सत्यखबर
ऐसा पिंजरा जहां परिवार वालों से विद्रोह कर विवाह रचाने वाले प्रेम के पंछी बंद हैं। कहने को तो यहां उन्हें पनाह दी गई है, लेकिन उनके लिए यह यातनाकक्ष है। कैथल के सेफ हाउस को ही देखें। एक बुजुर्ग इमारत के एक कमरे में यहां नौ युवा प्रेमी जोड़े रखे गए हैं। कोरोना संक्रमण को देखते हुए शारीरिक दूरी का नियम भी सिसक रहा है।
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भोजन, चाय नाश्ते की व्यवस्था खुद से करनी पड़ती है। खुद लेने के लिए बाहर जा नहीं सकते। कर्मचारियों से मंगवाना मजबूरी है। इसके लिए उन्हें संबंधित वस्तु के मूल्य के अलावा कर्मचारियों को अलग से भुगतान करना पड़ता है । बाथरूम और टायलेट भी पर्याप्त नहीं। कपड़े धोना चाहें तो तीन-चार दिन बाद नंबर आता है। कारण सुखाने के लिए जगह ही नहीं। सॢदयों में ओढऩा- बिछौना न होने से ठिठुरते हुए रातें काटते हैं। पुलिसकर्मी भी सहानुभूति भरी नजरों के बजाय उपहास करती नजरों से देखते हैं।
कैथल का एक युवक प्रेम विवाह करके पत्नी को गोवा ले जाना चाहता था। लेकिन दोनों परिवार वालों के क्रोध को देखते हुए पुलिस के पास पहुंचे। पुलिस सेफ हाउस में ले आई, वहां पहले से ही आठ जोड़े थे। जगह कम थी। टायलेट के आगे ही इनका गद्दा बिछा दिया गया। पूरा दिन एक-दूसरे से फोन पर बात करने वाला ये जोड़ा अब आमने-सामने होकर भी बात करने को तरस गए हैं। गुमसुम रहते हैं। युवक ने बताया कि अब तो किसी तरह इस पिंजरे से बाहर आना है। इसके लिए शपथपत्र भी उन्हेंं ही लिखकर देना होगा। युवक बताता है कि यहां के कर्मचारी भी चाहते हैैं कि प्रेमी जोड़े चले जाएं। इसलिए शपथपत्र देने के लिए जोर देते हैं।
हिसार में रहने वाला एक युवक बताता है। छह महीने पहले साथ लगते गांव की सवर्ण युवती से प्रेम विवाह किया। युवती के परिवार वालों को यह मंजूर नहीं था। दोनों साथ जिंदगी गुजारने का निश्चय कर चुके थे। हिसार के सनातन धर्म ट्रस्ट के चेयरमैन संजय चौहान से मिले। पुलिस सुरक्षा की गुहार लगाई। उन्हे हिसार के सेफ हाउस में भेज दिया। लगा कि पुलिस सुरक्षा में ही सही, दोनों एक दूसरे को अंक में भरकर प्यार करेंगे। एक दूसरे के प्रति प्रेम का प्रदर्शन करने के लिए कोई पल नहीं छोड़ेंगे। लेकिन जब उन्होंने कमरा देखा तो वह पिंजरा लगा। वहां पहले से ही चार जोड़े मौजूद थे। दूरी के लिए कोई परदा नहीं, सिरहाने को सीमा रेखा की तरह रखा गया। दो सिर एक सिरहाने पर टिक सकें, बस इतनी ही दूरी थी सभी जोड़ों में। मोबाइल रिपयेरिंग करने वाले इस युवक ने बताया, सेफ हाउस से बाहर आए छह महीने हो गए हैं। जेल से कम नहीं थी वह जगह। खाने-चाय के लिए पैसे देने पड़ते थे। इस हालात में रहने से बेहतर था, बाहर निकलना। छह दिन बाद ही अपने एक परिचित को बुलाया। हजार रुपये खर्च करके बाहर निकले। अब गांव से दूर शहर में रहते हैं। ऐसा ही अनुभव सेफ हाउस से बाहर आने वाले हर प्रेमी जोड़े का है। लेकिन करें तो क्या? प्रेम किया है। कहते हैं-प्रेम के लिए हर कष्ट झेलेंगे।
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