One Nation One Election: मोदी कैबिनेट ने दी मंजूरी, लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने का रास्ता हुआ आसान
One Nation One Election: भारत में चुनावी प्रक्रिया एक जटिल और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों के अलग-अलग समय पर होने से न केवल आर्थिक बोझ बढ़ता है, बल्कि देश के विकास कार्यों पर भी असर पड़ता है। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की परिकल्पना को साकार करने का प्रस्ताव रखा है। इस दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए मोदी कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अब लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की राह और भी आसान हो गई है।
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विचार
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विचार यह है कि देश में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभा चुनावों को एक साथ कराया जाए। इस प्रक्रिया से चुनावी खर्च में कमी आएगी, प्रशासनिक व्यवस्था सुगम होगी और देश में बार-बार होने वाले चुनावों से बचा जा सकेगा। इसके अलावा, चुनाव के दौरान आचार संहिता लागू होने के कारण जो विकास कार्य रुक जाते हैं, वे भी लगातार चलते रहेंगे।
मोदी सरकार की गंभीरता
मोदी सरकार पिछले कार्यकाल से ही ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लेकर गंभीर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई अवसरों पर चुनावी रैलियों और अन्य मंचों से इस विचार का समर्थन किया है। उनका मानना है कि लगातार होने वाले चुनाव देश के विकास में बाधा बन रहे हैं और देश के संसाधनों का अधिक उपयोग हो रहा है। इसके अलावा, चुनावों के दौरान राज्यों और केंद्र के बीच असंगतिता भी उत्पन्न होती है, जिससे योजनाओं के क्रियान्वयन में कठिनाइयां आती हैं।
100 दिन पूरे होने पर दिया गया संकेत
हाल ही में एनडीए सरकार के 100 दिन पूरे होने के अवसर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस विचार पर जोर देते हुए कहा था कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का संकल्प सरकार के प्रमुख एजेंडा में शामिल है। अमित शाह ने कहा था कि बार-बार होने वाले चुनाव न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महंगे होते हैं, बल्कि इनसे देश की प्रगति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी का जिक्र
इस साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से अपने भाषण में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि देश में बार-बार चुनाव होने से देश की प्रगति में रुकावटें आ रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विचार देश के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है और इसे जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिए।
रामनाथ कोविंद समिति की रिपोर्ट
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के विषय पर व्यापक विचार-विमर्श के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने इस विषय पर गहन अध्ययन और शोध किया और इस वर्ष 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट के अनुसार, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लागू करने के लिए संवैधानिक और कानूनी सुधार आवश्यक होंगे।
रामनाथ कोविंद समिति की रिपोर्ट लगभग 18,626 पन्नों की है, जिसमें चुनावी प्रक्रिया के सभी पहलुओं पर विचार किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि किस प्रकार से एक साथ चुनाव कराने से देश के लोकतांत्रिक ढांचे में सुधार हो सकता है और देश की प्रगति में तेजी लाई जा सकती है।
शीतकालीन सत्र में पेश होगा बिल
मोदी सरकार ने इस प्रस्ताव को कैबिनेट में मंजूरी देने के बाद यह घोषणा की है कि शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे पर एक विधेयक लाया जाएगा। यदि यह बिल पारित हो जाता है, तो भारत के चुनावी इतिहास में यह एक महत्वपूर्ण बदलाव होगा। इसके तहत देशभर में एक साथ चुनाव कराए जा सकेंगे, जिससे समय, पैसा और संसाधनों की बचत होगी।
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के फायदे
- चुनावी खर्च में कमी: देशभर में बार-बार होने वाले चुनावों पर भारी धनराशि खर्च होती है। एक साथ चुनाव कराने से इन खर्चों में कमी आएगी और इस बचत का उपयोग देश के विकास कार्यों में किया जा सकेगा।
- स्थिर शासन: बार-बार होने वाले चुनावों से शासन प्रणाली में अस्थिरता उत्पन्न होती है। एक साथ चुनाव से यह अस्थिरता दूर होगी और सरकारें अपने पूरे कार्यकाल में बिना किसी रुकावट के योजनाओं को क्रियान्वित कर सकेंगी।
- विकास कार्यों में रुकावट नहीं: चुनावों के दौरान आचार संहिता लागू होने से विकास कार्यों में रुकावट आती है। एक साथ चुनाव से यह समस्या भी समाप्त होगी और विकास कार्यों में कोई बाधा नहीं आएगी।
- प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार: एक साथ चुनाव कराने से चुनावी प्रक्रिया को संभालने वाली एजेंसियों पर दबाव कम होगा और प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार होगा।
चुनौतियाँ
हालांकि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के कई फायदे हैं, लेकिन इसे लागू करने के लिए कुछ चुनौतियां भी हैं। जैसे:
- संविधान में संशोधन: ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी, जो एक जटिल प्रक्रिया है।
- राज्य सरकारों की सहमति: देश के सभी राज्यों की सरकारों की सहमति प्राप्त करना भी एक बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि राज्य अपने चुनावी अधिकारों पर कोई भी हस्तक्षेप नहीं चाहते।
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तकनीकी और प्रशासनिक तैयारियाँ: एक साथ चुनाव कराने के लिए तकनीकी और प्रशासनिक तैयारियाँ भी चुनौतीपूर्ण होंगी। इसके लिए बड़े पैमाने पर चुनावी मशीनरी को तैयार करना होगा।