राष्‍ट्रीय

Morarji Desai: एकमात्र भारतीय जिन्हें भारत और पाकिस्तान दोनों ने दिया सर्वोच्च सम्मान

Morarji Desai भारतीय राजनीति के उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे जो जीवन भर अपने सिद्धांतों पर कायम रहे। वे किसी से भी टकरा जाते थे लेकिन अपने उसूल नहीं छोड़ते थे। उन्होंने अपनी प्रशासनिक नौकरी छोड़कर राजनीति की राह पकड़ी और 1977 से 1979 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।

भारत और पाकिस्तान से मिला सर्वोच्च सम्मान

मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी 1896 को गुजरात के भादेली गांव में हुआ था। वे देश के इकलौते प्रधानमंत्री हैं जिन्हें भारत रत्न और पाकिस्तान का निशान-ए-पाकिस्तान दोनों सम्मान मिले हैं। यह सम्मान उन्हें भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को सुधारने के मकसद से दिया गया था ऐसा माना जाता है।

RAW एजेंट्स की मौत और निशान-ए-पाकिस्तान का विवाद

एक चर्चित थ्योरी के अनुसार मोरारजी देसाई ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख जियाउल हक को भारतीय जासूसों की मौजूदगी के बारे में बताया था जिसके बाद पाकिस्तान में RAW के कई एजेंट मारे गए। हालांकि रक्षा विशेषज्ञ आलोक बंसल इस बात को सिरे से नकारते हैं और इसे अफवाह मानते हैं।

IAS officer Divya S. Iyer की तारीफ पर KK Ragesh को लेकर केरल में राजनीतिक तूफान
IAS officer Divya S. Iyer की तारीफ पर KK Ragesh को लेकर केरल में राजनीतिक तूफान

Morarji Desai: एकमात्र भारतीय जिन्हें भारत और पाकिस्तान दोनों ने दिया सर्वोच्च सम्मान

 नेहरू के बाद पीएम पद के सबसे मजबूत दावेदार

जवाहरलाल नेहरू की मौत के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार थे लेकिन कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाजी के कारण वह समर्थन नहीं जुटा पाए। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने और फिर इंदिरा गांधी से भी उनका मुकाबला हुआ लेकिन मोरारजी को हार माननी पड़ी।

जयप्रकाश नारायण की मदद से बने प्रधानमंत्री

जब 1977 में जनता पार्टी को लोकसभा में बहुमत मिला तो मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री पद के प्रमुख दावेदार बने लेकिन चारण सिंह और जगजीवन राम भी रेस में थे। उस समय जयप्रकाश नारायण का समर्थन उन्हें मिला और वे प्रधानमंत्री बने। लेकिन चारण सिंह से मतभेदों के कारण उन्हें पद छोड़ना पड़ा।

Mohan Bhagwat करेंगे The Hindu Manifesto पुस्तक का विमोचन स्वामी विज्ञानानंद के विचारों का संगम
Mohan Bhagwat करेंगे The Hindu Manifesto पुस्तक का विमोचन स्वामी विज्ञानानंद के विचारों का संगम

Back to top button