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अंग्रेजी कानूनों का उद्देश्य भारतीयों को गुलाम बनाना था’ – PM Modi ने नए आपराधिक कानूनों की समीक्षा के दौरान कही बड़ी बात

चंडीगढ़ पहुंचे PM Modi ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज (पीईसी), सेक्टर-12 में आयोजित एक समारोह के दौरान देश के नए आपराधिक कानूनों की समीक्षा की। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने भारतीय न्यायिक प्रणाली और नए कानूनों के महत्व पर चर्चा की। पीएम मोदी के संबोधन ने भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली के विकास और अंग्रेजी कानूनों के औपनिवेशिक प्रभाव पर प्रकाश डाला। आइए जानते हैं उनके संबोधन की मुख्य बातें।

‘हर कानून को व्यावहारिक दृष्टिकोण से परखा गया है’

अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि स्वतंत्रता के पिछले सात दशकों में भारतीय न्यायिक प्रणाली ने कई चुनौतियों का सामना किया है। उन्होंने बताया कि भारतीय न्याय संहिता (Indian Judicial Code) गहन विचार-विमर्श के बाद तैयार की गई है। हर कानून को व्यावहारिक दृष्टिकोण से परखा गया और भविष्य की आवश्यकताओं के अनुसार इसे परिष्कृत किया गया। पीएम मोदी ने इस उपलब्धि के लिए सुप्रीम कोर्ट, माननीय न्यायाधीशों और देश के सभी उच्च न्यायालयों का विशेष रूप से आभार व्यक्त किया।

अंग्रेजी कानूनों का उद्देश्य भारतीयों को गुलाम बनाना था' - PM Modi ने नए आपराधिक कानूनों की समीक्षा के दौरान कही बड़ी बात

‘अंग्रेजी कानूनों का उद्देश्य भारतीयों को गुलाम बनाना था’

प्रधानमंत्री ने कहा कि देश का पहला बड़ा स्वतंत्रता संग्राम 1857 में लड़ा गया। इस संग्राम ने ब्रिटिश शासन की जड़ों को हिला कर रख दिया। इसके बाद, 1860 में ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code – IPC) को पेश किया।

इसके कुछ ही वर्षों बाद, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code – CrPC) अस्तित्व में आई। इन कानूनों का उद्देश्य भारतीयों को दंडित करना और उन्हें गुलाम बनाए रखना था। पीएम मोदी ने कहा कि दुर्भाग्यवश, स्वतंत्रता के बाद के दशकों तक हमारे कानून इन्हीं दंडात्मक सोच और मानसिकता के इर्द-गिर्द घूमते रहे, जो नागरिकों को गुलाम मानने के आधार पर बनाए गए थे।

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‘सदियों की गुलामी के बाद आजादी मिली’

पीएम मोदी ने कहा कि 1947 में जब हमारा देश सदियों की गुलामी के बाद आजाद हुआ, तो देशवासियों ने सोचा था कि अब ब्रिटिश कानूनों से भी आजादी मिलेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ये कानून ब्रिटिश शासन के अत्याचारों और शोषण के उपकरण थे। जब देश में स्वतंत्रता का सवेरा हुआ, तो लोगों ने यह सपना देखा था कि इन कानूनों से मुक्ति मिलेगी, लेकिन वह सपना अधूरा ही रहा।

नए कानूनों में सुधार की प्रक्रिया

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता एक व्यापक दस्तावेज है और इसे तैयार करने की प्रक्रिया भी उतनी ही व्यापक है। उन्होंने बताया कि देश के मुख्य न्यायाधीशों ने इस प्रक्रिया में अपने सुझाव और मार्गदर्शन दिए हैं। साथ ही, सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और सुप्रीम कोर्ट के जजों ने भी इसमें विशेष योगदान दिया है।

‘सबूतों से छेड़छाड़ नहीं हो सकेगी’

कार्यक्रम के दौरान, चंडीगढ़ पुलिस ने प्रधानमंत्री के सामने एक काल्पनिक हत्या के अपराध दृश्य (Crime Scene) का प्रदर्शन किया। इस दौरान पुलिस टीम ने बताया कि अब अपराध स्थल पर ही वीडियोग्राफी की जाती है, जिससे सबूतों से छेड़छाड़ नहीं हो सकेगी।

इसके अलावा, पीड़ित और गवाहों के बयान भी वीडियो रिकॉर्डिंग के जरिए दर्ज किए जाएंगे। महिला और बच्चों से जुड़े अपराधों को लेकर यह नियम बनाया गया है कि सूचना प्राप्त होने के दो महीने के भीतर मामलों का निपटारा करना अनिवार्य होगा।

न्याय प्रक्रिया को आम जनता के सामने लाने की पहल

यह पहली बार है कि कानूनों के कार्यान्वयन को जनता के सामने प्रदर्शित किया जा रहा है। इस दौरान यह दिखाया गया कि कैसे जांच से लेकर न्याय तक की प्रक्रिया पारदर्शी और प्रभावी हो सकती है। प्रधानमंत्री ने इस पहल की सराहना की और इसे न्यायिक सुधार की दिशा में एक अहम कदम बताया।

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प्रधानमंत्री ने देखी प्रदर्शनी

कार्यक्रम के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गृह मंत्री अमित शाह के साथ प्रदर्शनी हॉल का दौरा किया। इस दौरान एसएसपी कंवरजीत कौर ने उन्हें प्रदर्शनी से जुड़ी जानकारी दी। प्रदर्शनी में आपराधिक मामलों में कानून के कार्यान्वयन की झलक दिखाई गई।

‘नए कानून भविष्य के लिए मील का पत्थर’

प्रधानमंत्री ने कहा कि नए कानूनों का उद्देश्य नागरिकों को सशक्त बनाना और न्याय प्रक्रिया को सरल बनाना है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अब भारत को गुलामी की मानसिकता से बाहर आकर अपने नागरिकों को केंद्र में रखते हुए कानून बनाने की जरूरत है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चंडीगढ़ दौरे ने भारतीय न्याय प्रणाली में सुधार और नए कानूनों की प्रासंगिकता को एक बार फिर उजागर किया। अंग्रेजी कानूनों के औपनिवेशिक प्रभाव से मुक्त होकर भारतीय न्याय प्रणाली को आधुनिक और पारदर्शी बनाने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है। प्रधानमंत्री का यह संबोधन देशवासियों को आश्वस्त करता है कि आने वाले समय में न्याय प्रक्रिया अधिक प्रभावी और नागरिक केंद्रित होगी।

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