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केंद्र के ‘No Detention Policy’ के फैसले पर विरोध, तमिलनाडु सरकार ने कहा – इन आदेशों का पालन नहीं करेंगे

No Detention Policy: सोमवार को केंद्रीय सरकार ने कक्षा 5 से 8 तक के छात्रों के लिए ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ को समाप्त कर दिया। इसका मतलब यह है कि अब कक्षा 5 से 8 तक के जो भी छात्र परीक्षा में फेल होंगे, उन्हें अगले कक्षा में पदोन्नत नहीं किया जाएगा।

लेकिन तमिलनाडु सरकार ने केंद्र के इस फैसले का विरोध करते हुए यह कहा है कि वे इस फैसले का पालन नहीं करेंगे और राज्य में ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ जारी रखेंगे।

तमिलनाडु पहला राज्य, जो विरोध कर रहा है

काफी समय से विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों में केंद्रीय सरकार के निर्णयों का विरोध देखा जा रहा है। तमिलनाडु पहला राज्य बन गया है, जिसने मोदी सरकार के ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ के फैसले का विरोध किया है।

इससे पहले भी कई राज्यों ने केंद्र की आयुष्मान योजना को लागू करने से मना कर दिया था। इन राज्यों का कहना था कि वहां पहले से बेहतर स्वास्थ्य योजनाएं चल रही हैं। पश्चिम बंगाल और दिल्ली इस मामले में प्रमुख थे।

तमिलनाडु सरकार ने क्या तर्क दिया?

तमिलनाडु सरकार ने केंद्र के फैसले के विरोध में यह तर्क दिया है कि ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ की वजह से गरीब परिवारों के बच्चों को बिना किसी समस्या के कक्षा 8 तक पढ़ाई करने का अवसर मिलता है।

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राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री, अनबिल महेश पोयमोजी ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि ‘अगर परीक्षा में फेल होने पर छात्रों को उसी कक्षा में रखा जाएगा तो इससे गरीब परिवारों पर असर पड़ेगा और बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न होगी।’

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध भी जारी

तमिलनाडु ने इससे पहले भी केंद्रीय सरकार के कई फैसलों का विरोध किया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) भी राज्य में लागू नहीं की गई है। शिक्षा मंत्री ने यह भी जानकारी दी कि तमिलनाडु अपनी विशेष राज्य शिक्षा नीति का मसौदा तैयार कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र का यह निर्णय केवल उन स्कूलों पर लागू होगा, जो केंद्र के अधीन हैं।

पोयमोजी ने कहा, ‘माता-पिता, छात्र और शिक्षक इस मुद्दे पर न तो चिंता करें और न ही भ्रमित हों। राज्य सरकार स्पष्ट करती है कि राज्य में मौजूदा नो डिटेंशन पॉलिसी जारी रहेगी।’

नो डिटेंशन पॉलिसी क्या है?

नो डिटेंशन पॉलिसी को ‘Right to Education Act’ के तहत लाया गया था। इसके अनुसार, कक्षा 1 से 8 तक कोई भी छात्र तब तक फेल नहीं हो सकता, जब तक कि वह प्राथमिक शिक्षा पूरी न कर ले। इसका मतलब यह था कि कक्षा 8 तक परीक्षा में फेल होने के बावजूद छात्रों को अगले कक्षा में प्रमोट कर दिया जाता था।

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हालांकि, अब तक 16 राज्य और दो केंद्र शासित प्रदेशों ने नो डिटेंशन पॉलिसी को समाप्त कर दिया है। केंद्रीय सरकार ने सोमवार को स्पष्ट किया कि छात्रों को प्राथमिक शिक्षा के दौरान स्कूल से बाहर नहीं किया जाएगा, लेकिन अब वे परीक्षा में फेल होने पर अगली कक्षा में प्रमोट नहीं होंगे।

केंद्र का निर्णय और राजनीतिक प्रतिक्रिया

केंद्र के फैसले को लेकर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं। तमिलनाडु सरकार ने इसे एक गलत कदम बताते हुए गरीबों की शिक्षा को प्रभावित करने वाला निर्णय बताया है। राज्य सरकार का मानना है कि इस पॉलिसी से गरीब परिवारों के बच्चों को शिक्षित होने का अवसर मिलता था, जो अब समाप्त हो जाएगा। इसके अलावा, केंद्र द्वारा शिक्षा नीति पर की गई घोषणाओं ने राज्य सरकारों को अपनी शिक्षा नीतियों में बदलाव करने के लिए मजबूर किया है।

केंद्र और राज्य के बीच इस मुद्दे पर टकराव को लेकर आगे भी राजनीतिक वाद-विवाद देखने को मिल सकता है। तमिलनाडु सरकार ने एक बार फिर से अपनी स्वतंत्रता और राज्य के अधिकारों की रक्षा की बात की है।

केंद्र के ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ के फैसले पर तमिलनाडु का विरोध इस बात का संकेत है कि राज्य सरकारें अपने राज्यों की शिक्षा नीतियों में बदलाव के मामलों में केंद्रीय हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं कर रही हैं। तमिलनाडु का यह कदम अन्य विपक्षी शासित राज्यों के लिए एक उदाहरण बन सकता है। इस विरोध से यह भी स्पष्ट होता है कि शिक्षा के मामले में राज्यों को अधिक स्वतंत्रता और निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए, ताकि वे अपने राज्य की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नीतियां बना सकें।

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