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पार्टी और परिवार पत्नी पर आधारित, Punjab में अकाली दल और बादल परिवार के अस्तित्व पर संकट

Punjab की राजनीति कभी बादल परिवार के इर्द-गिर्द केंद्रित थी, लेकिन 2017 के बाद से अकाली दल न केवल सत्ता से बाहर है, बल्कि उसके विधायकों की संख्या भी घटकर सिंगल डिजिट में आ गई है। भाजपा से गठबंधन टूटने और शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल के निधन के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव है। प्रकाश सिंह बादल की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे सुखबीर सिंह बादल चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन उनकी पत्नी हरसिमरत कौर बठिंडा से चौथी बार चुनाव लड़ रही हैं। इस तरह सुखबीर बादल अपनी पत्नी के सहारे अकालियों और परिवार की राजनीति को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और भाजपा ने मजबूत घेराबंदी कर रखी है।

Punjab का मालवा क्षेत्र कभी अकाली दल का गढ़ हुआ करता था। मालवा क्षेत्र में आठ लोकसभा सीटें हैं, जिनमें लुधियाना, फिरोजपुर, फरीदकोट, बठिंडा, संगरूर, पटियाला, श्री फतेहगढ़ साहिब और आनंदपुर साहिब सीटें शामिल हैं। मालवा Punjab में किसान आंदोलन का सबसे बड़ा गढ़ था। इसका नतीजा यह हुआ कि आम आदमी पार्टी मालवा में अकाली दल की राजनीतिक जमीन पर कब्जा करने में सफल रही। बादल परिवार की पूरी राजनीति मालवा के इसी इलाके तक सीमित रही है।

पार्टी और परिवार पत्नी पर आधारित, Punjab में अकाली दल और बादल परिवार के अस्तित्व पर संकट

सुखबीर बादल चुनाव नहीं लड़ रहे

अकाली दल के मुखिया सुखबीर बादल 2019 में फिरोजपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे, जबकि उनकी पत्नी हरसिमरत कौर ने बठिंडा सीट से जीत की हैट्रिक लगाई है। इस बार बदले राजनीतिक माहौल में अकाली दल के सामने अपनी परंपरागत सीट को बरकरार रखने की चुनौती है। शिरोमणि अकाली दल 27 साल बाद Punjab की सभी 13 लोकसभा सीटों पर चुनावी मैदान में उतरा है, लेकिन लोगों की नजर फिरोजपुर और बठिंडा जैसी सीटों पर है।

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अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल ने फिरोजपुर सीट से चुनाव जीता था, लेकिन इस बार वह चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। फिरोजपुर परंपरागत रूप से अकाली दल की मजबूत सीट मानी जाती है। शेर सिंह गुभाया 2009, 2014 में अकाली दल के टिकट पर इस सीट से चुनाव जीते थे, लेकिन 2019 में सुखबीर सिंह बादल के चुनाव लड़ने के कारण उनका टिकट काट दिया गया था। शेर सिंह गुभाया अकाली दल छोड़कर कांग्रेस से चुनाव लड़े थे। वे सुखबीर के खिलाफ जीत तो नहीं पाए, लेकिन कांग्रेस ने एक बार फिर शेर सिंह गुभाया को मैदान में उतारा है। अकाली दल ने नरदेव सिंह बॉबी मान पर दांव लगाया है, जबकि आम आदमी पार्टी से जगदीप सिंह काका बरार और भाजपा से राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी चुनाव लड़ रहे हैं। बादल परिवार से किसी के चुनाव न लड़ने से इस सीट पर अकाली की साख दांव पर लगी है, क्योंकि कांग्रेस के शेर सिंह गुभाया बड़ी चुनौती बने हुए हैं।

बठिंडा सीट पर सियासी मोड़

बठिंडा लोकसभा सीट पर काफी जोड़-तोड़ के बाद अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने अपनी पत्नी हरसिमरत कौर बादल को मैदान में उतारा है। वे यहां से तीन बार चुनाव जीत चुकी हैं और अब चौथी बार चुनावी मैदान में हैं। मोहिंदर सिंह सिद्धू कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे हैं, तो Punjab सरकार में मंत्री गुमीत सिंह खुरियां आम आदमी पार्टी से किस्मत आजमा रहे हैं। खुरियां ने विधानसभा चुनाव में Punjab के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को हराया है। मालवा क्षेत्र के लिए आवाज बुलंद करने वाले लक्खा सिधाना भी इस बार लोकसभा चुनाव में मैदान में उतरे हैं। अकाली दल के बड़े नेता सिकंदर सिंह मलूका के परिवार की बहू और पूर्व भारतीय प्रशासनिक अधिकारी परमपाल कौर बठिंडा से भाजपा की उम्मीदवार हैं। विपक्षी दलों ने हरसिमरत कौर के खिलाफ कड़ी घेराबंदी कर रखी है।

