Supreme Court: “130 साल पुराना बांध, 60 लाख लोग खतरे में… सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा- कब जागेगा केंद्र सरकार?”
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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (8 जनवरी 2024) को मुल्लापेरियार बांध से संबंधित एक मामले में चौंकाने वाली टिप्पणी की और कहा कि “बांध सुरक्षा कानून” को संसद द्वारा पारित किए जाने के बावजूद, कार्यपालिका अभी तक अपनी नींद से जागी नहीं है। यह टिप्पणी उस समय आई जब केरल सरकार ने यह कहा कि केंद्र सरकार ने 2021 में बांध सुरक्षा कानून लागू किया था, लेकिन इस कानून के तहत किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गई है और कोर्ट में चल रही कार्यवाही को बाधित करने का प्रयास किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति उज्जवल भuyan शामिल थे, ने इस मामले में कहा कि 130 साल पुराने मुल्लापेरियार बांध की सुरक्षा को लेकर जो भी कार्रवाई होनी चाहिए, वह केंद्र सरकार की ओर से पूरी तरह से अनुपस्थित रही है। अदालत ने इस मामले में केंद्रीय सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए यह भी कहा कि संसद द्वारा पारित किए गए बांध सुरक्षा कानून के बावजूद अब तक कोई राष्ट्रीय समिति गठित नहीं की गई है, जो कि इस कानून के तहत अनिवार्य था।
60 लाख लोग खतरे में
यह मामला काफी गंभीर है, क्योंकि यदि मुल्लापेरियार बांध से पानी का स्तर बढ़ता है और बांध टूटता है तो यह 50 से 60 लाख लोगों के जीवन के लिए खतरा बन सकता है। वरिष्ठ अधिवक्ता वी कृष्णमूर्ति, जो तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश हो रहे थे, ने कहा कि इस कानून के तहत केंद्र सरकार ने एक बांध सुरक्षा प्राधिकरण का गठन किया है और बांध की संरचना का ऑडिट भी किया जाएगा। साथ ही, याचिकाकर्ता मैथ्यू जे नेदुम्पारा ने सुप्रीम कोर्ट से इस आदेश की समीक्षा करने का अनुरोध किया है, क्योंकि उनका मानना है कि अगर बांध टूटता है तो यह बड़ी तबाही ला सकता है।
कोर्ट की सख्त प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में जवाब तलब किया और अटॉर्नी जनरल से इस मामले में सहायता की मांग की। खंडपीठ ने कहा कि बांध सुरक्षा कानून के तहत राष्ट्रीय समिति का गठन 60 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए था, लेकिन अब तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। इसके अलावा, बांध सुरक्षा कानून के तहत राष्ट्रीय समिति के गठन, उसकी संरचना और कार्यों को लेकर नियम/नियमावली भी नहीं बनाई गई हैं।
केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु सरकार की यह रिपोर्ट कि केंद्रीय सरकार ने 21 नवंबर 2024 को राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण के अध्यक्ष द्वारा एक नई निगरानी समिति का गठन किया है, यह विचारणीय है। यह समिति 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित निगरानी समिति की जगह काम करेगी। हालांकि, कोर्ट ने इस पर सवाल उठाया कि क्या बांध सुरक्षा कानून में निगरानी समिति के गठन का कोई प्रावधान है या नहीं।
अटॉर्नी जनरल से सहायता की मांग
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल से सहायता मांगी और उनसे यह निर्देश दिया कि वे राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण से यह पूछें कि कानून के तहत उनकी जिम्मेदारी क्या है। खंडपीठ ने कहा कि बांध सुरक्षा कानून के तहत सभी प्रावधानों को प्रभावी बनाने के लिए जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए। अटॉर्नी जनरल को यह निर्देश दिया गया कि वे केंद्र सरकार से सलाह लेकर इस मुद्दे पर अधिक जानकारी प्राप्त करें और सुनिश्चित करें कि कानून के तहत सभी जिम्मेदारियाँ पूरी की जाएं।
कानून का महत्व और वर्तमान स्थिति
बांध सुरक्षा कानून का उद्देश्य देशभर में स्थित बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, ताकि किसी भी प्रकार की दुर्घटना या प्राकृतिक आपदा की स्थिति में नागरिकों के जीवन और संपत्ति को सुरक्षा मिल सके। मुल्लापेरियार बांध के मामले में भी यही खतरा मंडरा रहा है, जहां अगर बांध से जुड़ी कोई भी घटना होती है तो लाखों लोग प्रभावित हो सकते हैं। इस मामले में कोर्ट की सक्रियता और केंद्र सरकार की उदासीनता दोनों ही चिंता का कारण बने हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि राष्ट्रीय समिति का गठन और अन्य आवश्यक प्रावधानों को लागू करना सरकार की जिम्मेदारी है। साथ ही, अदालत ने यह भी कहा कि अगर यह कदम नहीं उठाए जाते हैं तो इससे ना सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया में देरी होगी, बल्कि लाखों लोगों के जीवन को भी खतरा हो सकता है।
न्यायिक सक्रियता और जिम्मेदारी
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता यह दर्शाती है कि न्यायपालिका अपने कर्तव्यों को निभाते हुए न सिर्फ मामलों का निपटान करती है, बल्कि सरकारी संस्थाओं और अधिकारियों को भी उनकी जिम्मेदारी याद दिलाती है। मुल्लापेरियार बांध का मामला सिर्फ एक कानूनी विवाद नहीं है, बल्कि यह लाखों लोगों की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है और इसलिए सरकार की जिम्मेदारी और जवाबदेही भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और टिप्पणियों से यह साफ है कि केंद्र सरकार को इस मामले में तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए और बांध सुरक्षा के सभी प्रावधानों को प्रभावी बनाना चाहिए। इस दिशा में कोई भी और देरी देश के नागरिकों के लिए एक बड़ा खतरा बन सकती है।