सत्यखबर, हिसार (मुन्ना लाम्बा) – नाथ संप्रदाय की राजधानी कहलाने वाली तपस्वियों की जननी सिद्धपीठ कालापीर मठ, कोथ में मासिक यज्ञ कुशलता से संपन्न हुआ। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए सिद्धपीठ के पीर महन्त शुक्राईनाथ योगी ने वेद ज्ञान व दर्शन शास्त्रों की लुप्त होती सभ्यता पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि चार वेद समस्त विश्व का ईश्वरीय स्थाई संविधान हैं। ऋषि मुनियों द्वारा निर्मित शास्त्रों को दो भाग श्रुति व स्मृति में बांटा जाता है। श्रुति के अंतर्गत धर्मग्रंथ वेद तथा स्मृति के अंतर्गत इतिहास व वेदों की व्याख्या की पुस्तकें, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति आते हैं। हमारे सनातन धर्म के धर्मग्रंथ वेद ही होते हैं, जिनमें 6 अड्ग व 6 उपाड्ग होते हैं। इनसे वेदों को जानने में सहायता मिलती है।
कौन–कौन से हैं वेदनिर्मित अड्ग व उपाड्ग?
इस बारे में जानकारी देते हुए महंत शुक्राईनाथ ने बताया कि अड्ग के अंतर्गत वर्णोच्चारण शिक्षा, पाणिनि कृत व्याकरण, कल्प, महर्षि यास्क कृत निरुक्त, महर्षि पिंगल कृत छंद व ज्योतिष आते हैं तो वहीं उपाड्ग के अंतर्गत योगदर्शन (महर्षि पतंजलि), सांख्य दर्शन (महर्षि कपिल), न्याय दर्शन (महर्षि गौतम), वैशेषिक दर्शन (महर्षि कणाद), मीमांसा दर्शन (महर्षि जैमिनि) व वेदान्त दर्शन (महर्षि व्यास) आते हैं।
किन उननिषदों का अध्ययन होता है आवश्यक?
महंत ने बताया कि वेदों में 100 से ज्यादा उपनिषद मिलते हैं परंतु आर्ष 11 उपनिषदों को वेदान्त दर्शन के अध्ययन के पूर्व पढऩा आवश्यक होता है। ईशोपनिषद, केनोपनिषद, कठोपनिषद, प्रश्नोपनिषद, माण्डूक्योपनिषद, मुण्डकोपनिषद, ऐतरेयोपनिषद, तैत्तिरीयोपनिषद, बृहदारण्यकोपनिषद, छांदोग्योपनिषद व श्वेताश्वतरोपनिषद आदि 11 उपनिषद हैं।
कौन-कौन से हैं वेदों के व्याख्या ग्रंथ व उपवेद?
वेदों के व्याख्या ग्रंथों के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन करते योगी शुक्राईनाथ ने बताया कि ऐतरेय ब्राह्मण, शतपथ ब्राह्मण, ताण्ड्य ब्राह्मण व गोपथ ब्राह्मण आदि वेदों व्याख्या ग्रंथ हैं तो वहीं चार वेदों के चार ही उपवेद ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गांधर्ववेद तथा अथर्ववेद का अर्थवेद आदि हैं। उन्होंने बताया कि वेदों में ब्रह्म (ईश्वर), देवता, ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम, इतिहास, संस्कार, रीति-रिवाज आदि लगभग सभी विषयों से संबंधित ज्ञान भरा पड़ा है।
वेदों से किन–किन विषयों पर मिलता का ज्ञान?
- वेदों के विषय पर बोलते हुए महंत ने बताया कि ऋग्वेद का अर्थ है स्थिति व ज्ञान। इसमें भौगोलिक स्थिति तथा देवताओं के आवाहन के मंत्रों के साथ बहुत कुछ है। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियां और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है। इसमें जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा और हवन द्वारा चिकित्सा आदि की भी जानकारी मिलती है। इसमें 10522 मन्त्र सम्मिलित हैं।
- यजुर्वेद का अर्थ है गतिशील आकाश एवं कर्म। यजुर्वेद में यज्ञ की विधियां तथा यज्ञों में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं। 16 संस्कारों को हम यजुर्वेद में बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। इस वेद में यज्ञ के अलावा तत्व ज्ञान अर्थात रहस्यमयी ज्ञान का वर्णन भी मिलता है। इस वेद की दो शाखाएं शुक्ल व कृष्ण हैं तथा इसमें 1075 मंत्र हैं।
- सामवेद का अर्थ है रूपांतरण व संगीत, सौम्यता व उपासना। इस वेद में ऋग्वेद की अनेक ऋचाओं का संगीतमय रूप है। इसमें सविता, अग्नि व इंद्र देवताओं के बारे में उल्लेख मिलता है। इसी में शास्त्रीय संगीत तथा नृत्य का सन्दर्भ भी मिलता है। इस वेद को संगीत शास्त्र का मूल माना जाता है। इसमें 1875 मंत्र शामिल हैं।
- अथर्ववेद का अर्थ है कंपन या अकंपन। इस वेद में रहस्यमयी विद्याओं, जड़ी बूटियों, चमत्कार तथा आयुर्वेद की औषधि आदि का जिक्र है। इसमें भारतीय परंपरा व ज्योतिष का ज्ञान भी मिलता है। इसके अध्ययन से समस्त शंकाओं का समाधान हो मन का कम्पन समाप्त होता है। इस वेद में 5977 मंत्र सम्मिलित हैं।
इस अवसर पर यज्ञ में पंडित जयपाल झज्जर, रघुवीर कोथ, कुलदीप सिंह चीफ अकाउंट ऑफिसर, पंडित रामप्रसाद, प्रवीण श्योराण कोथ, दीपक संधू, राममेहर सन्धू, रामनिवास संधू, प्रवीण रेड्डू कंडेला, सज्जन कुतुबपुर, योगी लिखाईनाथ, योगी सोमनाथ, दिनेश पांडे, शिवा कोथ, नरेश सन्धू, सिटू, सरिता छोटी कोथ, मंजू, राजबाला, चंद्रकला, संतोष, मंजू, दिनेश, सोमा, मनिषा, शान्ति, बिमला, ललिता सहित अनेकों श्रद्धालुगण मौजूद रहे।
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