Lok Sabha Elections: कुछ को डरा रहे हैं और कुछ को उम्मीदें बढ़ा रहे हैं… छठे चरण के छह लोकसभा सीटें?
Lok Sabha Elections के छठे चरण में आठ राज्यों की 58 सीटों पर प्रचार का शोर थम गया है और 25 मई को वोटिंग है. Congress और BJP समेत सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी जीत के लिए पूरी ताकत लगा दी है. छठे चरण में आधा दर्जन लोकसभा सीटें कुछ पार्टियों को डरा रही हैं तो कुछ को जीत की उम्मीद जगा रही हैं. अगर इन सीटों पर कुछ वोट इधर-उधर हुए तो राजनीतिक दलों का गणित गड़बड़ा सकता है। ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रहा है.
छठे चरण में छह लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पिछले चुनाव में जीत-हार का अंतर एक फीसदी से भी कम वोटों का था. उत्तर प्रदेश की मछलीशहर और श्रावस्ती तथा हरियाणा की रोहतक सीट शामिल है. इसके अलावा ओडिशा की संबलपुर और पुरी सीटें और पश्चिम बंगाल की झाड़ग्राम सीट है. 2019 में इनमें से चार सीटों पर बीजेपी, एक सीट पर बीएसपी और एक सीट पर बीजेडी जीतने में सफल रही थी. इस बार बदले राजनीतिक समीकरण में अगर एक फीसदी वोट भी इधर-उधर हुआ या किसी और के खाते में गया तो सीटें बचाना मुश्किल हो जाएगा.
मछलीशहर सीट पर 181 वोटों का अंतर
2019 में मछली शहर लोकसभा सीट पर BJP के बीपी सरोज बीएसपी के त्रिभुवन राम को महज 181 वोटों से हराने में कामयाब रहे. यह देश में जीत के सबसे कम अंतर वाली सीट थी. बीपी सरोज को 488,397 वोट मिले जबकि त्रिभुवन को 4,88,216 वोट मिले। इस तरह सिर्फ 0.02 फीसदी वोटों का अंतर रहा. एक बार फिर BJP से बीपी सरोज मैदान में हैं जिनका मुकाबला सपा की प्रिया सरोज और बसपा के कृपाशंकर सरोज से है. प्रिया सपा विधायक तूफानी सरोज की बेटी हैं। यहां तीनों उम्मीदवार एक ही समुदाय से हैं, इसलिए तीनों की नजर ऊंची जाति के वोटों पर है. इसके अलावा अगर यादव वोटों का बिखराव नहीं हुआ तो सपा और BJP के बीच कांटे की टक्कर हो सकती है.
मछलीशहर में पिछड़े और दलित मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। पिछड़ों में भी यादवों की संख्या सबसे ज्यादा है. पिछड़ों के बाद अनुसूचित जाति के मतदाता दूसरे नंबर पर हैं. इसके बाद ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ, मुस्लिम और अन्य जाति के वोटर हैं. ऐसे में मछलीशहर का चुनाव जातीय शतरंज पर आधारित है। बीपी सरोज के भी पांच साल पूरे होने हैं, लेकिन मोदी-योगी के नाम पर जीत की उम्मीदें हैं. ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि क्या वे 181 वोटों की जीत बरकरार रख पाते हैं या नहीं?
श्रावस्ती में चुनाव महज कुछ वोटों पर निर्भर है
2019 में श्रावस्ती लोकसभा सीट पर जीत-हार का अंतर आधा फीसदी था. बसपा के रामशिरोमणि वर्मा को 44.31 फीसदी के साथ 441,771 वोट मिले, जबकि BJP के दद्दन मिश्रा को 43.78 फीसदी के साथ 4,36,451 वोट मिले. इस सीट पर रामशिरोनी वर्मा ने 0.53 फीसदी के साथ 5320 वोटों से जीत हासिल की थी. इस तरह हार-जीत का अंतर बहुत कम रहा. इस बार BJP ने दद्दन मिश्रा की जगह साकेत मिश्रा को मैदान में उतारा है और रामशिरोमणि वर्मा भी बसपा की जगह सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. मोइनुद्दीन अहमद खान बसपा से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
मुस्लिम बहुल श्रावस्ती लोकसभा सीट पर बीएसपी ने मुस्लिम और एसपी ने कुर्मी समुदाय से उम्मीदवार उतारा है, जबकि BJP ने ब्राह्मण समुदाय से उम्मीदवार उतारा है. श्रावस्ती में पांच लाख से ज्यादा मुस्लिम, दो लाख से ज्यादा कुर्मी और दो लाख से ज्यादा ब्राह्मण वोटर हैं. इसके अलावा करीब दो लाख दलित मतदाता हैं. बसपा मुस्लिम-दलित वोट बैंक को लुभाकर अपनी जीत बरकरार रखने की कोशिश कर रही है तो वहीं सपा कुर्मी-यादव-मुस्लिम समीकरण के दम पर जीत की उम्मीद कर रही है. BJP अपने कोर वोट बैंक से जीत हासिल करना चाहती है. अगर मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ तो यह सीट सपा के लिए काफी मुश्किल हो जाएगी।
क्या दीपेंद्र हुड्डा को वापस मिलेगी रोहतक सीट?
