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Punjab: नामांकन रद्द होने पर कांग्रेस, अकाली दल और बीजेपी ने किया राष्ट्रीय राजमार्ग जाम, प्रशासन के खिलाफ लगाए नारे

Punjab: पंजाब के मालोट के वार्ड नंबर 12 में उपचुनाव के लिए दाखिल नामांकन रद्द होने के विरोध में कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेताओं ने एकजुट होकर दिल्ली-फाजिल्का राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 9 पर बट्टी वाला चौक पर धरना दिया। यह प्रदर्शन शनिवार सुबह 11 बजे शुरू हुआ और लगभग एक घंटे तक चला। प्रदर्शनकारियों ने सरकार और प्रशासन पर तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए जोरदार नारेबाजी की।

नामांकन रद्द होने का मामला

मालोट के वार्ड नंबर 12 में उपचुनाव के लिए छह उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किए थे। शुक्रवार को जांच के बाद केवल आम आदमी पार्टी (आप) के उम्मीदवार का नामांकन सही पाया गया, जबकि कांग्रेस, एसएडी और बीजेपी के उम्मीदवारों के नामांकन “अनियमितताओं” के आधार पर रद्द कर दिए गए। इस फैसले से नाराज तीनों पार्टियों ने शुक्रवार रात एसडीएम कार्यालय के बाहर भी धरना दिया था।

शनिवार को प्रदर्शनकारियों ने फिर से राजमार्ग पर धरना देकर सरकार और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की। प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि सरकार ने विपक्षी दलों के नामांकन रद्द कराकर लोकतंत्र की हत्या की है।

Punjab: नामांकन रद्द होने पर कांग्रेस, अकाली दल और बीजेपी ने किया राष्ट्रीय राजमार्ग जाम, प्रशासन के खिलाफ लगाए नारे

प्रदर्शन के कारण यात्री परेशान

धरने के दौरान राजमार्ग पर यातायात बाधित हो गया, जिससे यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। हालांकि, प्रदर्शनकारियों द्वारा बुलाए गए शहर बंद का असर बाजारों पर नहीं पड़ा और दुकानें खुली रहीं।

प्रदर्शन का नेतृत्व शिरोमणि अकाली दल के पूर्व विधायक हरप्रीत सिंह, कांग्रेस की पूर्व विधायक रूपिंदर कौर रूबी और बीजेपी के शहरी अध्यक्ष सुशील जलहोत्रा ने किया। बसपा नेताओं ने भी धरने में पहुंचकर अपना समर्थन दिया।

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‘सरकार ने लोकतंत्र की हत्या की’

पूर्व एसएडी विधायक हरप्रीत सिंह ने आरोप लगाया कि सरकार ने विपक्षी उम्मीदवारों के नामांकन रद्द कराकर लोकतंत्र का गला घोंट दिया है। उन्होंने कहा, “यह आश्चर्यजनक है कि सिर्फ आप के उम्मीदवार का नामांकन सही पाया गया, जबकि अन्य सभी के नामांकन रद्द कर दिए गए। यह स्पष्ट है कि सरकार खुलेआम शक्ति का दुरुपयोग कर रही है।”

‘चुनाव कराने से डर रही है आप सरकार’

पूर्व कांग्रेस विधायक रूपिंदर कौर रूबी ने कहा कि जिन कारणों से नामांकन रद्द किए गए हैं, वह प्रशासनिक कर्मचारियों की गलती है। उन्होंने कहा, “नामांकन की फीस एसडीएम कार्यालय के कर्मचारियों ने ही जमा कराई थी और उन्होंने जानबूझकर गलत गाइडेंस दी।”

उन्होंने आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी को हार का डर है, इसलिए वह चुनाव कराने से बच रही है। उन्होंने यह भी कहा कि न्याय पाने के लिए वे इस मामले को अदालत तक ले जाएंगी।

प्रदर्शन में मौजूद प्रमुख नेता और कार्यकर्ता

प्रदर्शन में कांग्रेस, एसएडी और बीजेपी के कई बड़े नेता और कार्यकर्ता मौजूद रहे। कांग्रेस के जिला अध्यक्ष शुभदीप सिंह बिट्टू, हरपाल विर्दी, दिनेश गर्ग टोनी, प्रवीण जैन, बिल्लू शर्मा, गौरव बब्बर, प्रेमी नागपाल, एसएडी उम्मीदवार गोल्डी सिंह, कांग्रेस उम्मीदवार कुलवंत सिंह मक्कर, बीजेपी उम्मीदवार हंसराम, हैप्पी द्वार और अन्य नेताओं ने इस प्रदर्शन में हिस्सा लिया।

‘नामांकन में अनियमितता के कारण हुआ रद्द’ – एसडीएम

एसडीएम संजीव कुमार ने कहा कि जिन उम्मीदवारों के नामांकन रद्द किए गए हैं, उन्होंने पूरी फीस जमा नहीं की थी। नगर परिषद मालोट प्रथम श्रेणी की श्रेणी में आता है, जिसकी फीस ₹150 है। लेकिन संबंधित उम्मीदवारों ने तृतीय श्रेणी की फीस ₹100 जमा की, जिसके कारण नामांकन को अनियमितता के आधार पर रद्द किया गया।

विपक्ष का आरोप: सरकार का दमनकारी रवैया

विपक्षी दलों ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह विपक्षी दलों की आवाज दबाने के लिए दमनकारी रवैया अपना रही है। पूर्व विधायक हरप्रीत सिंह ने कहा कि अधिकारियों ने सरकार के दबाव में विपक्षी उम्मीदवारों के नामांकन रद्द किए हैं।

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धरने का असर और भविष्य की रणनीति

हालांकि धरने के दौरान यातायात बाधित हुआ, लेकिन शहर बंद का आह्वान असरदार नहीं रहा। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि वे इस अन्याय के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगे और लोकतंत्र की रक्षा के लिए सभी संभव कदम उठाएंगे।

मालोट के वार्ड नंबर 12 के नामांकन रद्द होने का मामला पंजाब की राजनीति में बड़ा मुद्दा बन गया है। कांग्रेस, एसएडी और बीजेपी ने इस मुद्दे पर एकजुट होकर प्रदर्शन किया, जो यह दर्शाता है कि विपक्षी दल सरकार की नीतियों के खिलाफ मिलकर काम करने को तैयार हैं।

यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मामला आगे किस दिशा में जाता है और अदालत में विपक्ष की याचिका का क्या परिणाम होता है। हालांकि, यह स्पष्ट है कि इस विवाद ने पंजाब की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है।

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