Punjab: क्यों मजबूर हुए किसान डीसी कार्यालयों के बाहर बासमती फेंकने के लिए? जानिए इसके पीछे की वजह
Punjab: बासमती चावल की कीमतों में आई गिरावट ने पंजाब के किसानों को गहरे संकट में डाल दिया है। पिछले साल जहाँ बासमती चावल की कीमत ₹3300 से ₹3600 प्रति क्विंटल तक थी, इस साल यह ₹2200 से ₹2450 प्रति क्विंटल पर सिमट गई है। इस मूल्य गिरावट ने किसानों को अपनी लागत भी निकालने की स्थिति से बाहर कर दिया है। पंजाब के किसान अब अपनी फसल को उचित मूल्य पर बेचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस संघर्ष की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसान संगठन खुलेआम चेतावनी दे रहे हैं कि अगर बासमती की खरीद उचित दामों पर नहीं होती, तो वे अपनी फसल को डीसी कार्यालयों और मुख्यमंत्री भगवंत मान के निवास के सामने फेंकने के लिए मजबूर हो जाएंगे।
बासमती की कीमतें: किसानों की कठिनाइयाँ
फतेहगढ़ चूरियां मंडी में बासमती चावल की कीमत इस समय ₹2450 प्रति क्विंटल है, जो पिछले साल की तुलना में बहुत कम है। किसान अपनी मेहनत और लागत की तुलना में यह कीमत बहुत कम मान रहे हैं। पंजाब के किसान भूपिंदर सिंह, जो अपनी फसल बेचने के लिए मंडी में आए थे, ने बताया कि इस बार किसानों को अपनी लागत भी निकालना मुश्किल हो रहा है। यह स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि किसानों को अपनी बासमती की फसल को सड़कों पर फेंकने जैसी गंभीर कदम उठाने पर विचार करना पड़ रहा है।
सरवान सिंह पंधेर, जो किसान मजदूर संघर्ष समिति के अध्यक्ष हैं, ने बताया कि अगर बासमती की खरीदारी ₹3000 प्रति क्विंटल की दर से नहीं की जाती है, तो 28 सितंबर के बाद राज्यभर के किसान डीसी कार्यालयों और मुख्यमंत्री के निवास के सामने बासमती फेंकने के लिए मजबूर हो जाएंगे। यह एक स्पष्ट चेतावनी है कि अगर सरकार ने जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो स्थिति और भी विकट हो सकती है।
किसानों की उम्मीदें और सरकार की चुप्पी
किसानों का कहना है कि इस बार सरकार की नीतियों और बाजार की कमजोर स्थिति के कारण उनकी स्थिति बहुत खराब हो गई है। पिछले साल की तुलना में बासमती की कीमतों में भारी गिरावट आई है, और यह गिरावट किसानों को बर्बादी की कगार पर ले जा रही है। किसान यह भी कह रहे हैं कि अगर यह स्थिति ऐसे ही बनी रही, तो बासमती को आलू की तरह सड़कों पर फेंकना पड़ेगा, जैसा कि पिछले कुछ सालों में आलू के साथ हुआ था।
खेरा खुर्द गांव के अमरीक सिंह ने बताया कि सरकार की नीतियों के कारण किसान पहले से ही मुश्किलों का सामना कर रहे थे, और अब बासमती की कीमतों में गिरावट ने उनकी हालत और भी खराब कर दी है। मंडियों में व्यापारी और कमीशन एजेंट बासमती चावल की खरीद में अत्यधिक मुनाफा कमा रहे हैं, लेकिन किसानों को उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं।
किसान संगठनों का विरोध और समर्थन
भारत में किसान संगठनों का हमेशा से ही किसानों के हक के लिए संघर्ष रहा है। इस बार भी, भारतीय किसान यूनियन (एकता उगराहां) के राज्य प्रमुख, जोगिंदर सिंह उगराहां ने भी यह स्पष्ट किया है कि अगर धान को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम कीमत पर खरीदा जाता है, तो इसका कड़ा विरोध किया जाएगा। किसान संगठन यह मानते हैं कि सरकार को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए और किसानों को उचित समर्थन मूल्य देना चाहिए।
सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिलने से किसानों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। वे सरकार से उम्मीद कर रहे हैं कि उनकी मांगों को सुना जाएगा और उन्हें उचित मूल्य मिलेगा।
समाधान की आवश्यकता
किसानों की मांगें पूरी तरह से उचित हैं। वे अपनी मेहनत का उचित दाम चाहते हैं, ताकि वे अपनी खेती का खर्चा निकाल सकें और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें। बासमती जैसी महत्वपूर्ण फसल के लिए उचित मूल्य न मिलना न केवल किसानों के लिए बल्कि देश की कृषि व्यवस्था के लिए भी चिंताजनक है।
सरकार को तुरंत हस्तक्षेप कर बासमती चावल के लिए एक उचित मूल्य निर्धारण प्रणाली को लागू करना चाहिए। यदि सरकार समय पर कदम नहीं उठाती है, तो किसानों की हालत और भी बदतर हो सकती है, और इससे व्यापक सामाजिक और आर्थिक असंतोष फैल सकता है।
किसानों का यह संघर्ष केवल उनकी आजीविका का ही नहीं, बल्कि पूरे देश की खाद्य सुरक्षा और कृषि की स्थिरता का प्रश्न है।