बठिंडा लोकसभा क्षेत्र में नौ विधानसभा सीटें हैं, जिन सभी पर इस समय आम आदमी पार्टी के विधायक हैं। अकाली के लिए मुश्किलें यहीं तक सीमित नहीं हैं। गठबंधन टूटने से नाराज भाजपा भी अपने पुराने सहयोगी को सबक सिखाने पर तुली हुई है। जिस तरह से उसने परमपाल कौर को अपना उम्मीदवार बनाया है, उससे सिख वोटों के बंटवारे की आशंका है। प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत सिंह बादल पहले अकाली का हिस्सा थे, लेकिन बाद में कांग्रेस में चले गए। 2014 का आम चुनाव वे हरसिमरत से हार गए थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद मनप्रीत भाजपा में शामिल हो गए। इस बार हरसिमरत कौर के लिए टेंशन है।

प्रकाश सिंह बादल इस लोकसभा क्षेत्र की लांबी विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर रिकॉर्ड पांच बार मुख्यमंत्री बने हैं। बादल अपना पहला चुनाव 1967 में और आखिरी चुनाव 2022 में हारे थे। 1969 से 2017 तक वे कोई चुनाव नहीं हारे। बठिंडा सीट पर 17 लोकसभा चुनावों में से 10 बार अकाली दल का कब्जा रहा है। इस बार कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवार शिरोमणि अकाली दल की पृष्ठभूमि से होने के कारण अकाली दलों के वोटों में सेंध लगने की संभावना बढ़ गई है। 

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बठिंडा में सिद्धू मूसेवाला की हत्या एक फैक्टर 

बठिंडा सीट पर सिद्धू मूसेवाला की हत्या एक बड़ा फैक्टर है। सिद्धू ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा था। चर्चा थी कि कांग्रेस से नाराज सिद्धू के पिता बलकौर सिंह निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें मना लिया है। सिद्धू की हत्या से नाराज लोगों ने संगरूर सीट पर हुए उपचुनाव में आप को हरा दिया। बलकौर के समर्थन के ऐलान से कांग्रेस को बड़ी राहत मिली है। बादल परिवार के लिए यह चिंता का विषय बना हुआ है। प्रकाश सिंह बादल, उनके दिवंगत भाई गुरदास सिंह बादल, बेटे सुखबीर सिंह बादल, भतीजे मनप्रीत सिंह बादल और पुत्रवधू हरसिमरत कौर बादल पिछले कई दशकों से लोकसभा और विधानसभा का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री बादल, मनप्रीत सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल पिछले विधानसभा 2022 के चुनाव हार गए थे। सुखबीर बादल मौजूदा सांसद जरूर हैं, लेकिन इस बार मैदान में नहीं हैं। 

बादल परिवार से मैदान में एकमात्र चेहरा सांसद हरसिमरत कौर बादल हैं। ऐसे में बादल परिवार को अपनी राजनीतिक विरासत को बनाए रखने के लिए हरसिमरत कौर बादल की जीत से कम कुछ भी मंजूर नहीं होगा। सुखबीर बादल के पास अपनी पत्नी हरसिमरत कौर बादल के जरिए बादल परिवार की विरासत को बनाए रखने का मौका है, इसलिए अपनी पत्नी की जीत सुनिश्चित करने के लिए सुखबीर बादल बठिंडा पर विशेष ध्यान दे रहे हैं और छोटे से छोटे फैक्टर को भी अकाली दल के पक्ष में करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। भाजपा के अलग-अलग चुनाव लड़ने और मलूका परिवार के भाजपा में शामिल होने से बने राजनीतिक हालात बादल परिवार के लिए कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं। ऐसे में देखना यह है कि हरसिमरत कौर अकाली दल और बादल परिवार की विरासत को किस तरह बचा पाती हैं।

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