सत्यखबर,यूपी
2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा के पास कई बड़े चेहरे थे। पार्टी को उसके आधार पर सभी जातियों के वोट जुटाने में मदद भी मिली थी। उनमें राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र, मनोज सिन्हा और केशव प्रसाद मौर्य जैसे नेता शामिल थे। लेकिन, इतने चेहरों में से आखिरकार योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे प्रबल दावेदार बनकर उभरे। तब राजनाथ सिंह केंद्र में गृहमंत्री थे और उनमें मुख्यमंत्री बनने की ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई पड़ी। आज कलराज मिश्र राजस्थान में गवर्नर हैं। मनोज सिन्हा को जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल जैसे अहम पद की अहम जिम्मेदारी मिल चुकी है और केशव प्रसाद मौर्य मजे में उपमुख्यमंत्री पद पर काबिज हैं।
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लेकिन, फिर भी कोरोना की दूसरी लहर में कुछ दिनों तक राज्य में जिस तरह से हालात बने और पंचायत चुनावों में पार्टी की कमजोरी सामने आई, उससे इन अफवाहों को खूब बल मिला कि केंद्रीय नेतृत्व 2022 से पहले यूपी सरकार में टॉप लेवल पर बहुत बड़ा फेरबदल कर सकता है। क्योंकि, 2024 में दिल्ली का रास्ता एकबार फिर से लखनऊ होकर ही गुजरना है। लेकिन, केंद्र से आए बीजेपी के दो बड़े नेताओं ने इन सभी अटकलबाजियों पर विराम लगा दिया है तो इसके पीछे कई कारण हैं। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष और पूर्व केंद्रीय मंत्री और यूपी के प्रभारी महासचिव राधामोहन सिंह ने दो दिनों तक यूपी में पार्टी की जमीनी हालात का जायजा लिया, उससे पहले ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में नंबर-2 दत्तात्रेय होसबोले भी प्रदेश की राजनीतिक स्थिति का आकलन करके लौट चुके थे।
बीएल संतोष का तो असल बैकग्राउंड ही आरएसएस से जुड़ा रहा है और बीजेपी में इस वक्त योगी आदित्यनाथ से बड़ा हिंदुत्व का ब्रांड कोई नहीं है। गेरुआ रंग के कपड़ों में जब योगी चुनाव सभाओं में हिंदुत्व के एजेंडे पर बोलना शुरू करते हैं तो केरल और पश्चिम बंगाल में भी विरोधियों के माथे पर बल पड़ जाते हैं। आज की स्थिति में पार्टी का हिंदुत्व ब्रिगेड अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद किसी नेता को अपना सबसे बड़ा रहनुमा मानता है
तो वह यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ हैं।2019 के आम चुनाव में भाजपा को लोकसभा की 303 सीटें मिलीं तो उनमें से 62 सीटें अकेले यूपी से मिली थी। यह तब संभव हुआ था, जब दो साल पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी की 403 में से 312 सीटें मिली और अपने दम पर भारी बहुमत की सरकार बनाई। उत्तर प्रदेश में सरकार चलाते हुए योगी आदित्यनाथ का चार साल से ज्यादा का कार्यकाल गुजर चुका है, लेकिन कम से कम पार्टी में सीधे उनके नेतृत्व को कभी चुनौती नहीं मिली है। इन वर्षों में वे प्रदेश और प्रदेश के बाहर भी जमीन पर काम करने वाले ऐसे मेहनती नेता के रूप में उभरे हैं, जिसकी छवि साफ है और उनकी लीडरशिप पर पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को भी पूरा भरोसा है। शायद यही वजह है कि पार्टी को लगता है कि यूपी के लिए उनसे उपयुक्त कोई नेता नहीं है, जिसके भरोसे 2022 पर चुनावी दांव लगाया जा सके। ये बात सही है कि कोरोना की दूसरी लहर और पंचायत चुनावों में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद बीजेपी के कुछ विधायक अपनी सरकार की मुखालफत करते देखे गए हैं। मसलन, सीतापुर जिले के एक पार्टी एमएलए राकेश राठोर ने पिछले हफ्ते एक सरकारी ट्रॉमा सेंटर को शुरू करने में आ रही दिक्कतों पर कहा था, ‘मैंने कई कदम उठाए हैं, लेकिन विधायकों की हैसियत ही क्या है….यदि मैं ज्यादा बोलूंगा तो मेरे खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है…..’ लेकिन, पार्टी के नेता यह मानकर चल रहे हैं कि 300 से ज्यादा विधायकों में संगठनात्मक समन्वय की कमी के चलते ऐसी नाराजगी स्वाभाविक है। क्योंकि, सबको महत्वपूर्ण पद नहीं दिया जा सकता और इसकी वजह से नाखुशी भी हो सकती है। लेकिन, पार्टी को पूरा विश्वास है कि कैडर और समर्पित वोटर आज भी योगीजी के साथ हैं। खासकर उनके कार्यकाल में अपराधियों और माफियाओं के बड़े तबके के खिलाफ जिस ढंग का सफाई अभियान चला है, उसकी वजह से समर्थकों में उनकी छवि रॉबिनहुड की बनी है। यही वजह है कि पार्टी के प्रदेश इंचार्ज राधामोहन सिंह ने नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को ‘किसी की कल्पना की उपज’ बताने में देर नहीं की।
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