सत्यखबर,रोहतक (राजेंद्र राठी)(अनिल कुमार )
हरियाणा विधानसभा चुनाव को पूरा डेढ़ साल बाकी है मगर प्रदेश की राजनीति में अनुमान, आकलन और भविष्यवाणियों का दौर अभी से शुरू हो गया। इसका कारण भी स्पष्ट है, क्योंकि वर्तमान राजनीति के नीरस दौर में किसी भी पार्टी के पक्ष में न तो माहौल बन रहा है, न ही पार्टियों के दिग्गज माहौल बनाने में सक्षम दिख रहे हैं। यही वजह है कि प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य पर धुंधलका छाया हुआ है। जिसको देखो अपने हिसाब से राजनीति का विश्लेषण कर रहा है मगर सच्चाई यह है कि हरियाणा की राजनीति का ऊंट अभी खड़ा है। वह किस करवट बैठेगा, कहना जल्दबाजी होगी।
दरअसल, हरियाणा में विधानसभा चुनाव अमूमन लोकसभा के बाद ही होते हैं। पिछले दो दशक के आंकड़ों पर गौर करें तो प्रदेश में उसी पार्टी को सत्ता नसीब हुई है जिसे लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें मिली हैं। सन 1999 के लोकसभा चुनाव में इनेलो व भाजपा को दस में से पांच-पांच सीटें मिली थीं। इन्हीं रूझानों के चलते मार्च 2000 के विधानसभा चुनाव में इनेलो-भाजपा ने जीत हासिल की और मिलकर सरकार बनाई। 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 10 में से 9 सीट मिलीं। एक सीट भाजपा (सोनीपत से किशन सिंह सांगवान) ने जीती। लिहाजा विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को 67 सीटों पर विजयश्री मिली। प्रदेश में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को नौ सीटें मिलीं जबकि हिसार की सीट भजनलाल (हजकां) के खाते में गई। पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी (हरियाणा जनहित कांग्रेस ‘हजकां’) बना चुके थे। ऐसे में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जीतने की संभावनाएं बहुत कम नजर आ रही थीं मगर तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने लोकसभा के गणित को भांपते हुए पांच माह पहले ही चुनाव करवा लिए। लिहाजा कांग्रेस को 40 सीटें (बहुमत से 6 कम) मिलीं। यह अलग बात है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने हजकां के पांच विधायकों को तोड़ कर व निर्दलियों के सहारे सरकार बना ली, जो पूरे पांच साल चली। 2014 के लोकसभा चुनावों मेें स्थितियां बदलीं। भाजपा ने हरियाणा में सात सीटों पर जीत दर्ज की। पांच माह बाद हुए विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को लोकसभा की जीत का पूरा लाभ मिला। इसलिए हरियाणा के इतिहास में पहली बार भाजपा 47 सीटें जीत कर पूर्ण बहुमत से सत्ता पर काबिज हुई। इनेलो गठबंधन को 20 और कांग्रेस को 15 सीटों पर संतोष करना पड़ा। बची हुई सीटें निर्दलियों ने खाते में गईं। खैर, अब सबकी नजरें 2019 पर टिकी हैं। तय समय के अनुसार लोकसभा चुनाव विधानसभा से पहले होने है। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनावों का सीधा असर विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा। हरियाणा की राजनीति के पुराने जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार पवन बंसल की मानें तो लोकसभा चुनाव में पार्टियों की स्थिति से ही विधानसभा के रूझान सामने आएंगे। इस सबके बीच हरियाणा की राजनीति में आम आदमी पार्टी की अनदेखी करना बेमानी होगा। इसके अलावा भी अन्य कई कारण हैं जो आगामी विधानसभा चुनाव को प्रभावित करेंगे जिनका उल्लेख अगली कड़ी में किया जाएगा|
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