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“One Nation, One Election” प्रस्ताव पर संयुक्त संसदीय समिति की पहली बैठक, उद्देश्य और संभावनाएं

केंद्र सरकार द्वारा “One Nation, One Election” प्रस्ताव पर विचार करने के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने बुधवार को अपनी पहली बैठक की। इस समिति का उद्देश्य संविधान (129वां संशोधन) विधेयक और केंद्रीय शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक पर विचार करना है, जिसे हाल ही में लोकसभा में सर्दी सत्र के दौरान पेश किया गया था। यह प्रस्ताव देश में चुनावों को एक साथ आयोजित करने के विचार से संबंधित है। इस लेख में हम इस समिति के गठन, उद्देश्य और इसके द्वारा उठाए जाने वाले कदमों की चर्चा करेंगे।

संयुक्त संसदीय समिति का गठन

संयुक्त संसदीय समिति का गठन केंद्र सरकार द्वारा “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के विचार पर चर्चा और उसके लिए आवश्यक विधायी बदलावों पर विचार करने के लिए किया गया है। यह समिति 39 सदस्यों की होगी और इसके अध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद पीपी चौधरी हैं। पीपी चौधरी पूर्व में कानून राज्य मंत्री रह चुके हैं और उन्हें इस समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। समिति के सदस्य विभिन्न प्रमुख राजनीतिक दलों से हैं, जिनमें कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा, जनता दल (यूनाइटेड) के संजय झा, शिवसेना के श्रीकांत शिंदे, आम आदमी पार्टी (AAP) के संजय सिंह, और तृणमूल कांग्रेस के कalyan Banerjee जैसे सदस्य शामिल हैं।

संसदीय समिति में 31 से बढ़ाकर 39 सदस्य कर दिए गए हैं क्योंकि विभिन्न राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर विचार-विमर्श में भाग लेने की इच्छा व्यक्त की थी। इस समिति का गठन “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की संवैधानिक, कानूनी और राजनीतिक संभावनाओं पर व्यापक विचार-विमर्श करने के लिए किया गया है।

"One Nation, One Election" प्रस्ताव पर संयुक्त संसदीय समिति की पहली बैठक, उद्देश्य और संभावनाएं

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” का उद्देश्य और महत्व

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” का विचार लंबे समय से भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य देश में सभी चुनावों को एक साथ आयोजित करना है, यानी केंद्र, राज्य और स्थानीय चुनावों को एक ही समय में आयोजित करना। इससे कई लाभों की संभावना जताई गई है, जिनमें चुनावी खर्चों की कमी, वोटरों की अधिक भागीदारी, चुनावों में व्यस्तता का अंत, और राजनीतिक स्थिरता का निर्माण शामिल हैं।

इस प्रस्ताव के तहत केंद्र और राज्यों के चुनावों को एक साथ आयोजित करने की योजना है, जिससे राजनीतिक दलों और सरकारी मशीनरी के संसाधनों का समुचित उपयोग किया जा सके। यह उपाय देश की चुनाव प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित और कुशल बनाने के लिए सोचा गया है। इसके अलावा, इससे चुनावी परिणामों की अनिश्चितता भी कम हो सकती है, क्योंकि राज्यों में होने वाले चुनावों और केंद्र में होने वाले चुनावों के परिणामों का असर एक-दूसरे पर पड़ सकता है।

संविधान और कानूनी बदलाव की आवश्यकता

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” की प्रक्रिया को लागू करने के लिए संविधान में कुछ बदलावों की आवश्यकता होगी। वर्तमान में, भारतीय संविधान में केंद्रीय और राज्य चुनावों के लिए अलग-अलग प्रावधान हैं। इसलिए, इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संशोधन करने की आवश्यकता होगी। समिति को यह विचार करना है कि कौन से संवैधानिक प्रावधानों को बदलने की जरूरत है और इसके लिए क्या विधायी कदम उठाए जा सकते हैं।

इसके अतिरिक्त, “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की प्रक्रिया को लागू करने के लिए कुछ कानूनी बदलावों की भी आवश्यकता होगी, ताकि चुनावों के समय, प्रक्रिया और स्थान पर एक समान व्यवस्था हो। यह समिति चुनाव आयोग द्वारा दी गई सिफारिशों और इसके संवैधानिक पहलुओं पर भी विचार करेगी।

समिति की कार्यप्रणाली और सदस्यता

इस समिति के 39 सदस्य विभिन्न प्रमुख राजनीतिक दलों से हैं। समिति के गठन में यह ध्यान रखा गया है कि सभी राजनीतिक दलों को इस चर्चा में शामिल किया जाए ताकि “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के प्रस्ताव पर व्यापक विचार-विमर्श हो सके। प्रियंका गांधी वाड्रा, संजय झा, श्रीकांत शिंदे, संजय सिंह और kalyan Banerjee जैसे सदस्य विभिन्न दलों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो भारतीय राजनीति के विभिन्न पहलुओं का ध्यान रखते हैं।

समिति के सदस्य इस मुद्दे पर विचार करेंगे कि चुनावों की प्रक्रिया को एक साथ कैसे आयोजित किया जा सकता है और इसके लिए कौन-कौन से कानूनी और संवैधानिक बदलावों की आवश्यकता होगी। यह समिति चुनाव आयोग की सिफारिशों पर भी विचार करेगी, जो इसके लिए पहले से ही काम कर रहा है।

संविधानिक पहलुओं पर ध्यान

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” के प्रस्ताव को लागू करने में सबसे बड़ा सवाल संविधानिक है। भारतीय संविधान के तहत केंद्र और राज्य सरकारों के चुनावों का समय अलग-अलग निर्धारित है। वर्तमान में, लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनावों का समय एक-दूसरे से अलग होता है। संविधान के अनुच्छेद 83, 172, और 85 में चुनावों की प्रक्रिया और समय सीमा के बारे में प्रावधान हैं, जिनमें बदलाव करने की आवश्यकता होगी।

समिति यह तय करेगी कि संविधान में किस प्रकार के संशोधन किए जाएं ताकि सभी चुनावों को एक साथ आयोजित किया जा सके। इसके अलावा, चुनाव आयोग की भूमिका और उसकी कार्यप्रणाली पर भी चर्चा की जाएगी।

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” की योजना भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दे सकती है। यह देश की चुनावी प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित और कम खर्चीला बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। हालांकि, इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए संवैधानिक और कानूनी बदलावों की आवश्यकता होगी, और इस पर व्यापक विचार-विमर्श की आवश्यकता है। संयुक्त संसदीय समिति इस मुद्दे पर विचार करके देश के चुनावी सिस्टम को और अधिक सुदृढ़ बनाने में मदद कर सकती है।

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