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Delhi University: हाई कोर्ट ने क्यों लगाई दिल्ली विश्वविद्यालय को फटकार? जानिए पूरा मामला

Delhi University  (DU) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण मामले में दिल्ली हाई कोर्ट से फटकार खाई है। यह मामला सेंट स्टीफन्स कॉलेज में स्नातकोत्तर (PG) पाठ्यक्रमों में कुछ छात्रों के प्रवेश को सुनिश्चित करने में विश्वविद्यालय की विफलता से संबंधित है। न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने DU के रजिस्ट्रार और डीन एडमिशन को 15 अक्टूबर को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश होने का आदेश दिया है और यह स्पष्ट किया है कि उन्हें यह बताना होगा कि उन्हें कानून के तहत सजा क्यों नहीं दी जानी चाहिए।

अदालत की सख्ती का कारण

हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि DU प्रशासन जानबूझकर इस अदालत के निर्देशों को लागू करने में बाधा डाल रहा है। न्यायालय ने कहा कि विश्वविद्यालय के अधिकारी कॉलेज प्रबंधन के साथ अपने व्यक्तिगत विवादों को छात्रों के जीवन की कीमत पर निपटा रहे हैं। यह टिप्पणी तब की गई जब अदालत एक अवमानना याचिका की सुनवाई कर रही थी, जिसमें कॉलेज ने PG पाठ्यक्रमों में सीट आवंटन के संबंध में एकल पीठ द्वारा जारी निर्देशों के अनुपालन में विफलता के खिलाफ शिकायत की थी।

Delhi University: हाई कोर्ट ने क्यों लगाई दिल्ली विश्वविद्यालय को फटकार? जानिए पूरा मामला

सेंट स्टीफन्स कॉलेज की स्थिति

सेंट स्टीफन्स कॉलेज ने आरोप लगाया है कि उसे अन्य कॉलेजों की तुलना में बहुत कम PG सीटें आवंटित की गई हैं। इसके अलावा, कॉलेज ने यह भी कहा कि DU ने अल्पसंख्यक क्रिश्चियन समुदाय के उम्मीदवारों की सूची पर विचार नहीं किया है और उन्हें विभिन्न PG पाठ्यक्रमों में प्रवेश नहीं दिया गया है। कॉलेज ने जुलाई में DU को चयनित छात्रों की सूची भेजी थी और उसके बाद से बार-बार उनसे संपर्क किया, लेकिन इसके बावजूद DU ने छात्रों को प्रवेश नहीं दिया।

छात्रों के भविष्य पर खतरा

हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि विभिन्न PG पाठ्यक्रमों के सत्र शुरू हो चुके हैं, और दो महीने बीतने के बावजूद DU ने अभी तक छात्रों को प्रवेश नहीं दिया है। इस स्थिति में, छात्रों की UGC शिक्षण दिनों की आवश्यकताओं को पूरा करने में बाधा उत्पन्न हो रही है। कोर्ट ने यह भी कहा कि DU ने PG पाठ्यक्रमों के लिए सीटों के आवंटन को लेकर कोई नीति या दिशा-निर्देश तैयार नहीं किए हैं। इस प्रकार की देरी चयनित छात्रों के लिए अपूरणीय क्षति का कारण बन सकती है।

अकादमिक संस्थानों की जिम्मेदारी

इस मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उच्च शिक्षा संस्थानों की जिम्मेदारी केवल शिक्षा प्रदान करना नहीं है, बल्कि उन्हें छात्रों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए उचित निर्णय लेने की आवश्यकता है। अदालत ने इस स्थिति को देखते हुए, विश्वविद्यालय अधिकारियों के प्रति नाखुशी व्यक्त की है और कहा कि यह निराशाजनक है कि इतने प्रतिष्ठित शिक्षाविदों द्वारा ऐसी असंवेदनशीलता प्रदर्शित की जा रही है।

सरकार और विश्वविद्यालय की भूमिका

इस मामले में, दिल्ली विश्वविद्यालय को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि छात्र केवल संख्याओं का खेल नहीं हैं, बल्कि उनके जीवन और करियर का भविष्य उनसे जुड़ा है। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि विश्वविद्यालय को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में इस प्रकार की समस्याएं उत्पन्न न हों।

छात्रों के हितों की रक्षा

दिल्ली हाई कोर्ट का यह कदम छात्रों के हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि DU प्रशासन अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में विफल रहता है, तो उसे कानून के तहत जवाब देना होगा। इससे यह स्पष्ट होता है कि उच्च न्यायालय छात्रों की भलाई के लिए प्रतिबद्ध है और वह उन्हें किसी भी प्रकार की असुविधा से बचाने के लिए तत्पर है।

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