Veer Bal Diwas क्यों मनाया जाता है? जानिए गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों के संघर्ष की कहानी
Veer Bal Diwas: 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस पूरे देश में, विशेष रूप से पंजाब में मनाया जाता है। यह दिवस सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह के चार साहिबजादों के सम्मान में मनाया जाता है।
गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों ने धर्म के लिए सब कुछ बलिदान कर दिया था। 26 दिसंबर को विशेष रूप से बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को श्रद्धांजलि देने के रूप में यह दिन मनाया जाता है, जो इस दिन शहीद हो गए थे। उनके बलिदान को याद करने के लिए हर साल वीर बाल दिवस मनाया जाता है।
मुगलों के अत्याचारों से संघर्ष
गुरु गोविंद सिंह के चार बेटे थे: अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह। गुरु गोविंद सिंह के छोटे साहिबजादों, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह ने इस्लाम को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था। मुग़ल शासक सिरहिंद के नवाब वजीर खान ने उन्हें दीवार में ज़िंदा चुनवाकर शहीद कर दिया था। वीर बाल दिवस 26 दिसंबर को उनके इस बलिदान, समर्पण और शहादत को याद करने के लिए मनाया जाता है, जो एक अद्वितीय देशभक्ति का रूप है।
गुरु गोविंद सिंह का योगदान
गुरु गोविंद सिंह का जीवन संघर्ष से भरा हुआ था। 1699 में जब उन्होंने बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की, तो उनके चारों पुत्र इस पंथ के सदस्य बने। मुगलों के शासकों ने गुरु गोविंद सिंह को हर हाल में पकड़ने का प्रयास किया। इस दौरान उनकी पूरी परिवार की स्थिति कठिन हो गई। गुरु गोविंद सिंह के दोनों बड़े बेटे शहीद हो गए थे। इस कारण गुरु गोविंद सिंह और उनके परिवार को गहरे संकट का सामना करना पड़ा।
गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादे अपनी मां के साथ एक गुप्त स्थान पर छिपे हुए थे, लेकिन मुगलों ने उन्हें पकड़ लिया। मुगलों ने उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए बहुत प्रताड़ित किया, लेकिन दोनों छोटे साहिबजादों ने धर्म परिवर्तन से इंकार कर दिया।
साहिबजादों का बलिदान
गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादे, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह, जो उस समय मात्र 9 और 7 साल के थे, मुगलों के अत्याचारों का सामना करते हुए भी अपने धर्म और पंथ के लिए अडिग रहे। मुगलों ने दोनों बच्चों को दीवार में ज़िंदा चुनवाकर शहीद कर दिया। यह घटना 26 दिसंबर को हुई, और यह दिन वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
साहिबजादों का यह साहसिक बलिदान न केवल सिख समाज बल्कि समूचे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके बलिदान को याद करके हम न केवल उनके प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को उनके अद्वितीय साहस और धर्म के प्रति निष्ठा से भी परिचित कराते हैं।
वीर बाल दिवस का महत्व
वीर बाल दिवस का उद्देश्य विशेष रूप से युवा पीढ़ी को गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों के बलिदान के बारे में जागरूक करना है। यह दिन सिख धर्म की समर्पण भावना, साहस, और अपने धर्म के प्रति निष्ठा का प्रतीक है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य न केवल गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों की शहादत को श्रद्धांजलि देना है, बल्कि यह देशवासियों को सिखाता है कि किसी भी धर्म, संस्कृति या विश्वास के लिए संघर्ष करते हुए बलिदान देना सर्वोच्च सम्मान की बात है।
भारत सरकार ने 2022 में 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मान्यता दी। इस दिन को पूरे देश में विशेष रूप से स्कूलों और कॉलेजों में मनाया जाता है। यह दिवस गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों के संघर्ष और बलिदान की भावना को जीवित रखने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
बाल पुरस्कार की घोषणा
वीर बाल दिवस पर एक और महत्वपूर्ण पहल की गई है। भारत सरकार ने पहली बार यह निर्णय लिया है कि हर साल 26 दिसंबर को भारतीय बाल पुरस्कार (बाल पुरस्कार) दिए जाएंगे, जो पहले गणतंत्र दिवस के दिन दिए जाते थे। इस साल, 2024 में, कुल 17 बच्चों को यह पुरस्कार दिया जाएगा, और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा इन बच्चों को सम्मानित किया जाएगा। यह बाल पुरस्कार उन बच्चों को दिया जाता है जिन्होंने समाज में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और जिन्होंने अपने क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त की है।
वीर बाल दिवस हमें अपने शहीदों के बलिदान और समर्पण की याद दिलाता है। गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों ने धर्म की रक्षा के लिए जो कुर्बानी दी, वह न केवल सिख समुदाय बल्कि पूरे देश के लिए गौरव का विषय है। इस दिन को मनाकर हम उनके योगदान को न केवल याद करते हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करते हैं कि आने वाली पीढ़ी उनके साहस और बलिदान को समझे और उसका आदर्श अपनाए। 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाना एक ऐसी श्रद्धांजलि है, जो हमें अपने इतिहास को न केवल याद करने का अवसर देती है, बल्कि यह हमें अपने मूल्यों और धर्म के प्रति निष्ठा को बनाए रखने की प्रेरणा भी देती है।