राष्‍ट्रीय

NCPCR: मदरसों में बच्चों को उचित शिक्षा नहीं मिल रही, सुप्रीम कोर्ट में दायर किए गए लिखित तर्क

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक लिखित तर्क पेश किया, जिसमें कहा गया कि मदरसों में बच्चों को उचित शिक्षा नहीं मिल रही है। आयोग का कहना है कि मदरसों में बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा पूरी नहीं है और यह शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के प्रावधानों का उल्लंघन है।

मदरसा शिक्षा और अधिकारों का उल्लंघन

NCPCR का तर्क है कि मदरसों में बच्चों को दिए जाने वाले शिक्षा में बुनियादी आवश्यकताएं पूरी नहीं हो रही हैं। इससे बच्चों का बुनियादी शिक्षा का अधिकार प्रभावित हो रहा है। आयोग ने अपने तर्क में कहा है कि मदरसों में शिक्षा की जो प्रणाली है, वह संपूर्ण नहीं है और यह अधिकारों की रक्षा के प्रावधानों के खिलाफ है।

आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किए गए तर्कों में कहा कि मदरसों में न केवल उचित शिक्षा की कमी है, बल्कि बच्चों को एक स्वस्थ वातावरण और विकास के बेहतर अवसर भी नहीं मिल रहे हैं। इसके अलावा, गैर-मुस्लिम बच्चों को भी इस्लामिक शिक्षा दी जा रही है, जो संविधान के अनुच्छेद 28(3) का उल्लंघन है। इस तरह के संस्थानों में पढ़ाई करने वाले बच्चे स्कूल की पाठ्यक्रम की बुनियादी जानकारी से भी वंचित रह जाते हैं।

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मदरसा शिक्षा के मॉडल की कमी

NCPCR ने कहा कि मदरसों में शिक्षा के मॉडल संतोषजनक और पर्याप्त नहीं हैं, और इनकी कार्यप्रणाली भी मनमानी है। शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के तहत अनुच्छेद 29 के प्रावधानों के अनुसार, मदरसों में पाठ्यक्रम और मूल्यांकन प्रक्रिया की पूरी तरह से कमी है। देश में कई बच्चे मदरसों में जाते हैं, लेकिन इन मदरसों में मुख्यतः धार्मिक शिक्षा दी जाती है और ये मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में बहुत कम भागीदारी करते हैं।

दीन से संबंधित फतवों की शिकायतें

आयोग ने कहा कि दारुल उलूम देवबंद द्वारा जारी किए गए फतवों की कई शिकायतें मिली हैं। दारुल उलूम देवबंद देश में कई मदरसों का संचालन करता है और लगातार फतवे जारी कर रहा है, जो बच्चों में अपने देश के प्रति घृणा पैदा कर रहे हैं।

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सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

5 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 22 मार्च के निर्णय पर स्थगन आदेश जारी किया, जिसमें ‘UP बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ को असंवैधानिक और धर्मनिरपेक्षता तथा मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया गया था। मुख्य न्यायाधीश DY चंद्रचूड़ और न्यायाधीशों JB पारदीwala और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह निष्कर्ष कि मदरसा बोर्ड की स्थापना धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है, सही नहीं हो सकता।

निष्कर्ष

NCPCR के द्वारा दायर किए गए तर्कों से स्पष्ट होता है कि मदरसों में बच्चों को दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता और व्यवस्था में कई कमी हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय महत्वपूर्ण हो सकता है, क्योंकि यह न केवल मदरसों में शिक्षा के मानक को प्रभावित करेगा, बल्कि बच्चों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा भी करेगा। आयोग की चिंता और तर्क यह दर्शाते हैं कि शिक्षा प्रणाली को सुधारने और सभी बच्चों को समान अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है।

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