शक्तिपीठ से देशभर के हजारों श्रद्धालुओं की जुड़ी है आस्था
सत्यखबर, सफीदों: विश्वव्यापी कोरोना महामारी के मद्देनजर सरकार के आदेश पर देश के सभी बड़े-बड़े मंदिरों को बंद कर दिया गया है। उसी कड़ी में ऐतिहासिक नगरी सफीदों का महाभारतकालीन नागक्षेत्र शक्तिपीठ को भी बंद कर दिया गया है। सफीदों के इतिहास में ऐसा पहली बार ही हुआ है जब इस मंदिर को श्रभ्द्धालुओं के लिए बंद किया गया हो। मंदिर के कपाट बंद हो जाने से श्रद्धालुओं में मायुसी जरूर है लेकिन वे कर भी क्या सकते हैं। गौरतलब है कि इस शक्तिपीठ में मां दुर्गा के अलावा अनेक देवी-देवताओं की मूतियां विराजमान है और श्रद्धालुओं की इस मंदिर के साथ अटूट आस्था जुड़ी हुई है। बुधवार को नवरात्रों का प्रारंभ हो चुका है। नवरात्रों में हर रोज कई सैंकड़ों श्रद्धालुगण यहां पर आकर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करते थे लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पा रहा है। पूरा मंदिर परिसर सुनसान है और कोरोना वायरस के बचाव के लिए मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए बंद किए गए है। इसके अलावा सफीदों के अन्य सभी मंदिरों को भी सरकार के अगले आदेशों तक बंद रखा गया है।
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शक्तिपीठ का क्या है इतिहास
बताया जाता है कि जयंती देवी मंदिर जींद में स्थापना के लिए महाराजा जींद में मां दुर्गा की प्रतीमा ला रहे थे कि उस समय के सर्पदमन और आज के सफीदों आते-आते रात गहरा गई। उन्होंने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को रात में रूकने के लिए किसी उचित स्थान तलाश करने के आदेश दिए। पता लगाकर कर्मचारियों ने नागक्षेत्र सरोवर पर रूकने का सुझाव दिया और राजा ने यहीं पर पड़ाव डालने के आदेश दिए। पड़ाव डालते वक्त मां दुर्गा की मूर्ति को भी यहीं पर उतार लिया गया। सुबह जब नित्यकर्म के पश्चात राजा ने चलने के लिए कहा और कर्मचारियों ने मूर्ति को उठाना चाहा तो मूर्ति वहां से टस से मस भ्भी नहीं हुई। सभी ने काफी प्रयास किए लेकिन सभी प्रयास शून्य रहे। जिस पर राजा सारा मामला समझ गए और उन्होंने पूरे भक्तिभाव से प्रण लिया कि वे इस प्रतीमा को नागक्षेत्र सरोवर प्रागंण में ही विराजित करवाएंगे। इस प्रण के बाद जब मूर्ति को उठाना चाहा तो मूर्ति हिल गई। राजा ने अपने प्रण के अनुसार मां दुर्गा की प्रतीमा को नागक्षेत्र सरोवर प्रांगण में मंदिर बनवाकर विराजमान करवाया। जिसके बाद राजा जयंती मंदिर जींद के लिए नई प्रतीमा लेकर आए।
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क्या इतिहास है नागक्षेत्र सरोवर का
कलियुग के आगमन के समय करीब 5 हजार वर्ष पहले महाभारतकालीन पांडव अर्जुन के परपोत्र एवं महाराज परीक्षित के पुत्र महाराजा जन्मेजय ने अपने पिता महाराज परीक्षित के तक्षक नाग द्वारा डंसने से हुई मृत्यु से दु:खी होकर यहां पर सर्पदमन नामक यज्ञ किया था। यहां पर स्थित सरोवर की तलहटी में सर्पदमन यज्ञ की वेदि बनाई गई। महाराजा जन्मेजय ने सर्पों के नाश करने के संकल्प के साथ विद्घानों के मार्गदर्शन में सर्पदमन नामक यज्ञ प्रारंम्भ किया तो यज्ञ के प्रभाव से सर्पों का नाश होने लगा। जन्मेजय के कृत्य से दु:खी होकर महर्षि बृहस्पति ने उन्हें यज्ञ बंद करने की सलाह दी। महर्षि ने कहा कि हर मनुष्य अपने प्रारब्ध कर्मों के परिणामस्वरूप ही सुख-दु:ख तथा जन्म-मृत्यु को प्राप्त होता है। महर्षि के कहने पर जन्मेजय ने सर्पदमन यज्ञ बन्द कर दिया। इसी यज्ञ के कारण इस तीर्थ को नागक्षेत्र के नाम से पुकारा जाता है।
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क्या कहते है आस्थावान लोग
मंदिर बंद किए जाने को लेकर लोकतंत्र सेनानी और मंदिर से विशेष आस्था रखने वाले रामगोपाल अग्रवाल कहते हैं कि उनकी याद में ऐसा कोई भी कोई मौका नहीं आया है जब इस मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए बंद किया गया हो। देश पर अनेकों बार विकट स्थितियां आई लेकिन मंदिर के कपाट हमेशा भक्तों के लिए खुले रहे हैं। कोरोना के कारण इस बार स्थिति इतनी विकट है कि भारत ही नहीं पूरा विश्व परेशान है। सरकार के गाईडलाईन के मद्देनजर मंदिर को कुछ समय के लिए बंद किया जाना पूरी तरह से उचित है। वहीं अन्य भक्तों का कहना है कि इस महामारी के संकट में वे भारत सरकार के साथ खड़े हैं।
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क्या कहते हैं पुजारी
इस मंदिर के पुजारी यतिंद्र कौशिक से बात की गई तो उन्होंने कहा कि उनके पूर्वज लगातार इस मंदिर की सेवा संभाल करते आ रहे हैं लेकिन जीवन में कभी ऐसा मौका नहीं आया कि इस मंदिर को बंद रखा गया हो। उन्होंने बताया कि हर रोज सुबह शाम इस मंदिर में भ्भक्तों की चहल-पहल होती है। नवरात्रों में यहां एक प्रकार से मेले का माहौल होता है। इस मंदिर की दूर-दूर तक आस्था जुड़ी हुई है और यहां आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। उन्होंने बताया कि श्रद्धालुओं के बिना मंदिर में सन्नाटा है। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा इस मंदिर में विराजित सभी देवताओं की पूजा-अर्चना सुबह-शाम निरंतर जारी रहेगी।
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