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Haryana में कांग्रेस की हार, प्रमुख कारणों की विस्तृत जांच

Haryana: हरियाणा में कथित रूप से सरकार विरोधी माहौल के बावजूद कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। पार्टी सरकार बनाने में असफल रही, जिससे सवाल उठते हैं कि ऐसा क्यों हुआ? कई कारक और कारण सामने आ रहे हैं जो कांग्रेस की हार की ओर इशारा करते हैं। हरियाणा में जाट बनाम अन्य समुदायों के बीच की फूट और पार्टी में आंतरिक कलह इस हार के प्रमुख कारणों में से एक रहे हैं। आइए जानते हैं कांग्रेस की हार के प्रमुख कारण।

Haryana में कांग्रेस की हार, प्रमुख कारणों की विस्तृत जांच

1. जाट बनाम अन्य समुदायों में हार

हरियाणा में बीजेपी ने एक समुदाय (जाट) के खिलाफ 35 अन्य समुदायों का समर्थन प्राप्त किया, जिससे उसे सत्ता में आने में मदद मिली। कांग्रेस के लिए यह एक बड़ा झटका था, क्योंकि उसके वोट बैंक में जाटों का अहम स्थान था। जाट समुदाय ने एकजुट होकर बीजेपी का समर्थन किया, जिससे कांग्रेस की स्थिति कमजोर हो गई। इससे कांग्रेस को सत्ता से दूर रहना पड़ा और यह उसकी तीसरी हार है।

2. बिखराव और आंतरिक कलह

कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में 10 में से 5 सीटें जीती थीं, लेकिन विधानसभा चुनावों में वह बिखरी हुई नजर आई। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने टिकट वितरण पर पूरी पकड़ बना रखी थी, जिससे कुमारी शेलजा और राज्यसभा सांसद रंधीर सिंह सुरजेवाला जैसे नेताओं में असंतोष पैदा हुआ। सुरजेवाला ने केवल कैथल में अपने बेटे को जीताने के लिए मेहनत की, जबकि कुमारी शेलजा ने पहले 12 से 14 दिनों तक चुनाव प्रचार में भाग नहीं लिया।

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3. राज्य में संगठन की कमी

हरियाणा में कांग्रेस की राज्य इकाई का गठन 2009 के बाद से नहीं हुआ। 2014 में पार्टी की राज्य इकाई का गठन हुआ, लेकिन आंतरिक कलह के कारण बूथ और जिला समितियों का गठन नहीं हो सका। 2022 में, राज्य के प्रभारी विवेक बंसल ने राज्य कांग्रेस समिति के गठन के लिए एक सूची बनाई, लेकिन यह समिति कभी अस्तित्व में नहीं आई। कुल मिलाकर, पार्टी में आंतरिक कलह इतनी गहरी है कि कांग्रेस के पास पिछले 15 वर्षों से राज्य में कोई बूथ स्तर और जिला स्तर का संगठन नहीं है।

4. आप के साथ गठबंधन का न होना

कांग्रेस को हरियाणा में लगभग 12 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा, जहां पार्टी के बागी उम्मीदवारों ने उसके मुख्य उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ा। अगर कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी (आप) के साथ गठबंधन किया होता, तो नतीजे अलग हो सकते थे। कई सीटों पर आप के उम्मीदवारों ने कांग्रेस उम्मीदवारों के हार के मार्जिन से अधिक वोट प्राप्त किए। अगर कांग्रेस और आप मिलकर चुनाव लड़ते, तो परिणाम सकारात्मक हो सकते थे।

5. चुनाव से एक दिन पहले अशोक तंवर की एंट्री का कोई लाभ नहीं

कांग्रेस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ विवाद के बाद बीजेपी में शामिल हुए अशोक तंवर को चुनाव से एक दिन पहले पार्टी में शामिल किया। इससे जाट वोट भी कांग्रेस पार्टी से बिखर गया। चुनाव परिणाम बताते हैं कि कुछ जगहों पर, जैसे सिरसा में, जाट मतदाता इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) के पक्ष में थे। अशोक तंवर सिरसा जिले से आते हैं और दलित भी हैं, लेकिन कांग्रेस को इससे कोई लाभ नहीं हुआ।

6. दलित वोट बैंक का विभाजन

कुमारी शेलजा और अशोक तंवर दलित समुदाय से आते हैं और राज्य में दलितों के बड़े नेताओं माने जाते हैं। हालांकि, इन नेताओं ने अपने समुदाय के मतों को कांग्रेस के पक्ष में स्थानांतरित करने में असफलता दिखाई। दलित मतदाता भी कांग्रेस से दूर हो गए और इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा।

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7. चुनावी माहौल और आंतरिक मतभेद

कांग्रेस ने चुनाव के दौरान अपने नेताओं के बीच गहरे मतभेदों को भी सहा। इसने पार्टी की छवि को और खराब किया। कई नेता एकजुट होकर प्रचार नहीं कर पाए, जिससे चुनावी माहौल और भी खराब हो गया। लोगों ने महसूस किया कि पार्टी के भीतर एकजुटता की कमी है, जिसके कारण उन्होंने अन्य विकल्पों को चुना।

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