Supreme Court ने ‘लव जिहाद’ पर ट्रायल कोर्ट की टिप्पणियां हटाने की याचिका खारिज की
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Supreme Court ने गुरुवार को एक याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा लव जिहाद पर की गई कुछ टिप्पणियों को रिकॉर्ड से हटाने की मांग की गई थी। ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि ‘लव जिहाद और धर्म परिवर्तन के मुद्दे को हल्के में नहीं लिया जा सकता और अवैध धर्म परिवर्तन देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए एक बड़ा खतरा है।’ यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश के बरेली में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की फास्ट ट्रैक कोर्ट-1 ने 30 सितंबर 2024 को अपने फैसले में की थी।
याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का रुख
जस्टिस हृषिकेश राय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या सुप्रीम कोर्ट ट्रायल कोर्ट द्वारा साक्ष्यों के आधार पर की गई टिप्पणियों को हटाने का अधिकार रखता है। कोर्ट ने कहा, “आपका इस मामले से क्या संबंध है? क्या हम अनुच्छेद 32 के तहत इस तरह की याचिका पर सुनवाई कर सकते हैं? क्या हमें इसे खारिज करना चाहिए या आप इसे वापस लेंगे?”
बेंच के रुख को देखते हुए, याचिकाकर्ता के वकील ने जनहित याचिका (पीआईएल) वापस ले ली। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह रुख महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न्यायिक प्रक्रियाओं में टिप्पणी हटाने जैसे संवेदनशील मुद्दों पर कानून और संविधान की सीमाओं को स्पष्ट करता है।
सरकारी कर्मचारियों पर हमले के आरोप में दर्ज एफआईआर खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 2015 में सरकारी कर्मचारियों पर ड्यूटी के दौरान हमला करने के आरोप में दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया। कोर्ट ने पाया कि जांच की प्रक्रिया में प्रारंभिक स्तर पर ही कानूनी खामियां थीं।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह की बेंच ने इस मामले में अपील की सुनवाई की। यह अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2023 के आदेश के खिलाफ थी, जिसमें वाराणसी के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा आपराधिक कार्रवाई शुरू करने के निर्देश को चुनौती दी गई थी।
बेंच ने कहा, “हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि याचिकाकर्ता आपराधिक कार्रवाई को रद्द कराने का मामला बनाने में सक्षम है।” कोर्ट ने पाया कि एफआईआर में आईपीसी की धारा 353 (सार्वजनिक सेवक को उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का उपयोग) के तहत कोई विशेष कार्य का उल्लेख नहीं था। इसमें केवल इतना कहा गया था कि याचिकाकर्ता और उसके सहयोगी “उपद्रव पैदा कर रहे थे।”
जम्मू-कश्मीर CAT के लिए स्थायी भवन और स्टाफ की मांग
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) के लिए स्थायी भवन और स्थायी कर्मचारियों की मांग का समर्थन किया। कोर्ट ने कहा कि न्यायिक और अर्ध-न्यायिक निकायों में आउटसोर्स कर्मचारियों को तैनात करना सरकार के लिए उचित नहीं होगा।
जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस उज्जल भुयान की बेंच को केंद्र सरकार ने सूचित किया कि CAT जम्मू के संचालन के लिए एक भवन किराए पर लिया गया है और वहां आउटसोर्स कर्मचारी तैनात किए जाएंगे।
बेंच ने सुझाव दिया कि न्यायिक निकायों में स्थिरता और दक्षता के लिए स्थायी भवन और कर्मचारी जरूरी हैं। यह कदम न्यायिक प्रक्रियाओं को और अधिक प्रभावी बनाने में मदद करेगा।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का व्यापक प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट के ये तीनों फैसले न केवल कानूनी प्रक्रियाओं को मजबूत करते हैं, बल्कि न्यायालय की प्राथमिकताओं और संवेदनशील मुद्दों पर उसकी दृष्टि को भी उजागर करते हैं। लव जिहाद पर टिप्पणी हटाने की याचिका को खारिज करना न्यायिक स्वायत्तता और साक्ष्यों के महत्व को रेखांकित करता है। सरकारी कर्मचारियों पर हमले की एफआईआर खारिज करने का फैसला यह सुनिश्चित करता है कि जांच प्रक्रिया में कानूनी खामियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर CAT के लिए स्थायी भवन और कर्मचारियों की मांग का समर्थन करना न्यायिक संस्थानों को और अधिक प्रभावी और विश्वसनीय बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सुप्रीम कोर्ट का यह दृष्टिकोण न्याय प्रणाली को सुधारने और आम नागरिकों के विश्वास को मजबूत करने में मदद करेगा।
सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले कई महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करते हैं। न्यायिक संस्थानों की स्वतंत्रता, कानूनी प्रक्रियाओं की निष्पक्षता और संस्थागत स्थिरता को प्राथमिकता देकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह साबित किया है कि यह संविधान और कानून के दायरे में रहकर न्याय प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। इन फैसलों का प्रभाव न केवल मौजूदा मामलों पर पड़ेगा, बल्कि भविष्य की न्यायिक प्रक्रियाओं के लिए भी एक मिसाल कायम करेगा।