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Punjab news: शिरोमणि अकाली दल में पुनर्गठन को लेकर उलझनें, सुखबीर बादल के इस्तीफे और कानूनी अड़चनें

Punjab news: शिरोमणि अकाली दल (SAD) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल और अन्य पूर्व अकाली मंत्रियों की धार्मिक सजा के समाप्त होने के बाद भी पार्टी में एक नई नियुक्ति को लेकर उलझन बनी हुई है। यह उलझन विशेष रूप से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के प्रमुख हरजिंदर सिंह धामी की अध्यक्षता में गठित की गई उस कमेटी को लेकर है, जिसे श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों पर SAD के पुनर्गठन का जिम्मा सौंपा गया था।

हालांकि अब तक इस कमेटी की कोई बैठक नहीं हुई है और न ही SAD के पुनर्गठन के प्रयास शुरू किए गए हैं, जिससे पार्टी के अंदर स्थिति साफ नहीं हो पा रही है। सुखबीर बादल के इस्तीफे को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। SAD के संविधान के अनुसार पार्टी की वर्तमान संगठनात्मक संरचना का पांच साल का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, लेकिन इसके बावजूद इस प्रक्रिया को गति देने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए हैं।

छह महीने का समय दिया गया था पुनर्गठन के लिए

2 दिसंबर को सिंह साहिबान की बैठक के बाद जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने कमेटी के प्रमुख धामी को छह महीने के भीतर नियुक्तियों की प्रक्रिया को पूरा करने और नए अध्यक्ष तथा पदाधिकारियों का चयन करने का निर्देश दिया था। इसी आधार पर शिरोमणि अकाली दल सुधार लहर के नेताओं, जैसे प्रेम सिंह चंदूमाजरा, बीबी जगिर कौर, गुरप्रताप सिंह वडाला आदि ने सुधार लहर को समाप्त करने का ऐलान किया।

Punjab news: शिरोमणि अकाली दल में पुनर्गठन को लेकर उलझनें, सुखबीर बादल के इस्तीफे और कानूनी अड़चनें

उन्होंने अपनी संगठनात्मक संरचना को भी समाप्त कर दिया, लेकिन अकाली दल के कार्यकारी अध्यक्ष बलविंदर सिंह भुंदर के नेतृत्व वाला धड़ा पहले की तरह काम कर रहा है। इस धड़े के नेता इस बार नगर निगम चुनावों में भाग लेने की बात भी कर रहे हैं।

नगर निगम चुनावों में भागीदारी का ऐलान

पार्टी के कोर कमेटी ने बैठक के बाद नगर निगम चुनावों में भागीदारी का ऐलान किया। इसी आदेश के तहत 2 दिसंबर को श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा पार्टी हाई कमांड को सुखबीर बादल और अन्य नेताओं के इस्तीफे को तीन दिन के भीतर स्वीकार करने का निर्देश दिया गया था।

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SAD के कार्यकारी अध्यक्ष बलविंदर सिंह भुंदर ने इस मामले में श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह से सुखबीर बादल के इस्तीफे को स्वीकार करने के लिए 20 दिनों की अतिरिक्त समय सीमा बढ़ाने की बात की थी, लेकिन इस पर अब तक श्री अकाल तख्त साहिब से कोई टिप्पणी या लिखित आदेश जारी नहीं हुआ है।

श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों में बदलाव की कोई परंपरा नहीं

यह ध्यान देने योग्य बात है कि श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों में बदलाव करने की कोई परंपरा नहीं रही है। उदाहरण के लिए, मई 2015 में Dera Sacha Sauda के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा दिए गए आदेश को भी बाद में सम्प्रदायिक दबाव के कारण वापस लेना पड़ा था।

इससे स्पष्ट होता है कि श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों का पालन करना ही परंपरा रही है, और बदलाव या फेरबदल की कोई गुंजाइश नहीं रही है।

कानूनी अड़चनों के कारण बैठक नहीं हो पाई – धामी

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के प्रमुख हरजिंदर सिंह धामी ने इस संदर्भ में बताया कि नई नियुक्तियों के लिए कमेटी द्वारा बैठक न बुलाए जाने के पीछे कुछ कानूनी अड़चनें हैं। उनका कहना है कि पार्टी की मान्यता खतरे में पड़ सकती है, इसलिए अभी तक कोई बैठक आयोजित नहीं की गई है।

धामी के अनुसार, जो कानूनी अड़चनें सामने आई हैं, उनका समाधान नहीं हो सका है और जब तक इन मुद्दों को हल नहीं किया जाता, तब तक कोई बैठक बुलाने की स्थिति नहीं बन सकती।

अकाली दल का भविष्य: क्या होगा अगला कदम?

इन तमाम उलझनों के बीच शिरोमणि अकाली दल का भविष्य अभी भी अनिश्चित है। एक तरफ जहां पार्टी के कई धड़े अपने-अपने तरीके से पार्टी के पुनर्गठन की दिशा में काम करने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों के चलते किसी भी प्रकार का फेरबदल या संगठनात्मक बदलाव मुश्किल प्रतीत हो रहा है।

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टीम की सख्त निगरानी और स्थिति की स्पष्टता के बिना किसी भी प्रकार के बदलाव को लागू करना चुनौतीपूर्ण होगा। ऐसे में, यह देखना होगा कि पार्टी के अंदर यह उथल-पुथल किस दिशा में जाती है और पार्टी पुनर्गठन के तहत क्या नए पदाधिकारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी होती है या नहीं।

सुखबीर बादल का इस्तीफा: एक राजनीतिक रणनीति?

सुखबीर बादल का इस्तीफा भी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। इस मुद्दे पर कई तरह की राजनीतिक चर्चाएँ चल रही हैं। कुछ लोग इसे एक रणनीतिक कदम मान रहे हैं ताकि पार्टी में नई ऊर्जा का संचार हो सके, जबकि कुछ का कहना है कि यह किसी अन्य योजना का हिस्सा हो सकता है।

यह भी संभावना जताई जा रही है कि पार्टी की अंदरूनी राजनीति में बदलाव की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ही सुखबीर बादल ने इस्तीफे की बात की थी, लेकिन इसके बावजूद इस्तीफे को स्वीकार किए जाने में देरी हो रही है।

शिरोमणि अकाली दल में जारी उथल-पुथल और कानूनी अड़चनें यह दर्शाती हैं कि पार्टी को अपनी भविष्य की दिशा तय करने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों का पालन जरूरी है, लेकिन पार्टी के भीतर विभिन्न धड़ों के बीच असहमति और विवाद इसे और भी जटिल बना रहे हैं। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले दिनों में पार्टी पुनर्गठन की प्रक्रिया कितनी प्रभावी रूप से पूरी हो पाती है और सुखबीर बादल के इस्तीफे के बाद पार्टी का नेतृत्व किस दिशा में आगे बढ़ता है।

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