षा याचिका दायर कर फैसले पर पुनर्विचार की अपील करे।
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