ताजा समाचार

High Court’s decision: विकलांग पूर्व सैनिक को टाइपिंग टेस्ट से मुक्त करना गलत, पंजाब सरकार को क्लर्क पद पर नियुक्ति देनी चाहिए

High Court’s decision: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक विकलांग पूर्व सैनिक की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि देश की रक्षा करते हुए विकलांग हुए व्यक्ति को टाइपिंग टेस्ट के लिए मजबूर करना दुर्भाग्यपूर्ण, मनमाना और अवैध है। कोर्ट ने पंजाब सरकार को आदेश दिया कि उसे इस पूर्व सैनिक को क्लर्क पद पर नियुक्ति देनी चाहिए।

यह मामला पटियाला निवासी सतिंदर पाल सिंह से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने पंजाब सरकार द्वारा 2015 में जारी की गई क्लर्क भर्ती के तहत पूर्व सैनिक श्रेणी में आवेदन किया था। याचिकाकर्ता ने लिखित परीक्षा पास की थी, लेकिन वह टाइपिंग टेस्ट में उत्तीर्ण नहीं हो पाए थे। इस वजह से सरकार ने उन्हें नियुक्ति देने से इंकार कर दिया। इस पर याचिकाकर्ता ने 2016 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

पूर्व सैनिक को लेकर उच्च न्यायालय का अहम निर्णय

याचिकाकर्ता ने बताया कि वह करगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए थे, जिसके चलते उनकी दोनों हाथों की दो अंगुलियां कट गई थीं। इसके कारण वह 40 प्रतिशत विकलांग हो गए थे। हालांकि, विकलांगों के लिए टाइपिंग टेस्ट से छूट दी जाती है, लेकिन उन्हें विकलांगता के बावजूद यह छूट नहीं दी गई।

पंजाब सरकार ने तर्क दिया कि टाइपिंग टेस्ट से छूट केवल विकलांग श्रेणी के उम्मीदवारों को दी जा सकती है, पूर्व सैनिकों को नहीं। सरकार ने यह भी कहा कि पूर्व सैनिकों के लिए अलग से छूट का प्रावधान नहीं है। इस पर हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को पूर्व सैनिक श्रेणी और शारीरिक विकलांगता दोनों का लाभ मिलता है, इसलिए उसे टाइपिंग टेस्ट से छूट दी जानी चाहिए।

High Court's decision: विकलांग पूर्व सैनिक को टाइपिंग टेस्ट से मुक्त करना गलत, पंजाब सरकार को क्लर्क पद पर नियुक्ति देनी चाहिए

पंजाब सरकार को दी सख्त हिदायत

हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार से कहा कि वह अपने विज्ञापन में दिए गए प्रावधानों के आधार पर याचिकाकर्ता के मामले पर विचार करे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर कोई पूर्व सैनिक 40 प्रतिशत विकलांगता से ग्रस्त है, तो उसे भी वही सुविधाएं दी जानी चाहिए जो शारीरिक विकलांगता वाले उम्मीदवारों को दी जाती हैं।

इस फैसले में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उजल भुइयां ने कहा कि पूर्व सैनिक, जो देश की सेवा करते हुए विकलांग हो गए हैं, उन्हें टाइपिंग टेस्ट से छूट देना न देने का निर्णय भेदभावपूर्ण होगा। इससे न केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन होगा, बल्कि यह संविधान की मूल भावना के भी खिलाफ होगा।

मुकदमा क्या था?

सतिंदर पाल सिंह ने 2015 में पंजाब सरकार द्वारा जारी की गई क्लर्क भर्ती में आवेदन किया था। वे पूर्व सैनिक श्रेणी के उम्मीदवार थे और उन्होंने लिखित परीक्षा पास की थी। लेकिन जब उन्हें टाइपिंग टेस्ट देना पड़ा, तो विकलांगता के कारण वे सफल नहीं हो पाए। उनका कहना था कि उनका विकलांगता प्रमाणपत्र सरकारी चिकित्सक से प्रमाणित है, फिर भी उन्हें टाइपिंग टेस्ट से छूट नहीं दी गई, जो कि अव्यावहारिक था।

पूर्व सैनिकों को अन्य श्रेणियों से अलग माना जाता है, लेकिन जब वे विकलांगता से ग्रस्त होते हैं, तो यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि उन्हें वही लाभ मिलें जो अन्य विकलांग उम्मीदवारों को प्राप्त होते हैं।

यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?

यह मामला न केवल एक व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा से जुड़ा है, बल्कि यह पूर्व सैनिकों और विकलांगों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी देता है। न्यायालय ने इस फैसले के माध्यम से स्पष्ट किया कि देश की सेवा करने वाले और विकलांग होने वाले व्यक्तियों को उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।

इस फैसले का प्रभाव यह होगा कि अब राज्य सरकार को ऐसे विकलांग पूर्व सैनिकों के मामलों में निष्पक्ष निर्णय लेने होंगे, ताकि उनकी नियुक्ति में कोई भेदभाव न हो। यह फैसला विकलांगता के अधिकारों की रक्षा में एक अहम कदम साबित होगा और इससे ऐसे अन्य उम्मीदवारों को भी राहत मिलेगी जो इस प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

क्या यह फैसला अन्य मामलों में भी लागू होगा?

इस फैसले का प्रभाव केवल इस मामले तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि अन्य विकलांग पूर्व सैनिकों के लिए भी यह एक मार्गदर्शक निर्णय बनेगा। अब वे यह उम्मीद कर सकते हैं कि अगर उनकी विकलांगता प्रमाणित है और उनकी श्रेणी में छूट का प्रावधान है, तो उन्हें भी टाइपिंग टेस्ट जैसी शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण प्रक्रियाओं से राहत दी जाएगी।

इसके अलावा, यह फैसला अन्य सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं में भी एक उदाहरण बन सकता है। यदि कोई उम्मीदवार शारीरिक विकलांगता के कारण किसी परीक्षा में भाग लेने में असमर्थ है, तो उसे वैकल्पिक प्रक्रिया या छूट मिलनी चाहिए, ताकि वह समान अवसरों का लाभ उठा सके।

हाईकोर्ट का यह फैसला पूर्व सैनिकों और विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक अहम कदम है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जो लोग देश की सेवा में शहीद होते हैं और विकलांग हो जाते हैं, उन्हें न्याय और अवसर मिलना चाहिए। पंजाब सरकार को इस फैसले का पालन करते हुए सतिंदर पाल सिंह को क्लर्क पद पर नियुक्त करना चाहिए। इस फैसले से यह भी साबित हुआ कि यदि सरकारें अपने नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं, तो न्यायालय उनका हक दिलाने के लिए कड़ी कार्रवाई करेगा।

Back to top button