हरियाणा की रोहतक लोकसभा सीट पर सभी की निगाहें हैं, क्योंकि यह पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का गढ़ रहा है और पिछले चुनाव में उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा को बहुत कम अंतर से हार का सामना करना पड़ा था. 2019 में BJP के डॉ. अरविंद शर्मा को 47.01 फीसदी के साथ 573,845 वोट और Congress के दीपेंद्र हुड्डा को 46.04 फीसदी के साथ 5,66,342 वोट मिले थे. इस तरह शर्मा ने हुड्डा को 0.61 प्रतिशत और 7,503 वोटों के अंतर से हरा दिया. एक बार फिर दोनों नेता आमने-सामने हैं.
BJP ने अरविंद शर्मा और Congress ने दीपेंद्र हुड्डा को मैदान में उतारा है. इस सीट पर Congress के साथ-साथ हुड्डा परिवार की साख भी दांव पर है. दीपेंद्र हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के बेटे हैं। इसलिए इस सीट पर जीत या हार का फैसला यह भी तय करेगा कि हरियाणा की राजनीति में हुड्डा परिवार का कितना प्रभाव है. BJP ने इस सीट को बरकरार रखने के लिए पूरी ताकत लगा दी है, वहीं Congress किसी भी कीमत पर इस सीट को वापस पाना चाहती है. देखने वाली बात यह होगी कि क्या दीपेंद्र हुड्डा साढ़े सात हजार की हार का हिसाब चुकता कर पाते हैं या नहीं?
ओडिशा की संबलपुर और पुरी सीटें
ओडिशा की संबलपुर और पुरी लोकसभा सीटों पर जीत-हार का अंतर बहुत ज्यादा नहीं रहा. संबलपुर लोकसभा सीट पर BJP के नीतीश गंगा देब ने बीजेडी के नलिनी कांत प्रधान को 9,162 वोटों से हराया. नीतीश देब को 473,770 वोट मिले जबकि नलिनी को 4,64,608 वोट मिले। ऐसे में जीत-हार का अंतर 0.81 फीसदी रहा. इस बार BJP ने अपने विजयी सांसद का टिकट काटकर केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को मैदान में उतारा है, जिनका मुकाबला Congress उम्मीदवार नागेंद्र कुमार प्रधान और बीजेडी के प्रणब प्रकाश दास से है. इस सीट की खासियत यह है कि यहां के मतदाता हर बार अपना मूड बदल लेते हैं, जिससे BJP के लिए यह सीट बरकरार रखना मुश्किल होगा.
पुरी लोकसभा सीट पर भी सबकी निगाहें हैं, क्योंकि पिछले चुनाव में संबित बहुत कम वोटों से हारे थे. 2019 में बीजेडी के पिनाकी मिश्रा ने BJP के संबित पात्रा को 11,714 वोटों से हराया. इस सीट पर जीत-हार का अंतर 1.03 फीसदी था. पुरी सीट बीजेडी का गढ़ मानी जाती है, जिसमें BJP संबित पात्रा के जरिए सेंध लगाना चाहती है. BJP ने एक बार फिर संबित पात्रा को मैदान में उतारा है, वहीं बीजेडी ने पिनाकी मिश्रा की जगह आईपीएस अरूप मोहन पटनायक को मैदान में उतारा है. भगवान जगन्नाथ पर टिप्पणी से संबित पात्रा का समीकरण बिगड़ सकता है.
झारग्राम सीट पर सबकी निगाहें
पश्चिम बंगाल की झाड़ग्राम लोकसभा सीट पर भी पिछले चुनाव में वोटों का अंतर काफी कम था. 2019 में BJP के कुंअर हेम्ब्रम को 44.56 फीसदी के साथ 626,583 वोट मिले, जबकि टीएमसी के बिरबाहा सोरेन को 43.72 फीसदी के साथ 614,816 वोट मिले. BJP 11,767 वोटों से जीतने में सफल रही. इस सीट पर जीत-हार का अंतर एक फीसदी से भी कम यानी 0.84 फीसदी रहा. इस बार BJP और टीएमसी ने अपने उम्मीदवार बदल दिए हैं. BJP ने प्राणनाथ टुडो को मैदान में उतारा है, जबकि टीएमसी ने कालीपारा सोरेन और सीपीआई (एम) ने सोनामनी मुर्मू को मैदान में उतारा है. ऐसे में झाड़ग्राम लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है. ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि पिछले चुनाव में एक फीसदी से कम का अंतर क्या राजनीतिक असर डालता है.