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संसद में Manmohan Singh का सुषमा को जवाब: ‘मैं आपकी दृष्टि के योग्य नहीं…’, जोरदार प्रशंसा हुई

पूर्व प्रधानमंत्री Dr. Manmohan Singh अब हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को नया दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, खासकर पी.वी. नरसिंह राव की सरकार में। भारतीय राजनीति में उनकी गहरी समझ और काबिलियत के कारण वह एक आदर्श नेता के रूप में जाने गए। हालांकि, डॉ. मनमोहन सिंह को केवल उनके आर्थिक ज्ञान के लिए ही नहीं, बल्कि उनकी शेरो-शायरी के लिए भी याद किया जाएगा। उनके भाषणों में शेरो-शायरी का अनोखा तरीका संसद में विशेष रूप से चर्चित था।

डॉ. मनमोहन सिंह और शेरो-शायरी का अजीब रिश्ता

मनमोहन सिंह ने शायद ही कभी खुद को लाउड तरीके से व्यक्त किया हो, लेकिन जब उन्होंने बोला, तो उनका हर शब्द मायने रखता था। वे एक मृदुभाषी और संयमित नेता थे, लेकिन जब भी संसद में कुछ मुद्दों पर बहस होती, वह शेरो-शायरी के माध्यम से विपक्ष को जवाब देने का तरीका अपनाते थे। खासकर बीजेपी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज के साथ उनकी शेरो-शायरी में कई दिलचस्प पल रहे हैं।

सुषमा स्वराज के साथ जुगलबंदी

डॉ. मनमोहन सिंह और सुषमा स्वराज की शेरो-शायरी की जुगलबंदी संसद के अंदर एक दिलचस्प मंजर बन चुकी थी। उस समय संसद में विपक्ष और सरकार के बीच उतनी तल्खी नहीं थी, जितनी आजकल देखने को मिलती है। सुषमा स्वराज, जो उस समय लोकसभा में विपक्ष की नेता थीं, उन्हें भी शेरो-शायरी का काफी शौक था। जब भी मौका मिलता, वह भी डॉ. मनमोहन सिंह को चुनौती देतीं और उनकी शेरो-शायरी से जवाब देतीं।

मार्च 2011 का घटना और सुषमा स्वराज का हमला

मार्च 2011 में संसद में विकीलीक्स को लेकर जमकर हंगामा हुआ था। कांग्रेस सरकार पर आरोप थे कि 2008 के विश्वास मत के दौरान सांसदों को रिश्वत दी गई थी। इस आरोप पर सुषमा स्वराज ने डॉ. मनमोहन सिंह पर तीखा हमला किया। उन्होंने शेर के माध्यम से यह बात उठाई, ‘‘ना यह बात करो, वह बात करो, मुझे बताओ क्यों काफिला लूटा गया, चोरों से कोई शिकायत नहीं, यह आपके नेतृत्व पर सवाल है।’’

सुषमा स्वराज के इस हमले के जवाब में डॉ. मनमोहन सिंह ने भी शेर का सहारा लिया। उन्होंने अल्लामा इकबाल का प्रसिद्ध शेर पढ़ते हुए कहा, “मैं मानता हूँ कि मैं आपकी नज़रों के काबिल नहीं हूँ, आप मेरी चाहत को देखिए, और मेरी इंतजार को देखिए।”

यह संवाद संसद में खूब सराहा गया और दोनों नेताओं के बीच की शेरो-शायरी की जुगलबंदी ने एक अलग ही रंग पेश किया।

2013 में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर शेरो-शायरी

2013 में जब राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस हो रही थी, उस समय भी डॉ. मनमोहन सिंह और सुषमा स्वराज ने शेरो-शायरी का सहारा लिया। डॉ. मनमोहन सिंह ने मिर्जा गालिब की शेर का हवाला देते हुए कहा, ‘‘हम वफादारी की उम्मीद रखते हैं, उनसे जो वफादारी का मतलब नहीं जानते।’’

इस पर सुषमा स्वराज ने भी दो शेर पढ़े। पहला शेर था बशीर बद्र का, ‘‘कुछ तो मजबूरियां होंगी, कोई बेवफा नहीं होता ऐसे ही।’’ दूसरा शेर था, ‘‘तुम वफादारी याद नहीं रखते, हम दगाबाजी नहीं याद रखते, ज़िंदगी का बस दो ही गाने होते हैं, एक तुम्हें याद नहीं रहता, एक हमें याद नहीं रहता।’’

यह पल भी संसद में बहुत ही चर्चित हुआ और दोनों नेताओं के बीच की शेरो-शायरी की जुगलबंदी ने संसद के माहौल को और रंगीन बना दिया।

सुषमा स्वराज का निधन और डॉ. मनमोहन सिंह का शोक

सुषमा स्वराज का निधन 2019 में हुआ। डॉ. मनमोहन सिंह ने उन्हें भारतीय राजनीति की एक महान नेता और प्रतिभाशाली केंद्रीय मंत्री के रूप में याद किया। उनके निधन पर उन्होंने शोक व्यक्त करते हुए कहा था कि सुषमा स्वराज हमेशा देश की सेवा में समर्पित रही थीं और उनकी कमी हमेशा खलेगी।

डॉ. मनमोहन सिंह का निधन

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का निधन 2024 में हुआ, और उनकी उम्र 91 वर्ष थी। उनका निधन भारतीय राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति है। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया और देश को एक नई दिशा दी।

डॉ. मनमोहन सिंह की शेरो-शायरी का महत्व

डॉ. मनमोहन सिंह की शेरो-शायरी केवल उनकी व्यक्तिगत रुचि का हिस्सा नहीं थी, बल्कि यह उनके व्यक्तित्व का अहम हिस्सा बन चुकी थी। उनकी शेरो-शायरी न केवल विरोधियों के लिए एक चुनौती थी, बल्कि यह उन लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत थी, जो राजनीति को एक शालीन और जिम्मेदार तरीके से करना चाहते थे। उनके शेरों में एक गहरी समझ, धैर्य और संघर्ष की भावना झलकती थी।

डॉ. मनमोहन सिंह का शेरो-शायरी से गहरा संबंध था। उनकी शेरो-शायरी ने संसद के भीतर और बाहर दोनों ही जगहों पर उन्हें एक अलग पहचान दिलाई। उनके साथ सुषमा स्वराज की जुगलबंदी, उनकी शेरो-शायरी का आकर्षण और संसद में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। उनके निधन के साथ भारतीय राजनीति ने एक महान नेता को खो दिया, जो अपने समय में न केवल एक उत्कृष्ट प्रधानमंत्री थे, बल्कि शेरो-शायरी के माध्यम से अपनी बात कहने की कला में भी माहिर थे।

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