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Arunachal Pradesh में 12,500 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना के खिलाफ जनता का विरोध, भूमि और पर्यावरण को होगा नुकसान

Arunachal Pradesh के अपर सियांग जिले में शनिवार को प्रस्तावित 12,500 मेगावाट जलविद्युत  परियोजना के खिलाफ स्थानीय लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। यह विरोध सियांग इंडिजिनस फार्मर्स फोरम (SIFF) द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें करीब 600 ग्रामीण गेकू गांव में एकत्रित हुए और राष्ट्रीय जलविद्युत  निगम (NHPC) और मुख्यमंत्री पेमा खांडू के खिलाफ नारेबाजी की।

इस परियोजना के खिलाफ ग्रामीणों का मानना है कि इससे उनकी भूमि, पर्यावरण और जीवनशैली को गंभीर खतरा हो सकता है। एनएचपीसी द्वारा प्रस्तावित इस परियोजना का सर्वेक्षण ऊपरी सियांग और सियांग जिलों के तीन स्थानों पर किया जा रहा है, जिनमें से एक प्रमुख स्थान डिट्टे-डिमे और गेकू के बीच का क्षेत्र है।

शांतिपूर्ण प्रदर्शन का आयोजन

शनिवार सुबह 8 बजे गेकू गांव में SIFF द्वारा आयोजित इस प्रदर्शन में भारी संख्या में लोग शामिल हुए। सियांग इंडिजिनस फार्मर्स फोरम के महासचिव डोंगो लिबांग ने बताया कि यह परियोजना उनके भूमि और पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकती है। ग्रामीणों की यह आशंका है कि इस परियोजना के कारण उन्हें अपनी जमीन से बेदखल किया जाएगा और क्षेत्र में पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न हो सकता है।

Arunachal Pradesh में 12,500 मेगावाट की जलविद्युत  परियोजना के खिलाफ जनता का विरोध, भूमि और पर्यावरण को होगा नुकसान

गेकू के अतिरिक्त सहायक आयुक्त ए. रतन ने जानकारी दी कि यह विरोध शांतिपूर्ण तरीके से दोपहर 1 बजे समाप्त हुआ। हालांकि, ग्रामीणों ने अपने विचार स्पष्ट रूप से रखे कि वे इस परियोजना को मंजूरी नहीं देंगे, क्योंकि यह उनकी जीवनशैली और प्राकृतिक संसाधनों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

परियोजना का प्रभाव: ग्रामीणों की चिंता

एनएचपीसी द्वारा प्रस्तावित इस परियोजना के तहत एक विशाल बांध का निर्माण किया जाएगा, जिससे जलविद्युत  उत्पादन होगा। लेकिन ग्रामीणों का मानना है कि इस बांध के निर्माण से उनकी उपजाऊ भूमि डूब जाएगी और उन्हें विस्थापित होना पड़ेगा। साथ ही, पर्यावरण पर भी इसका गंभीर प्रभाव पड़ेगा, जिससे वनस्पति, वन्यजीव और जैव विविधता को नुकसान हो सकता है।

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ग्रामीणों ने यह भी बताया कि इस परियोजना से नदी के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा आएगी, जिससे उनके कृषि कार्यों और पेयजल की उपलब्धता पर प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, क्षेत्र में पारंपरिक जीवनशैली और सांस्कृतिक धरोहर पर भी इस परियोजना का बुरा असर पड़ सकता है।

पर्यावरणीय असंतुलन का खतरा

अरुणाचल प्रदेश के पहाड़ी और नदी क्षेत्रों में पहले से ही पर्यावरणीय असंतुलन की स्थिति बनी हुई है। इस प्रकार की बड़ी जलविद्युत  परियोजनाओं से न केवल भूमि का नुकसान होता है, बल्कि पर्यावरणीय तंत्र भी प्रभावित होता है। पर्यावरणविदों का कहना है कि इस प्रकार के बांध निर्माण से बाढ़, भू-स्खलन और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

सियांग नदी, जो इस क्षेत्र की प्रमुख नदी है, पर बनने वाले बांध से नदी के प्राकृतिक बहाव में बाधा आएगी, जिससे स्थानीय वनस्पति और वन्यजीवों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, यह परियोजना क्षेत्र की पारिस्थितिकी को स्थायी रूप से बदल सकती है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन बढ़ सकता है।

विस्थापन का मुद्दा

स्थानीय लोग इस परियोजना के खिलाफ मुख्य रूप से इसलिए विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनी जमीन से बेदखल होने का डर सता रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि इस परियोजना के चलते उन्हें अपनी पुश्तैनी जमीन से हाथ धोना पड़ेगा, जो उनके लिए न केवल आर्थिक बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है।

बांध निर्माण के लिए जिस बड़े भूभाग की आवश्यकता होगी, वह स्थानीय लोगों के कृषि क्षेत्र को नष्ट कर देगा। इसके परिणामस्वरूप वे अपनी आजीविका के लिए दूसरे स्थानों पर जाने के लिए मजबूर होंगे, जो उनके जीवन के लिए एक बड़ा संकट खड़ा कर सकता है।

एनएचपीसी की प्रतिक्रिया

एनएचपीसी ने इस परियोजना के लिए सर्वेक्षण कार्य शुरू कर दिया है और वे इस क्षेत्र की परियोजना की व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। हालांकि, स्थानीय लोगों के विरोध को देखते हुए एनएचपीसी ने आश्वासन दिया है कि इस परियोजना के दौरान सभी सुरक्षा मानकों और पर्यावरणीय मानकों का पालन किया जाएगा।

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इसके बावजूद, स्थानीय लोगों का यह मानना है कि यह परियोजना उन्हें कोई लाभ नहीं देगी, बल्कि उनके जीवन पर संकट उत्पन्न करेगी। ग्रामीणों ने एनएचपीसी और राज्य सरकार से मांग की है कि वे इस परियोजना को रद्द करें और उनकी भूमि और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करें।

स्थानीय लोगों की मांग

ग्रामीणों ने मांग की है कि इस परियोजना को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए और उनकी भूमि को संरक्षित किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार को उनके जीवन और पर्यावरण की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।

सियांग इंडिजिनस फार्मर्स फोरम (SIFF) के महासचिव डोंगो लिबांग ने कहा कि इस परियोजना के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी और वे सरकार से अपील करते हैं कि इस परियोजना को रद्द किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है और इस प्रकार की परियोजनाओं से उसे बचना चाहिए।

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