सत्य खबर, नई दिल्ली। औषधीय पौधों की खेती का चलन भारत में बढ़ता जा रहा है। किसान काफी पढ़ लिख गए हैं इसलिए नए-नए और अलग तरह के पौधों की खेती करने लगे हैं। इसी तरह का एक औषधीय पौधा है कैमोमाइल। इसकी खेती मुख्य रूप से तेल के लिए की जाती है। इसका इस्तेमाल औषधि से लेकर कॉस्मेटिक सामान एवं अन्य उत्पादों के लिए होता है। एक एकड़ जमीन में कैमोमाइल की खेती करने पर उसके फूलों से 6 से 8 लीटर तक तेल मिल जाता है। इस तरह किसान भाइयों को एक एकड़ की खेती से औसतन 2.5 लाख से 3 लाख रुपए तक का शुद्ध लाभ हो जाता है। कैमोमाइल की चाय और बीज बेचकर भी किसान भाई कमाई कर सकते हैं। 12 हजार रुपए की लागत से 1 एकड़ खेत में कैमोमाइल की खेती की जा सकती है।
कैमोमाइल में कई शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं जो शरीर को होने वाली तमाम बीमारियों के खिलाफ कवच प्रदान करते हैं। कैमोमाइल का सेवन सेहत के लिए काफ ी फायदेमंद होता है और यह एंटी एजिंग जैसे काम करता है। यह हृदय रोग से लेकर कैंसर तक की बीमारी को दूर करने में सहायक है।
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औषधीय पौध विशेषज्ञ डॉ. कविता त्यागी कहती हैं कि इसकी दो प्रमुख किस्में हैं पहली है वल्लारी और दूसरी है जर्मन अपने देश में इसकी खेती अभी हाल ही में शुरू हुई है। ऐसे में बीज हर जगह उपलब्ध नहीं है। डॉ. त्यागी बताती हैं कि जोधपुर स्थित सरकारी संस्था काजरी से किसान भाई कैमोमाइल का बीज प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा लखनऊ स्थित सीआईएमएपी, एनबीआरआई, आरआरएल.जोरहाट और देश के अलग-अलग कृषि विश्वविद्यालयों से कैमोमाइल के बीज मिल सकते हैं। बता देें कि पहाड़ी क्षेत्रों में किसान भाई एक बार पौध लगाने के बाद 10-12 बार फूल प्राप्त कर सकते हैं। वहीं मैदानी इलाकों में 6-8 बार ही फूल मिल पाता है।
फूल की तुड़ाई के बाद इसे बंद कमरे में सुखाया जाता है। इसके लिए आप चटाई, पेपर और टॉवेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। सूखाने वाली जगह पर नमी नहीं होनी चाहिए। इसका उपयोग चाय से लेकर तेल के रूप में भी किया जाता है। फूल से ही पाउडर बनाया जाता है और इसे ही चाय के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
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