सत्यख़बर डेस्क
राजस्थान के आदिवासी जिले बांसवाड़ा जिले में वर्षो से चली आ रहा रिवाज के मुताबिक बुधवार को दो नाबालिग की शादी हुई। अश्चय देने वाली बात यह है कि विवाहलड़के-लड़की का नहीं, बल्कि दो नाबालिग बेटो का हुआ। एक को वर और दूसरे को वधु की तरह सजाकर शोभा यात्रा निकाली गई।
ग्रामीणों की मान्यता है कि नाबालिग बेटो का विवाह होली के आसपास कराने से गांव में खुशी रहती है। ग्रामीणों पर कोई मुसीबत नहीं आती है। हर वर्ष यही परंपरा निभाई जाती है। गांव में माहाैल असली विवाह के तरह था। वधु बनने वाले बेटेकाे साड़ी पहनाई गई, श्रृंगार हुआ। मंडप सजाया, ढाेल बजे, पंडित ने विधि-विधान से शादी करवाई। वधु बने लड़के काे मंगल सूत्र पहनाकर मांग भरी गई और फिर सात फेरे हुए।
ऐसे होती है विवाह के लिए बेटो की खोज
परंपरा के अनुसार होली के दो दिन पहले से ही ग्रामीणों की टोली रात के अंधेरे में घर के बाहर खेल रहे बच्चों को खोजने में निकलती है। जब दाेनाें लड़के मिल गए ताे सभी गांव के लोग खुशी मनाने लगे। ढाेल बजाकर संदेश दिया कि जाेड़ा मिल गया। इसके बाद ग्रामीण विवाह में शामिल हाेने के लिए पहुंच गए। दाेनाें ही बेटो काे गांव के श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर में लाया गया। यहां गांव के मुखिया ने शादी का आदेश दिया और रस्में शुरू हुईं।
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शादी के बाद रात काे ही पति-पत्नी की शाेभायात्रा निकाली गई। युवाओं फागण गीत गाए। वर वधु बने लड़काें काे चॉकलेट, आइसक्रीम और रुपयों के अलावा कोरोना से बचाव के लिए मास्क भी भेंट किए गए। शाेभायात्रा खत्म हाेने के बाद वर वधु अपने-अपने घर चले जाते हैं। इसके बाद शादी काे टूटी हुई मान लिया जाता है।
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