ताजा समाचार

Supreme Court का बड़ा फैसला, निजी संपत्ति को सार्वजनिक कल्याण के लिए नहीं लिया जा सकता

Supreme Court: क्या किसी की निजी संपत्ति को सार्वजनिक कल्याण के लिए लिया जा सकता है? इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं माना जा सकता। निजी संपत्ति का सार्वजनिक हित में पुनरावलोकन किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पूर्व में आए आदेश को बहुमत से पलट दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया?

मुख्य न्यायाधीश ने बहुमत के फैसले में कहा कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक भौतिक संसाधनों के रूप में नहीं देखा जा सकता। सरकार केवल कुछ संसाधनों को सामुदायिक संसाधनों के रूप में मानकर उनका उपयोग कर सकती है, न कि सभी संसाधनों का। इस फैसले में न्यायालय ने न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के पिछले निर्णय को बहुमत से अस्वीकार किया, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी संपत्तियों को राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है।

Supreme Court का बड़ा फैसला, निजी संपत्ति को सार्वजनिक कल्याण के लिए नहीं लिया जा सकता

न्यायालय का तर्क

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1960 और 70 के दशक में समाजवादी अर्थव्यवस्था की ओर झुकाव था। लेकिन 1990 के दशक से बाजार उन्मुख अर्थव्यवस्था पर जोर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था का दिशा-निर्देश किसी विशेष प्रकार की अर्थव्यवस्था से अलग है। इसके बजाय, इसका उद्देश्य विकासशील देश के उभरते चुनौतियों का सामना करना है।

Haryana News: हरियाणा के वाहन चालक ध्यान दें! हाई-वे पर वाहन खड़ा करने पर होगा चालान

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि पिछले 30 वर्षों में गतिशील आर्थिक नीति अपनाने के कारण भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह न्यायमूर्ति अय्यर के उस सिद्धांत से सहमत नहीं है कि प्रत्येक संपत्ति, जिसमें निजी व्यक्तियों की संपत्तियाँ भी शामिल हैं, सामुदायिक संसाधन मानी जा सकती हैं।

9 जजों की संविधान पीठ का निर्णय

यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ द्वारा दिया गया है। इस संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति DY चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति BV नागरत्ना, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया, न्यायमूर्ति JB पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा, और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसिह शामिल थे।

कानूनी पृष्ठभूमि

यह मामला उन मामलों में से एक है जहां सरकारों ने सार्वजनिक उपयोग के लिए निजी संपत्तियों का अधिग्रहण करने का प्रयास किया है। हालांकि, इस निर्णय ने स्पष्ट कर दिया है कि सभी निजी संपत्तियों को सामुदायिक संपत्ति के रूप में नहीं लिया जा सकता, और यह एक महत्वपूर्ण कानूनी मानक स्थापित करता है।

सरकार की जिम्मेदारियां

सरकार को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वह जब भी किसी निजी संपत्ति का अधिग्रहण करे, तो वह यह सुनिश्चित करे कि यह सार्वजनिक हित में है। यह सुनिश्चित करने के लिए उचित प्रक्रिया और मुआवजे का प्रावधान होना चाहिए। यह निर्णय उन लोगों के लिए एक राहत है जो अपनी निजी संपत्तियों को लेकर चिंतित थे कि कहीं उन्हें अनावश्यक रूप से अधिग्रहित न किया जाए।

Haryana News: हरियाणा में ACB की बड़ी कार्रवाई, 1 लाख रुपये की रिश्वत लेते अधिकारी को रंगेहाथों गिरफ्तार

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह लोगों के अधिकारों और संपत्ति की सुरक्षा के प्रति सरकार की जिम्मेदारी को भी स्पष्ट करता है। यह एक संकेत है कि न्यायालय इस मुद्दे को गंभीरता से ले रहा है और लोगों की संपत्ति के अधिकारों की रक्षा करना चाहता है। इस निर्णय से उम्मीद है कि भविष्य में निजी संपत्तियों के अधिग्रहण को लेकर सरकारें अधिक सतर्क रहेंगी और इस प्रक्रिया में पारदर्शिता को सुनिश्चित करेंगी।

Back to top button