राष्‍ट्रीय

Ajmer Dargah पर राजनीतिक बहस तेज, कोर्ट के फैसले पर मचा बवाल

Ajmer Dargah अब राजनीति का नया अखाड़ा बन चुकी है। दरगाह के नीचे एक शिव मंदिर होने का दावा किया गया है, और इस मुद्दे को लेकर एक याचिका भी निचली अदालत में दायर की गई थी, जिस पर अदालत ने सुनवाई का आदेश दिया। इसके बाद से ही राजनीतिक बहस तेज हो गई है, क्योंकि इससे पहले मथुरा, वाराणसी और धार में भी मस्जिदों और दरगाहों को लेकर इसी तरह के दावे किए गए थे।

अदालत ने सुनवाई के लिए दी मंजूरी

अजमेर में 28 नवंबर को एक सिविल कोर्ट ने सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में संकट मोचक महादेव मंदिर की मौजूदगी के बारे में दायर याचिका को स्वीकार किया। अदालत ने इस मामले में सभी पक्षों को नोटिस जारी किया और अगली सुनवाई की तारीख 20 दिसंबर तय की। यह याचिका 26 सितंबर को हिंदू सेवा राष्ट्रीय के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा वकील शशी रंजन कुमार सिंह के माध्यम से दायर की गई थी।

बीजेपी ने कोर्ट के फैसले का समर्थन किया

कोर्ट के इस फैसले के बाद विपक्षी नेताओं ने तीखी आलोचना की है। विपक्ष का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अजमेर दरगाह को चादर भेजी थी, तो अब यह क्या हो गया? वहीं, बीजेपी नेताओं ने कहा कि इस विवादित संरचना के नीचे मंदिर की मौजूदगी की जांच का निर्णय उचित है।

गिरीराज सिंह ने क्या कहा?

केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह ने कहा कि यदि अदालत ने अजमेर में सर्वे का आदेश दिया है तो इसमें क्या समस्या है? उन्होंने कहा कि यह सही है कि जब मुग़ल भारत आए थे, तो उन्होंने हमारे मंदिरों को नष्ट किया। कांग्रेस सरकार ने हमेशा तुष्टिकरण की नीति अपनाई है। अगर जवाहरलाल नेहरू ने 1947 में इसे रोक दिया होता, तो आज हमें अदालत में जाने की जरूरत नहीं पड़ती।

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प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर विवाद

असल में, 1991 में ‘प्लेस ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रावधान) एक्ट’ बनाया गया था, जिसमें देश भर के धार्मिक स्थलों पर 15 अगस्त 1947 के बाद किसी भी तरह का बदलाव करने पर रोक लगाई गई थी, सिवाय अयोध्या के। लेकिन 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे की अनुमति दी, जिसमें तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने यह कहा था कि यह कानून धार्मिक स्थलों के धार्मिक चरित्र की पहचान करने से रोकता नहीं है।

महबूबा मुफ्ती ने बढ़ने की दी चेतावनी

जम्मू और कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा कि इस मुद्दे से विवाद और बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के संभल में हुई हिंसा भी इस तरह के फैसले का सीधा परिणाम थी। महबूबा मुफ्ती ने यह भी कहा कि देश के एक पूर्व चीफ जस्टिस की वजह से एक पेंडोरा बॉक्स खुल गया है, जिससे अल्पसंख्यक धार्मिक स्थलों को लेकर एक विवादित बहस शुरू हो गई है।

कपिल सिब्बल ने व्यक्त किया असंतोष

राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने अदालत के इस फैसले पर गहरी नाखुशी व्यक्त की और X (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा, “अजमेर दरगाह में शिव मंदिर… हम इस देश को कहां ले जा रहे हैं? और क्यों? सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए!”

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ओवैसी का क्या कहना है?

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अगर 1991 का ‘प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ लागू होता है, तो देश संविधान के अनुसार चलेगा। ओवैसी ने यह भी कहा कि इस तरह के फैसलों से समाज में और अधिक विभाजन पैदा होगा और धार्मिक सहिष्णुता को नुकसान पहुंचेगा।

अजमेर दरगाह पर कोर्ट के फैसले ने राजनीतिक हलकों में एक नई बहस शुरू कर दी है। विभिन्न राजनैतिक दल और नेता इस मुद्दे पर अपने-अपने विचार रख रहे हैं। जहां बीजेपी इसे उचित कदम मान रही है, वहीं विपक्ष इसे विवाद बढ़ाने वाला मान रहा है। यह मामला आगामी दिनों में और भी विवादित हो सकता है, क्योंकि इसने धार्मिक और राजनीतिक सीमाओं को छुआ है।

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