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सतीश कौशिक के पैतृक गांव में पसरा मातम, जानिए बचपन के दोस्तों ने क्या कुछ कहा

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Mourning spreads in Satish Kaushik's native village

सत्यखबर, महेंद्रगढ़ । Mourning spreads in Satish Kaushik’s native village

हरियाणा में महेंद्रगढ़ के रहने वाले मशहूर डायरेक्ट और एक्टर सतीश कौशिक के निधन के बाद पैतृक गांव धनौंदा में शोक की लहर है। सतीश कौशिक का जन्म दिल्ली में 13 अप्रैल 1956 में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बीती रात बुधवार को गुडगांव के फोर्टिस हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली। गुरुवार को चार्टर्ड प्लेन से उनका पार्थिव शरीर मुंबई लाया जाएगा। जहां उनका अंतिम संस्कार होगा।

उनके पिताजी 2 भाई थे। बड़े का नाम गोवर्धन व छोटे का नाम बनवारी लाल है। सतीश कौशिक 3 भाई थे। बड़े का नाम ब्रह्म प्रकाश कौशिक, अशोक कौशिक और सबसे छोटे सतीश कौशिक थे। सतीश कौशिक की 3 बहनें है। सरस्वती देवी, शकुंतला देवी व सविता देवी।

Mourning spreads in Satish Kaushik's native village

Mourning spreads in Satish Kaushik’s native village

सतीश कौशिक के पिता बनवारी लाल दिल्ली में मुनिम का काम करते थे। कुछ समय बाद वे हैरिसन कंपनी की एजेंसी ली थी। सतीश कौशिक की पढ़ाई दिल्ली के ही स्कूलों में हुई। कनीना से दादरी रोड पर धनौंदा गांव सतीश कौशिक का पैतृक गांव है। सतीश कौशिक बचपन में गर्मियों की छुट्टियों में गांव में आते थे। वह अपने गांव के लोगों से बहुत स्नेह करते थे। सतीश कौशिक हर साल गांव धनौंदा में सामाजिक कार्यों में भाग लेते थे व अपने बचपन के साथियों से पूरे गांव में घूमते थे।

सतीश कौशिक के चचेरे भाई सुभाष कौशिक ने बताया की की उनके चले जाने से सबसे अधिक क्षति उनको हुई है क्योंकि वह उनका विशेष ध्यान रखते थे गांव में साल में एक बार अवश्य आते थे और यहां वे बाजरा की रोटी सरसों का साग बड़े प्यार से खाते हैं। गांव में आने पर ऊंट गाड़ी पर बैठकर बहुत खुश होते थे।

सतीश कौशिक के दोस्त राजेंद्र सिंह नंबरदार ने बताया कि जब भी वह गांव में आते थे। पूरा गांव में घूमते थे, बचपन में जब वे छुट्टियों में आते थे तो हम सभी गुल्ली डंडा, कबड्डी, कुश्ती खेलते थे। गांव में बने बाबा दयाल के जोहड़ के पास

उन्होंने बताया कि सतीश कौशिक ने हमें काफी बार मुंबई आने के लिए कहा, लेकिन समय के अभाव के कारण हम वहां नहीं जा सके। घर के पड़ोसी ठाकुर अतरलाल ने बताया जब वह बचपन में स्कूल की छुट्टियों में गांव आते थे। तब हम बड़ी मस्ती से गांव की गलियों में खेलते थे। जब वे वापस जाते थे तो हम सभी बड़े भावुक हो जाते थे और उनका अगली साल आने का इंतजार करते थे। आज उनको जाने से हमें बहुत क्षति हुई है।

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उन्होंने 2010 में गांव के राधा कृष्णा मंदिर में मूर्ति की स्थापना करवाई थी। गांव के जोहड़ की सफाई करवाई, सरकार के सहयोग से स्टेडियम बनवाया और सरकार से गांव में काफी ग्रांट भी उपलब्ध करवाई। सतीश कौशिक के चचेरे भाई का लड़का सुनील ने बताया मेरे ताऊ जी जब भी गांव में आते। पहले मुझे फोन के द्वारा सूचित करते। गांव में जो भी कार्यक्रम होता गांव के लोग जब उनको बुलाते तो वे अपने कार्य को छोड़कर गांव में पहुंचते थे।

वे कहते थे कि यह मेरा पैतृक गांव है, मुझे इससे सबसे अधिक लगाव है। आज उनका जो अचानक छोड़कर चले जाना गांव के लिए सबसे बड़ी क्षति हुई है। सुबह से ही गांव में क्षेत्र के लोगों का हमारे घर आने-जाने का सिलसिला लगा हुआ है। सभी उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना करते हैं। सतीश कौशिक के दोनों सगे भाई ब्रह्म कौशिक व अशोक कौशिक कौशिक मुंबई में रहते हैं। उन्होंने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से गांव को एक करोड़ रुपए की ग्रांट दिलवाई थी, जिससे गांव में काफी विकास हुआ था। Mourning spreads in Satish Kaushik’s native village

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