Bihar Assembly Elections: जाति गणना को हथियार बनाकर पलट गया सियासी पासा क्या मोदी की चाल में फंस गया इंडिया गठबंधन

Bihar Assembly Elections: बिहार में अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए लगातार नए दांव खेल रहा है। मोदी और नीतीश के काम और नाम पर राजनीतिक माहौल बनाया जा रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद राष्ट्रवाद की लहर एनडीए के पक्ष में दिखाई दे रही है।
कास्ट समीकरण और राष्ट्रवाद का संगम
एनडीए ने जातीय गणित को राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के साथ मिलाकर एक मजबूत राजनीतिक जाल बुन लिया है। बीजेपी और जेडीयू के साथ रामविलास पासवान की पार्टी, मांझी और कुशवाहा के साथ आने से ऊंची जाति, पिछड़े और दलित वोटों का बड़ा गठबंधन बना है। यह समीकरण विपक्ष के लिए तोड़ना आसान नहीं होगा।
ऑपरेशन सिंदूर से बना राष्ट्रवादी माहौल
पहलगाम हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर का ऐलान किया था। इस ऑपरेशन में पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों को पूरी तरह खत्म कर दिया गया। इसका असर बिहार में भी देखा जा रहा है। बीजेपी इसे अपनी सियासी कामयाबी के तौर पर प्रचारित कर रही है जिससे राष्ट्रवादी लहर को हवा मिल रही है।
जातीय जनगणना और सियासी चाल
बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों पर टिकी रही है। जब राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जातीय जनगणना का मुद्दा उठाकर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे थे तभी मोदी सरकार ने इस मुद्दे को अपने पक्ष में मोड़ दिया। अब केंद्र ने खुद जातीय जनगणना कराने का ऐलान किया है जिससे विपक्ष का बड़ा मुद्दा कमजोर पड़ गया है।
हिंदुत्व और विकास के दम पर जीत की तैयारी
बीजेपी केवल राष्ट्रवाद और जातीय समीकरणों तक ही सीमित नहीं है बल्कि अब हिंदुत्व एजेंडे को भी धार दे रही है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को सक्रिय कर दिया गया है जो आक्रामक हिंदुत्व के चेहरे माने जाते हैं। साथ ही माता सीता मंदिर निर्माण का ऐलान कर बहुसंख्यक मतदाताओं को जोड़ने की कोशिश हो रही है। पीएम मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी विकास और सुरक्षा के नाम पर बिहार को जीतने के लिए कमर कस चुकी है।