फ्रांस ने 80 साल बाद स्वीकार किया थियारोई नरसंहार, क्या ब्रिटेन Jallianwala Bagh के लिए मांगेगा माफी?
Jallianwala Bagh: फ्रांस ने आखिरकार 80 साल बाद स्वीकार किया कि 1944 में पश्चिमी अफ्रीकी सैनिकों का थियारोई, सेनेगल में फ्रांसीसी सेना द्वारा किया गया नरसंहार एक जनसंहार था। फ्रांसीसी राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने पहली बार यह स्वीकारोक्ति करते हुए यह पत्र सेनेगल सरकार को गुरुवार को भेजा।
एक समान नरसंहार जलियांवाला बाग़ में भी हुआ था, जहां बिना हथियारों वाले लोगों पर बेतहाशा गोलीबारी की गई थी, लेकिन ब्रिटेन ने अभी तक इसके लिए माफी नहीं मांगी है। ब्रिटेन ने केवल जलियांवाला बाग़ नरसंहार की शताब्दी के अवसर पर अफसोस जताया था।
80वीं वर्षगांठ से एक दिन पहले मैक्रों का पत्र
फ्रांसीसी राष्ट्रपति का यह बयान 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान थियारोई गांव में हुए नरसंहार की 80वीं वर्षगांठ से एक दिन पहले आया है। यह पत्र उस समय लिखा गया है जब फ्रांस का प्रभाव इस क्षेत्र पर कम हो रहा है।
1 दिसंबर 1944 को, फ्रांसीसी सेना द्वारा लगभग 400 पश्चिमी अफ्रीकी सैनिकों की हत्या की गई थी, जो फ्रांसीसी सेना के लिए लड़ा रहे थे। इनमें से अधिकांश सैनिक बिना हथियारों के थे। फ्रांस ने इसे वेतन भुगतान को लेकर विद्रोह के रूप में वर्णित किया था।
फ्रांसीसी राष्ट्रपति का कदम एक नई शुरुआत
सेनेगल के राष्ट्रपति बसिरू डियोमी फये ने कहा कि उन्होंने फ्रांसीसी राष्ट्रपति से यह पत्र प्राप्त किया है। मैक्रों का यह कदम एक नई शुरुआत होना चाहिए, ताकि थियारोई के इस दर्दनाक घटना के बारे में पूरी सच्चाई सामने आ सके।
पत्र में मैक्रों ने कहा, “फ्रांस को यह स्वीकार करना चाहिए कि यह नरसंहार सैनिकों और राइफलधारियों के बीच एक संघर्ष का परिणाम था, जो उस दिन अपनी पूरी वैध वेतन की मांग कर रहे थे।” यह पत्र उस समय सामने आया है जब फ्रांस का प्रभाव अफ्रीकी देशों पर घट रहा है।
जलियांवाला बाग़ नरसंहार
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग़ में एक भयावह घटना घटित हुई थी, जब ब्रिटिश साम्राज्य के सैनिकों ने वहां शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे भारतीयों पर बिना किसी चेतावनी के गोलियां चला दी थीं। इस घटना में सैकड़ों लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हुए थे। यह नरसंहार भारत की स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण और दिल दहला देने वाली घटना बन गई।
ब्रिटिश राज के दौरान, यह घटना एक ऐसे समय में घटी जब भारतीयों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध जताना शुरू कर दिया था, विशेषकर रोवलेट एक्ट के खिलाफ। इस एक्ट के तहत भारतीयों को बिना किसी मुकदमे के गिरफ्तार किया जा सकता था, जिसे भारतीयों ने अस्वीकार कर दिया था।
ब्रिटेन ने केवल अफसोस जताया
ब्रिटेन ने इस नरसंहार के लिए कभी माफी नहीं मांगी। 2019 में, जब जलियांवाला बाग़ नरसंहार की शताब्दी मनाई जा रही थी, तब तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने केवल इस घटना पर अफसोस जताया था, लेकिन कोई औपचारिक माफी नहीं दी। ब्रिटेन ने इसे “दुखद” घटना के रूप में वर्णित किया, लेकिन इस पर माफी का कोई सवाल नहीं उठाया।
क्या ब्रिटेन को माफी मांगनी चाहिए?
अब सवाल उठता है कि क्या ब्रिटेन को जलियांवाला बाग़ नरसंहार के लिए माफी मांगनी चाहिए? जलियांवाला बाग़ नरसंहार ने भारतीय समाज को गहरे घाव दिए, और यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। हालांकि ब्रिटेन ने अफसोस जताया, लेकिन भारत के नागरिकों और विशेष रूप से प्रभावित परिवारों के लिए एक वास्तविक माफी की आवश्यकता बनी हुई है।
भारत सरकार ने कई बार जलियांवाला बाग़ नरसंहार के लिए ब्रिटेन से माफी की मांग की है, लेकिन अब तक ब्रिटेन ने इसे एक ऐतिहासिक घटना के रूप में ही देखा है और किसी प्रकार की औपचारिक माफी नहीं दी। ऐसे में सवाल उठता है कि जब फ्रांस ने थियारोई नरसंहार को जनसंहार मान लिया है, तो क्या ब्रिटेन भी जलियांवाला बाग़ नरसंहार के लिए माफी मांगने का साहस दिखाएगा?
अफ्रीका और भारत में समानता
फ्रांस का कदम जहां एक ओर सेनेगल में इतिहास के इस काले पन्ने को स्वीकार करने के रूप में देखा जा सकता है, वहीं यह भारत के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदर्भ हो सकता है। जलियांवाला बाग़ और थियारोई दोनों ही घटनाएं साम्राज्यवादी शासन के तहत हुए अत्याचारों का प्रतीक हैं। जबकि फ्रांस ने अपने अतीत की ग़लतियों को स्वीकार किया है, ब्रिटेन को भी अपने अतीत के काले पन्नों को स्वीकार करना चाहिए और जलियांवाला बाग़ नरसंहार के लिए माफी मांगनी चाहिए।
फ्रांसीसी राष्ट्रपति का यह कदम जहां एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हो सकता है, वहीं ब्रिटेन का जलियांवाला बाग़ नरसंहार के लिए माफी न मांगना अभी भी भारतीयों के दिलों में एक दर्द बनकर मौजूद है। क्या ब्रिटेन भविष्य में इस घटना के लिए माफी मांगेगा या फिर इसे केवल अफसोस तक ही सीमित रखेगा, यह समय बताएगा।