सत्य खबर, पानीपत।
कोई व्यक्ति, नेता या राजनीतिक दल जब सोसाइटी में दबंग समझी जाने वाली बिरादरी की तरफ एक हद से ज्यादा झुकाव और एग्रेशन दिखाने लगे तो बाकी पिछड़े और उपेक्षित वर्ग न सिर्फ उस व्यक्ति, नेता या पार्टी से किनारा कर लेते हैं, बल्कि अंदरखाते उसके खिलाफ एकजुट भी हो जाते हैं।’
यह एक सामान्य फिनोमिना है। हरियाणा चुनाव के नतीजे कुछ हद तक इसी को दिखाते हैं। चुनाव से पहले ही कांग्रेस ने जाट कम्युनिटी की तरफ जिस तरह का झुकाव और एग्रेशन दिखाना शुरू कर दिया था, उसे देखकर ओबीसी, ब्राह्मण, पंजाबी, वैश्य और कुछ हद तक एससी बिरादरी खुद को अलग-थलग महसूस करने लगी थी।
कांग्रेस की इस पॉलिटिक्स से इन बिरादरियों के मन में कहीं न कहीं असुरक्षा का भाव भी आ गया। इसे भाजपा के थिंक-टैंक ने भांप लिया। उसके बाद लगातार सैलजा के अपमान और उपेक्षा के मुद्दे को उठाया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि जाटों को छोड़कर दूसरे वर्गों का बड़ा हिस्सा अपनी नाराजगी को छोड़ते हुए भाजपा के साथ आ गया। करनाल की असंध सीट से हारे कांग्रेस कैंडिडेट और पूर्व MLA शमशेर सिंह गोगी ने भी पार्टी की पराजय की यही वजह बताई।
दूसरी ओर कांग्रेस के रणनीतिकार, खासकर हुड्डा कैंप, वोटिंग के दिन तक सैलजा से जुड़े मुद्दे का कोई ऐसा हल नहीं निकाल पाया जो पार्टी को हो रहे नुकसान को रोक ले। कुछ हद तक इसके लिए उनका ओवर कॉन्फिडेंस भी जिम्मेदार रहा। अब नतीजा सबके सामने है।
कैंडिडेट्स के ऐलान से लेकर चुनाव प्रचार तक, कांग्रेस का जोर 22 से 25% जाटों और 20 से 22% एससी मतदाताओं पर रहा। इसके मुकाबले भाजपा ने अपनी गैर-जाट पॉलिसी पर चलते हुए 30 से 32% ओबीसी, 9 से 10% पंजाबी, 8 से 9% ब्राह्मण वोटरों पर फोकस किया।
कांग्रेस ने 90 विधानसभा सीटों में से 27 पर जाट बिरादरी के कैंडिडेट उतारे। इनमें से 13 जीते। गैर-जाट की राजनीति करने वाली भाजपा ने 16 सीटों पर जाट नेताओं को उतारा। उसके 6 उम्मीदवार विजयी रहे। 13 सीटों पर दोनों पार्टियों के जाट कैंडिडेट आमने-सामने थे। इनमें से 9 सीटें कांग्रेस और 4 भाजपा ने जीतीं।
बड़ी बात यह है कि भाजपा ने इस बार हुड्डा का गढ़ कहे जाने वाले सोनीपत जिले की 6 में से 4 सीटों पर जीत हासिल की। यहां की खरखौदा और गोहाना सीट तो भाजपा ने पहली बार जीती। 2014 और 2019 की मोदी वेव में भी पार्टी ये दोनों सीटें नहीं जीत पाई थी। सोनीपत की बची हुई 2 में से गन्नौर सीट पर भी भाजपा के बागी देवेंद्र कादियान विजयी रहे। हुड्डा के इस गढ़ में कांग्रेस को सिर्फ एक सीट पर विजय मिली।
11 विधानसभा सीटें ऐसी भी रहीं जहां कांग्रेस के जाट उम्मीदवार के सामने भाजपा ने दूसरी बिरादरियों के कैंडिडेट उतारे। भाजपा ने ऐसी 4 सीटों पर ब्राह्मण, 2 पर वैश्य और 1-1 सीट पर बिश्नोई, बैरागी, गुर्जर, सैनी व सिख चेहरे को टिकट दिया। इन 11 में से 8 सीटें भाजपा की झोली में गईं।
कांग्रेस के जाट कैंडिडेट सिर्फ 3 सीट पर जीत पाए। जाट बाहुल्य उचाना, गोहाना व पलवल में भाजपा का गैर जाट कार्ड फिट बैठा। अन्य पार्टियों की बात करें तो इनेलो के दोनों विधायक जाट बिरादरी के हैं। इस बार विजयी रहे 3 निर्दलीय में से भी 2 जाट कम्युनिटी से ताल्लुक रखते हैं।
भाजपा के जाट कैंडिडेट, कांग्रेस ने गैर जाट उतारे
प्रदेश की 3 विधानसभा सीटें ऐसी भी रहीं, जहां भाजपा ने जाट बिरादरी को टिकट दिए और उनके सामने कांग्रेस ने दूसरी बिरादरी को टिकट दिया। उसने 1 सीट पर पंजाबी, 1 पर ब्राह्मण और 1 पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारा। इनमें से दो सीटें कांग्रेस ने जीतीं, जबकि एक भाजपा के खाते में गई।
30% आबादी वाली ओबीसी, बिरादरी पर भाजपा और कांग्रेस का बराबर फोकस रहा। दोनों दलों ने ओबीसी, के 21-21 कैंडिडेट उतारे। 14 सीटों पर तो दोनों पार्टियों के उम्मीदवार ओबीसी, बिरादरी के थे। इस बिरादरी के जो 17 विधायक बने, उनमें 14 भाजपा और 3 कांग्रेस के हैं। रानियां सीट ऐसी रही, जहां दोनों दलों ने ओबीसी, उम्मीदवार उतारे थे। यहां बाजी इनेलो के अर्जुन चौटाला मार ले गए जो जाट बिरादरी से हैं।
इसी साल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में एकतरफा मतदान करने वाले एससी वोटर विधानसभा चुनाव आते-आते कांग्रेस और भाजपा में बंट गए। अनुसूचित जाति (एससी) के लिए रिजर्व 17 सीटों में से कांग्रेस ने 9 और भाजपा ने 8 जीतीं। 2019 में भाजपा को 5, कांग्रेस को 7, JJP को 4 और निर्दलीय को एक रिजर्व सीट पर जीत मिली थी।
पांचों मुस्लिम विधायक कांग्रेस के
इस बार मुस्लिम बिरादरी के जो 5 विधायक बने हैं, वह पांचों कांग्रेस के हैं। मुस्लिम बाहुल्य नूंह जिले की तीनों सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार विजयी रहे। यमुनानगर की जगाधरी सीट से अकरम खान और पलवल की हथीन सीट से मोहम्मद इसराइल विधायक बने। नूंह जिले की तीनों सीटों पर 2019 में भी कांग्रेस ने ही जीत दर्ज की थी।