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Punjab में आरक्षण के भीतर आरक्षण का निर्णय, 2006 के बाद से कानूनी विवादों में उलझा मामला

Punjab: गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण के भीतर आरक्षण पर दिए गए ऐतिहासिक निर्णय की नींव पंजाब में 49 साल पहले रखी गई थी। तब अनुसूचित जातियों के बीच सबसे अधिक आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ी वाल्मीकि और मजहबी सिख जातियों के लिए आरक्षण के भीतर आरक्षण देने का विचार सामने आया था।

Punjab में आरक्षण के भीतर आरक्षण का निर्णय, 2006 के बाद से कानूनी विवादों में उलझा मामला

आरक्षण का लाभ कुछ जातियों द्वारा उठाया जा रहा था

1975 में, जब कांग्रेस के गियानी जैल सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री थे, राज्य सरकार ने एक सर्कुलर जारी किया और अनुसूचित जातियों के आरक्षित कोटे में 50 प्रतिशत नौकरी की आरक्षण वाल्मीकि और मजहबी सिख समुदाय के लिए आरक्षित कर दी। यह तर्क दिया गया कि कुछ अनुसूचित जातियाँ आरक्षण का लाभ उठा रही थीं, जबकि वाल्मीकि और मजहबी सिख इस आरक्षण का लाभ नहीं उठा पा रहे थे। यह सर्कुलर 2006 तक लागू रहा।

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कानूनी विवाद का लंबा सिलसिला

2006 में, अनुसूचित जातियों से संबंधित एक महासभा ने इस सर्कुलर को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी। सुनवाई के बाद, हाई कोर्ट ने सर्कुलर को रद्द कर दिया। फिर पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने विधानसभा में वाल्मीकि और मजहबी सिखों के आरक्षण अधिकारों की रक्षा के लिए एक विधेयक पेश किया।

महासभा ने चार साल बाद, 2010 में, इस विधेयक को हाई कोर्ट में चुनौती दी। जुलाई 2010 में हाई कोर्ट ने ‘ई.वी. चिनैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार’ केस के आधार पर इस विधेयक को रद्द कर दिया।

2010 में, शिरोमणि अकाली दल की सरकार ने, जिसमें प्रकाश सिंह बादल थे, हाई कोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय को बरकरार रखा। पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर पुनरावलोकन याचिका दायर की, जिस पर अब संविधान पीठ का निर्णय आया है।

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सुप्रीम कोर्ट का नया निर्णय पंजाब के लिए महत्वपूर्ण

सुप्रीम कोर्ट का नया निर्णय पंजाब के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 32 प्रतिशत है। कुल 39 अनुसूचित जातियाँ हैं। राज्य में कोई अनुसूचित जनजातियाँ (ST) नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, 39 जातियों में से दो जातियाँ (वाल्मीकि और मजहबी सिख) इसका लाभ प्राप्त करेंगी। सरकारी नौकरियों में 25 प्रतिशत आरक्षण में से 12.5 प्रतिशत और पदोन्नति में 14 प्रतिशत आरक्षण में से 7 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा।

वाल्मीकि और मजहबी सिख 32 प्रतिशत अनुसूचित जातियों की जनसंख्या का 12.61 प्रतिशत हैं, जबकि अन्य 19.39 प्रतिशत हैं। इस निर्णय को लेकर रवीदासिया समुदाय में नाराजगी है कि जिन जातियों की जनसंख्या 19.39 प्रतिशत है उन्हें 12.5 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा और जिनकी जनसंख्या 12.61 प्रतिशत है उन्हें भी 12.5 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। इस निर्णय पर राजनीतिक पार्टियों ने कोई खुला बयान नहीं दिया है।

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