सत्यखबर
एक कहावत है कि जाको राखे साईंयां मार सके न कोय। झज्जर के बहादुरगढ़ निवासी एक मासूम पर यह बात एक कदम आगे बढ़कर साबित हुई। डॉक्टरों ने न केवल इस मासूम को मृत घोषित कर दिया बल्कि इसके शव को अंतिम संस्कार के लिए पैक तक करवा दिया। अब इसे कुदरत का करिश्मा कहें या चूक, मासूम बच्चा की मौत के इस चक्रव्यूह से बाहर आकर अब घर पर पूरी तरह स्वस्थ है।
बहादुरगढ़ के किला मोहल्ले के निवासी विजय शर्मा के पौत्र कुनाल शर्मा को 26 मई को दिल्ली के डॉक्टरों ने टाइफाइड से मृत घोषित कर दिया। यही नहीं बच्चे के शव को पैक करके बेटे के पिता हितेश व मां जाह्नवी को सौंप दिया था। पर घर जाकर बच्चे के शरीर में फिर से हरकत होने लगी। जिसके बाद परिजनाें ने बच्चे को रोहतक के कॉएनोस अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां पर डॉक्टरों की टीम ने बच्चे का चेकअप किया। और जांच के दौरान पाया कि बच्चे के बचने के चांस सिर्फ 10 से 15 प्रतिशत ही है। इसके बाद डॉक्टरों ने बच्चे के परिजनों को बताया कि बचने जांच बेहद कम है। परिजनों की सहमति के बाद डॉक्टर अरविंद दहिया और डॉक्टर वरुण नरवाला के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने बच्चे का इलाज शुरू किया। और डॉक्टरों की कड़ी मेहनत के बाद बच्चे को नया जीवन मिला है..
बता दें कि बच्चे की मौत घोषित होने के बाद परंपरानुसार दादा ने अपने पौते की मौत पर रात को नमक की बोरी व बर्फ की व्यवस्था कर दी थी। मोहल्ले वालों को सुबह श्मशान घाट पर पहुंचने को कह दिया था। लेकिन चमत्कार से सब खुशियों में तब्दील हो गया। घटनाक्रम कुछ ऐसे हुए कि बीती 26 मई को दिल्ली के एक अस्पताल में कुनाल की माता पिता अपने छह साल के बेटे कुनाल का शव लेकर बहादुरगढ़ अपने घर
पहुंच गए थे। मां जहानवी अपने लाल कुनाल के शव को हिला-हिलाकर कहती रहीं…उठ जा बेटा। उठा जा। तभी पैक बॉडी में हल्की हरकत दिखी तो सभी लोग भौंचक्के रह गये। तभी कुनाल के दादा विजय शर्मा व उसके पिता हितेश ने चेहरा पैकिंग से बाहर निकाला। हितेश अपने बच्चे को मुंह से सांस देने
लगा। पिता मृतक बेटे के मुंह में सांस दे रहे थे तभी उसने उनके होंठ पर काट लिया। उसी रात यानि 26 मई की रात को बच्चे को रोहतक के कायनोस अस्पताल ले जाया गया जहां केवल 15% ही बचने की उम्मीद बताई गई। मगर बच्चा धीरे-धीर ठीक हो गया। और अब बीते मंगलवार को अपने घर पहुंच गया।
वहीं कुनाल के दादा विजय कुमार ने बताया कि हम अस्पताल से घर लौटे ही थे,कि बेटे हितेष का फोन आया कि कुनाल नहीं रहा। परिवार में चीख पुकार मच गई।
देर शाम का समय था। हमने बर्फ का इंतजाम करना शुरू किया। एक रिश्तेदार का
फोन आया कि इस समय बहादुरगढ़ के रामबाग श्मशान घाट में बच्चे का अंतिम
संस्कार हो सकेगा क्या। अगर वहां नहीं होगा तो दिल्ली में ही करना
पड़ेगा। मगर मेरी पत्नी आशा रानी ने कहा कि मुझे अपने पोते का मुंह देखना है। उसे घर ले आओ। उन्होंने कहा कि अगर पत्नी उसे जिद्द करके यहां लेकर
आने को न कहती तो शायद दिल्ली में ही क्रिया हो जाती। और शायद हम अपने पोते को खो देते।
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