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Historic verdict of CBI court: 1992 में दो युवकों का अपहरण और फर्जी मुठभेड़ में हत्या मामले में पुलिसकर्मियों को सजा

Historic verdict of CBI court: सीबीआई कोर्ट ने 1992 में दो युवकों के अपहरण और फर्जी मुठभेड़ में हत्या करने तथा उनके शवों को अनधिकृत रूप से जलाने के मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया है। इस फैसले में तत्कालीन थाना प्रभारी (SHO) गुरबचन सिंह, एएसआई रेशम सिंह और पुलिसकर्मी हंसराज सिंह को हत्या और आपराधिक साजिश के तहत दोषी करार दिया गया है। अदालत ने तीनों आरोपियों को दोषी ठहराते हुए उन्हें जेल भेजने का आदेश दिया है। अब मंगलवार को इन तीनों को सजा सुनाई जाएगी।

मामले का पृष्ठभूमि

सीबीआई की चार्जशीट के अनुसार, 18 नवम्बर 1992 को पुलिस टीम ने जगदीप सिंह उर्फ मखन के घर पर गोलीबारी की थी, ताकि उसे गिरफ्तार किया जा सके। इस गोलीबारी में मखन की सास सविंदर कौर की गोली लगने से मौत हो गई। इसके बाद, 21 नवम्बर 1992 को गुरबचन सिंह के नेतृत्व में पुलिस टीम ने मखन और उसके साथी गुरनाम सिंह उर्फ पाली को उनके घर से अपहरण कर लिया।

30 नवम्बर 1992 को दोनों युवकों को फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया। पुलिस ने इस मुठभेड़ को एक वास्तविक मुठभेड़ के रूप में दर्ज किया और एफआईआर संख्या 130/92 के तहत इसे घटना के रूप में प्रस्तुत किया। एफआईआर में कहा गया था कि गुरबचन सिंह और उनकी टीम ने सुबह की गश्त के दौरान एक संदिग्ध युवक को पकड़ा था, जिसने अपना नाम गुरनाम सिंह बताया था, और फिर उसे कथित मुठभेड़ में मार दिया गया।

सीबीआई ने 2021 में मामले की जांच पूरी करने के बाद अदालत में चार्जशीट दाखिल की। जांच के दौरान आरोपी पुलिसकर्मी अर्जुन सिंह का दिसंबर 2021 में निधन हो गया, जिसके कारण उनके खिलाफ proceedings रोक दी गईं। 21 दिसंबर 2024 को अदालत ने गुरबचन सिंह, रेशम सिंह और हंसराज सिंह को हत्या और आपराधिक साजिश के आरोप में दोषी ठहराया और उन्हें जेल भेज दिया।

Historic verdict of CBI court: 1992 में दो युवकों का अपहरण और फर्जी मुठभेड़ में हत्या मामले में पुलिसकर्मियों को सजा

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अपहरण मामले में SHO को दस साल की सजा

पंजाब के 32 साल पुराने अपहरण, अवैध हिरासत और गुमशुदगी के मामले में सीबीआई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस फैसले में तब के थाना सरहाली, जिला तरनतारन के SHO सुरिंदरपाल सिंह को विभिन्न धाराओं के तहत सजा सुनाई गई है। विशेष न्यायाधीश मंजोत कौर ने सुरिंदरपाल सिंह को कड़ी सजा दी है।

अदालत ने सुरिंदरपाल सिंह को धारा 120-B (साजिश) के तहत 10 साल की सजा और 2 लाख रुपये का जुर्माना, धारा 364 (अपहरण) के तहत 10 साल की सजा और 2 लाख रुपये का जुर्माना, धारा 365 (गुमशुदगी) के तहत 7 साल की सजा और 70 हजार रुपये का जुर्माना, तथा धारा 342 (अवैध हिरासत) के तहत 3 साल की सजा और 1 लाख रुपये का जुर्माना सुनाया है।

जुर्माना न भरने पर अतिरिक्त सजा

अदालत ने यह भी आदेश दिया है कि यदि आरोपी जुर्माना नहीं भरता है, तो उसे अतिरिक्त 2 साल की सजा भुगतनी होगी। इस फैसले से पुलिस व्यवस्था में सुधार की उम्मीद जताई जा रही है, क्योंकि यह सजा पुलिसकर्मियों को यह संदेश देती है कि कानून के उल्लंघन करने वालों को सजा जरूर मिलेगी, चाहे वे कितने भी प्रभावशाली क्यों न हों।

मामले का विस्तृत विवरण

यह मामला 31 अक्टूबर 1992 का है, जब एक पुलिस टीम ने एएसआई अवतार सिंह के नेतृत्व में सुखदेव सिंह (सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल, लोपीके, अमृतसर के उपप्रधानाचार्य) और उनके 80 वर्षीय ससुर सुलक्षण सिंह (स्वतंत्रता सेनानी) को पुलिस स्टेशन सरहाली, तरनतारन में अवैध रूप से हिरासत में लिया। तीन दिन तक उनकी हिरासत जारी रही, इस दौरान उनके परिवार के सदस्य और शिक्षक उनसे मिलने गए थे। तीन दिन बाद, दोनों की गुमशुदगी की सूचना मिली। सुखदेव सिंह की पत्नी सुखवंत कौर ने उच्च अधिकारियों से शिकायत की थी।

इस मामले ने व्यापक ध्यान आकर्षित किया, और परिवार के दबाव के बाद जांच शुरू की गई। सीबीआई ने मामले की जांच की और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की, जिसके बाद अदालत ने सुरिंदरपाल सिंह सहित अन्य आरोपियों को दोषी करार दिया। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि पुलिसकर्मियों द्वारा किए गए अत्याचार और अवैध कार्यों को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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सीबीआई कोर्ट का यह फैसला पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का उदाहरण है। यह दर्शाता है कि पुलिस में कार्यरत लोग अगर कानून के खिलाफ काम करेंगे तो उन्हें दंडित किया जाएगा। इस फैसले से न्याय व्यवस्था में विश्वास बढ़ेगा और समाज में यह संदेश जाएगा कि चाहे कोई कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, अपराध करने वालों को सजा जरूर मिलेगी।

यह फैसले उन परिवारों के लिए उम्मीद की किरण हैं, जिनके प्रियजन पुलिसकर्मियों द्वारा अवैध तरीके से हिरासत में लिए गए थे या जिनकी हत्या की गई थी। इस फैसले से यह भी उम्मीद जताई जा रही है कि भविष्य में पुलिस के व्यवहार में सुधार होगा और न्यायपालिका अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभाएगी।

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