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चंडीगढ़ प्रशासन ने Punjab-Haryana High Court के फैसले को Supreme Court में चुनौती दी, कर्मचारियों को और इंतजार करना पड़ेगा

चंडीगढ़ प्रशासन ने Punjab-Haryana High Court के उस फैसले को Supreme Court में चुनौती दी है, जिसमें कर्मचारियों के हाउसिंग स्कीम के पक्ष में निर्णय दिया गया था। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में विशेष अवकाश याचिका (SLP) दायर की गई है। इसके बाद, कर्मचारियों को अपने घरों का इंतजार और भी लंबा करना पड़ेगा।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की तारीख तय

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई की तारीख तय कर दी है। कर्मचारियों को उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट भी पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को मंजूरी देगा, लेकिन इस योजना में हो रही देरी के कारण फ्लैट की कीमत में और वृद्धि हो सकती है। पिछले 16 वर्षों से, 3930 कर्मचारी और उनके परिवार इस हाउसिंग स्कीम के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

हाई कोर्ट का निर्णय और कर्मचारियों की उम्मीदें

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का फैसला 31 मई को आया था, जिसमें चंडीगढ़ प्रशासन और चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड (CHB) को फटकार लगाते हुए आदेश दिया गया था कि वे 2008 की सेल्फ फाइनेंसिंग कर्मचारियों की हाउसिंग स्कीम को पूरा करें। हाई कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि इस योजना की निर्माण प्रक्रिया दो महीने के भीतर शुरू होनी चाहिए और 3930 फ्लैट एक साल के अंदर तैयार किए जाने चाहिए।

चंडीगढ़ प्रशासन ने Punjab-Haryana High Court के फैसले को Supreme Court में चुनौती दी, कर्मचारियों को और इंतजार करना पड़ेगा

कर्मचारियों को अब उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट भी हाई कोर्ट के फैसले को स्वीकार करेगा, लेकिन इसके लिए उन्हें और इंतजार करना पड़ेगा।

प्रशासन की योजना में देरी और भूमि मूल्य

असल में, चंडीगढ़ प्रशासन इस स्कीम को पूरा करना नहीं चाहता क्योंकि यह पुरानी दरों पर भूमि देने को तैयार नहीं है। प्रशासन का मानना है कि इस योजना को पूरा करने का खर्च 4400 करोड़ रुपये आएगा, जिसमें भूमि की कीमत भी शामिल है।

इस योजना में भूमि की कीमत को लेकर एक बड़ी बाधा है, जो 2012 में केंद्रीय सरकार के पत्र के कारण पैदा हुई थी। केंद्रीय सरकार ने उस वक्त यह निर्देश दिया था कि किसी भी योजना के लिए भूमि को बाजार मूल्य से कम दर पर नहीं दिया जाएगा। इस वजह से कर्मचारियों को हाई कोर्ट का रुख करना पड़ा था।

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2012 का पत्र और भूमि विवाद

केंद्रीय सरकार ने भूमि के स्वामित्व के अधिकार को मंजूरी दी थी, लेकिन भूमि को पुरानी दरों पर देने के लिए तैयार नहीं है। यह स्थिति 2012 में जारी एक पत्र से उत्पन्न हुई, जिसमें कहा गया था कि भूमि को कभी भी बाजार मूल्य से कम पर नहीं दिया जा सकता।

इस हाउसिंग स्कीम को 45.5 एकड़ भूमि पर चंडीगढ़ के सेक्टर 52, 53 और 56 में बनाना था। हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि योजना में सफल कर्मचारियों को भूमि की कीमत 7920 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर पर चुकानी होगी, जबकि निर्माण लागत वर्तमान दरों के अनुसार तय की जाएगी।

योजना में देरी का असर

इस योजना में देरी के कारण न केवल कर्मचारियों को असुविधा हो रही है, बल्कि इसके कारण फ्लैट की कीमत में भी बढ़ोतरी हो रही है। इसका असर उन कर्मचारियों पर भी हो रहा है, जो पहले से ही लंबी प्रतीक्षा सूची में हैं।

इसके अलावा, इस देरी के कारण इस योजना का लाभ कुछ कर्मचारियों को नहीं मिल सका। 16 वर्षों के दौरान, 100 से अधिक कर्मचारी इस योजना के इंतजार में अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि 950 से ज्यादा कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं।

कर्मचारियों का कहना है कि अगर इस देरी के कारण फ्लैट की कीमत बढ़ती है, तो इसका खामियाजा प्रशासन को भुगतना चाहिए। उनका सवाल है कि अगर किसी निजी बिल्डर ने ऐसा किया होता, तो क्या प्रशासन इसे स्वीकार करता? क्या वे निजी कंपनियों को भी इस तरह की देरी करने और कर्मचारियों को धोखा देने की अनुमति देते?

अधिकारियों पर जिम्मेदारी

कर्मचारी यह भी कह रहे हैं कि इस देरी का जिम्मा प्रशासन और अधिकारियों पर डालना चाहिए। अगर प्रशासन ने समय पर इस योजना पर काम शुरू किया होता, तो आज यह योजना पूरी हो चुकी होती और कर्मचारियों को उनके घर मिल चुके होते।

उनका कहना है कि जिन कर्मचारियों को सरकारी आवास मिल चुका है, उन्हें तब तक उनसे खाली करने को नहीं कहा जाना चाहिए जब तक उन्हें इस योजना के तहत फ्लैट नहीं मिल जाते।

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क्या है कर्मचारियों की स्थिति?

कर्मचारी लंबे समय से इस हाउसिंग स्कीम का इंतजार कर रहे हैं। वे अपनी जीवनभर की मेहनत से अर्जित एक स्थिर आवास की तलाश में हैं, लेकिन प्रशासन की लापरवाही के कारण उन्हें बार-बार निराशा का सामना करना पड़ रहा है। इस दौरान उन्होंने कई बार अदालत का रुख किया, लेकिन हर बार उन्हें केवल तात्कालिक राहत मिलती है, न कि स्थायी समाधान।

कर्मचारी अब यह उम्मीद लगाए हुए हैं कि सुप्रीम कोर्ट जल्द से जल्द इस मामले पर फैसला सुनाएगा और उन्हें उनके हक का घर मिलेगा। हालांकि, प्रशासन की लापरवाही और देरी के कारण फ्लैट की कीमतों में वृद्धि उनके लिए एक नई चुनौती बन सकती है।

चंडीगढ़ प्रशासन का यह कदम निश्चित रूप से कर्मचारियों के लिए निराशाजनक है, जो लंबे समय से अपनी हाउसिंग स्कीम की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यदि सुप्रीम कोर्ट प्रशासन के फैसले को सही ठहराता है, तो यह कर्मचारियों के लिए एक और झटका होगा। इस बीच, प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि योजना को समय पर पूरा किया जाए, ताकि कर्मचारियों को उनके घर मिल सकें और किसी भी तरह की अतिरिक्त आर्थिक बोझ से बच सकें।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के परिणाम के बाद ही यह साफ होगा कि कर्मचारियों को अब और कितने समय तक इंतजार करना होगा। लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि प्रशासन इस योजना को शीघ्र पूरा करने की दिशा में ठोस कदम उठाए, ताकि कर्मचारियों को उनके हक का घर मिल सके।

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