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Parliament Session: संसद सत्र में विपक्षी एकता में दरार, समाजवादी पार्टी और TMC ने प्रदर्शन से खुद को किया अलग

Parliament Session: देश की संसद में इस समय सर्दी के सत्र का आयोजन हो रहा है, और इसी सत्र में कई राजनीतिक घटनाक्रम सामने आ रहे हैं। जहां एक ओर विपक्षी दल सरकार के खिलाफ जमकर प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर संसद के भीतर भी गतिरोध का माहौल बन चुका है। विपक्ष के दलों के बीच की एकता में भी दरार देखने को मिल रही है। खासकर समाजवादी पार्टी (SP) और तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने विपक्षी प्रदर्शनों से खुद को अलग कर लिया है, जिससे भारतीय राष्ट्रीय लोकदल (INDI) गठबंधन को बड़ा झटका लगा है।

विपक्षी एकता में दरार: समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस का अलग रुख

हाल ही में, जब विपक्षी दल संसद के बाहर अपने मुद्दों पर प्रदर्शन कर रहे थे, तब समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने इन प्रदर्शनों से खुद को अलग कर लिया। यह घटनाक्रम विपक्षी गठबंधन के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है, क्योंकि इन दोनों दलों के इस कदम से विपक्षी एकता में खटास आ सकती है। इन दोनों दलों ने यह स्पष्ट किया कि उनका अपना रुख है और वे किसी भी तरह के प्रदर्शन में शामिल नहीं होंगे। इस स्थिति ने कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को चौंका दिया, जो सरकार के खिलाफ एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन करने की योजना बना रहे थे।

Parliament Session: संसद सत्र में विपक्षी एकता में दरार, समाजवादी पार्टी और TMC ने प्रदर्शन से खुद को किया अलग

रेणुका चौधरी का बयान: ‘हाउस चलाने की जिम्मेदारी सरकार की है’

इसी बीच, कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ने संसद में गतिरोध की स्थिति को लेकर भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोला। रेणुका चौधरी ने कहा कि विपक्ष अपनी ओर से सदन को चलाने की पूरी कोशिश करता है, क्योंकि जनता को उम्मीद है कि यहां उनकी आवाज उठाई जाएगी। लेकिन, अगर सरकार सदन चलाने के लिए तैयार नहीं है, तो यह सरकार की जिम्मेदारी है, न कि विपक्ष की।

रेणुका चौधरी ने यह भी कहा कि अगर सरकार चाहती है कि सदन चले, तो वह इसे चला सकती है। अगर सरकार नहीं चाहती, तो सबको पता है कि इसके पीछे क्या साजिश हो सकती है। उनका कहना था कि यह विपक्ष की जिम्मेदारी नहीं है कि वह सदन चलाए, बल्कि यह उस व्यक्ति या सरकार की जिम्मेदारी है जो संसद की कुर्सी पर बैठा है। अगर वे सक्षम हैं, तो सदन को चलाएंगे, और अगर वे सक्षम नहीं हैं, तो वह इसे नहीं चला पाएंगे।

अधिकारियों की जिम्मेदारी पर सवाल

रेणुका चौधरी ने इस बयान के जरिए न केवल सरकार पर आरोप लगाया, बल्कि उन अधिकारियों और नेताओं की जिम्मेदारी पर भी सवाल उठाए जो सदन को चलाने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। उनका मानना था कि जब सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं, तो उन्हें इसका जवाब देना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष सदन में जनता के मुद्दों को उठाने के लिए पूरी तरह से तैयार है, लेकिन जब सदन में सुचारु रूप से काम नहीं होता और सरकार अपने कर्तव्यों से विमुख रहती है, तो यह लोकतंत्र की हत्या के समान है।

संसद में गतिरोध: विपक्ष के आरोप और सरकार का बचाव

संसद में जिस तरह से गतिरोध की स्थिति बन रही है, उसमें विपक्ष सरकार पर अपनी बात रखने का अवसर न देने का आरोप लगा रहा है। विपक्ष के नेताओं का कहना है कि सरकार विपक्षी नेताओं की बातों को अनसुना करती है, और इसलिए सदन का काम ठप हो जाता है। दूसरी ओर, सरकार का पक्ष है कि विपक्ष सदन में अनुशासनहीनता पैदा कर रहा है और इस वजह से कामकाज प्रभावित हो रहा है।

सरकार की ओर से यह भी दावा किया जा रहा है कि विपक्षी दलों की मनमानी की वजह से संसद में किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा नहीं हो पा रही है। सरकार का कहना है कि अगर विपक्ष अपनी भूमिका सही तरीके से निभाता, तो संसद में गतिरोध की स्थिति नहीं होती।

समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस का रुख: क्या विपक्ष की एकता में टूट?

समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस का प्रदर्शनों से अलग होना विपक्षी एकता के लिए बड़ा झटका हो सकता है। दोनों दलों ने अपनी राजनीतिक मजबूरियों का हवाला देते हुए यह कदम उठाया। जहां समाजवादी पार्टी का कहना है कि उसे उत्तर प्रदेश में अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच अधिक सक्रिय रहना है, वहीं तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अलग रुख अपनाया है।

इस स्थिति ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या विपक्षी एकता की भविष्यवाणी करने वाले नेताओं के लिए अब कठिनाई हो सकती है। इन दलों के अलग-अलग रुख से यह स्पष्ट हो रहा है कि आने वाले समय में विपक्ष के अंदर और भी विभाजन हो सकता है।

क्या विपक्ष की एकजुटता की कोशिशों पर असर पड़ेगा?

विपक्षी दलों के अलग-अलग रुख से यह सवाल उठता है कि क्या आगामी चुनावों में विपक्ष एकजुट हो पाएगा। कांग्रेस के लिए यह एक चुनौती हो सकती है, क्योंकि अन्य दलों के रुख से उसे अपने विरोधी दलों के साथ संबंधों को मजबूत करने में कठिनाई हो सकती है। वहीं, भाजपा के लिए भी यह समय है जब उसे विपक्षी एकता के टूटने को भुनाना चाहिए, ताकि वह अगले चुनावों में मजबूती से खड़ी हो सके।

संसद सत्र के दौरान जारी गतिरोध और विपक्षी दलों के बीच की दरार ने देश की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। जहां कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल सरकार के खिलाफ अपनी आवाज उठा रहे हैं, वहीं समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने खुद को अलग कर लिया है। रेणुका चौधरी के बयान ने यह साबित कर दिया है कि सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है। आने वाले समय में यह देखना होगा कि संसद के भीतर और बाहर यह गतिरोध कब खत्म होता है, और विपक्षी दलों के रुख में किस प्रकार के बदलाव होते हैं।

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