Farmers Protest: किसान नेता सुखजीत सिंह का उपवास टूटा, दलवाल ने दिया नारियल पानी, आंदोलन जारी रखने की घोषणा
Farmers Protest: 26 नवंबर को खनौरी बॉर्डर पर अपनी जान की बाजी लगाकर उपवास पर बैठे किसान नेता सुखजीत सिंह हार्दोझांडे का उपवास समाप्त हो गया है। भारतीय किसान यूनियन (BKU) के नेता जगजीत सिंह दलवाल ने उन्हें नारियल पानी पिलाकर उनका उपवास तोड़ा। इस दौरान दलवाल ने यह घोषणा की कि वह अपनी मांगों के लिए उपवास जारी रखेंगे।
दलवाल की गिरफ्तारी से खलबली
किसान आंदोलन के इस नए मोर्चे की शुरुआत तब हुई जब मंगलवार को खनौरी बॉर्डर पर दलवाल को उपवास शुरू करने से पहले ही पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। दलवाल को गिरफ्तारी के बाद डीएमसी अस्पताल, लुधियाना में भर्ती कराया गया। इस घटना के बाद किसानों के बीच गुस्सा फैल गया और किसान नेताओं ने मिलकर यह निर्णय लिया कि सुखजीत सिंह हार्दोझांडे को दलवाल की जगह उपवास पर बैठाया जाए।
सुखजीत सिंह ने उपवास के दौरान सरकार से 10 दिन का अल्टीमेटम दिया और कहा कि अगर केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और अन्य मुद्दों पर किसानों से बातचीत नहीं की, तो वे अपनी जिद्द पर कायम रहेंगे।
दलवाल का खनौरी बॉर्डर पर वापसी और नई घोषणा
डीएमसी अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद दलवाल शुक्रवार रात खनौरी बॉर्डर लौटे। लौटने के बाद दलवाल ने यह घोषणा की कि वे अब 1 दिसंबर को संगतूर में मुख्यमंत्री आवास का घेराव और आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के पुतले जलाने के कार्यक्रम को रद्द कर देंगे।
दलवाल ने फिर से उपवास पर बैठते हुए यह साफ किया कि जब तक उनकी सभी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि उनका मुख्य उद्देश्य MSP गारंटी कानून को सभी फसलों पर लागू कराना है।
दलवाल का उपवास अस्पताल में जारी रहा
गिरफ्तारी के बाद भी दलवाल ने अस्पताल में उपवास जारी रखा। पंजाब पुलिस के अधिकारियों और संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा के प्रतिनिधियों के बीच संगरूर में हुई एक बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि दलवाल को रिहा किया जाएगा।
अधिकारियों के अनुसार, दलवाल की सेहत को लेकर सरकार चिंतित थी, इसलिए उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया था। अस्पताल में उनकी 24 घंटे निगरानी की गई, लेकिन अब उनकी सेहत में सुधार आया है और उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।
किसान नेताओं का एकजुटता संदेश
सुखजीत सिंह हार्दोझांडे का उपवास समाप्त होने के बाद किसान आंदोलन में एक नया मोड़ आया है। सुखजीत का उपवास समाप्त होते ही दलवाल ने यह साफ कर दिया कि यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार किसानों की सभी मांगों को पूरा नहीं करती।
पुलिस की कार्रवाई और सरकार के खिलाफ बढ़ते गुस्से को देखते हुए किसान नेता अब एकजुट होकर अपनी मांगों को लेकर संघर्ष जारी रखने का संदेश दे रहे हैं।
सरकार से वार्ता की आवश्यकता
किसान नेताओं ने सरकार से स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि उनकी मांगों पर जल्द कार्रवाई नहीं की गई, तो वे आंदोलन को और तेज करेंगे। एमएसपी कानून की गारंटी, कृषि सुधारों पर ठोस निर्णय और अन्य बकाया मुद्दों पर सरकार से वार्ता का आग्रह किया गया है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार का रुख
किसान आंदोलन का प्रमुख मुद्दा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का है। सरकार द्वारा इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाने के कारण किसान नेताओं ने उपवास जैसे गंभीर कदम उठाए हैं। उनका कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से अब तक MSP को लेकर कोई ठोस गारंटी नहीं दी गई है, जिससे किसानों का गुस्सा और बढ़ा है।
किसान आंदोलन का भविष्य
खनौरी बॉर्डर पर शुरू हुआ यह आंदोलन अब एक बड़ा रूप ले चुका है। किसान नेता अपनी मांगों को लेकर सरकार से बातचीत करने के लिए दबाव बना रहे हैं। इस संघर्ष में शामिल किसान नेताओं ने स्पष्ट किया है कि वे तब तक आंदोलन जारी रखेंगे जब तक उनके सभी मुद्दे हल नहीं हो जाते।
जगजीत सिंह दलवाल और सुखजीत सिंह हार्दोझांडे जैसे नेताओं के नेतृत्व में किसानों का यह आंदोलन न केवल पंजाब, बल्कि पूरे देश में एक संदेश दे रहा है कि जब तक सरकार किसान हित में कदम नहीं उठाती, तब तक उनकी संघर्ष की राह जारी रहेगी।
किसान आंदोलन का राजनीतिक असर
इस आंदोलन का असर राज्य और केंद्र सरकार की नीतियों पर भी देखा जा सकता है। जहां एक ओर सरकार इस आंदोलन को लेकर सख्त कदम उठा रही है, वहीं किसान नेता इसे एक राष्ट्रीय मुद्दा मानकर सरकार से बातचीत की मांग कर रहे हैं। किसानों की मांगें सशक्त हैं, और यदि सरकार जल्द इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाती, तो यह आंदोलन और भी तेज हो सकता है।
किसान नेता सुखजीत सिंह हार्दोझांडे का उपवास समाप्त होने के बाद भी आंदोलन की गति नहीं रुकी है। भारतीय किसान यूनियन के नेताओं ने अपने संघर्ष को जारी रखने की घोषणा की है, और अब उनकी मुख्य मांगें सरकार से ठोस बातचीत और MSP गारंटी कानून की हैं। सरकार को अब किसानों की इन मांगों पर शीघ्र विचार करना होगा, ताकि इस आंदोलन को सुलझाया जा सके।