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Punjab news: किसानों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान, ‘किसी भी सुझाव के लिए अदालत के दरवाजे हमेशा खुले हैं’

Punjab news: कृषि सुधारों, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी और अन्य मांगों को लेकर देशभर में आंदोलन कर रहे किसानों के मामले पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान पंजाब सरकार ने कोर्ट को बताया कि किसान नेता जगजीत सिंह डालिवाल और अन्य किसान, जो खानौरी बॉर्डर पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे थे, के साथ कई लंबी बैठकों का आयोजन किया गया। लेकिन वे इस मुद्दे पर विचार करने के लिए बनाई गई उच्च स्तरीय समिति के साथ संवाद करने से मना कर चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां शामिल थे, को पंजाब के एग्जीक्यूटिव जनरल गुरमिंदर सिंह ने बताया कि समिति ने 17 दिसंबर को किसान नेताओं को बैठक के लिए बुलाया था, लेकिन वे उसमें शामिल नहीं हुए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि राज्य सरकार प्रतिदिन किसानों को समझाने का प्रयास कर रही है और यह सुझाव दिया कि किसानों को अपनी मांगों को अदालत में सीधे पेश करने का अवसर दिया जाए।

सुप्रीम कोर्ट का किसानों के प्रति रुख: दरवाजे हमेशा खुले हैं

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि अदालत के दरवाजे हमेशा किसानों के किसी भी सुझाव या मांग के लिए खुले हैं, चाहे वे सीधे कोर्ट में आएं या अपने अधिकृत प्रतिनिधि के माध्यम से।” इसके साथ ही कोर्ट ने पंजाब सरकार से कहा कि वह किसान नेता जगजीत सिंह डालिवाल के स्वास्थ्य की स्थिति पर ध्यान दे और उन्हें तुरंत चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराए। सुप्रीम कोर्ट ने डालिवाल की बिगड़ती सेहत को लेकर चिंता व्यक्त की और राज्य सरकार से जल्द से जल्द मेडिकल सहायता देने का आदेश दिया।

Punjab news: किसानों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान, 'किसी भी सुझाव के लिए अदालत के दरवाजे हमेशा खुले हैं'

किसानों ने अब केवल केंद्र सरकार से बातचीत करने का लिया निर्णय

पंजाब के किसान, जो MSP गारंटी कानून समेत कई मुद्दों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं, ने बुधवार को राज्यभर में रेल रोको आंदोलन किया। इस दौरान किसानों ने 23 स्थानों पर रेल सेवाएं दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक बाधित की। वहीं, खानौरी बॉर्डर पर 22 दिन से भूख हड़ताल पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डालिवाल की तबियत लगातार बिगड़ती जा रही है।

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मंगलवार को डालिवाल ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेष समिति के अध्यक्ष नवाब सिंह को एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि अब किसान केवल केंद्र सरकार से ही बातचीत करेंगे, सुप्रीम कोर्ट की समिति से नहीं। उन्होंने पत्र में कहा, “अब हम आपको यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि अब हम आपके साथ कोई बैठक नहीं करेंगे। हमारे जो भी वार्तालाप होंगे, वे केवल केंद्र सरकार से होंगे।” डालिवाल ने आरोप लगाया कि समिति ने अब तक इस मुद्दे को हल करने के लिए केंद्र सरकार से कोई गंभीर प्रयास नहीं किए हैं और उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया है।

किसान आंदोलन का असर: रेल रोको आंदोलन और राज्यभर में गहमागहमी

किसानों का यह आंदोलन दिन-ब-दिन जोर पकड़ता जा रहा है। किसानों की मुख्य मांगें MSP गारंटी कानून, किसानों की कर्जमाफी और अन्य संबंधित मुद्दों पर गंभीर कार्रवाई हैं। पंजाब और आसपास के राज्यों में हुए रेल रोको आंदोलन ने सरकार को चिंता में डाल दिया है। किसानों का कहना है कि उनके मुद्दों को हल किए बिना उनका आंदोलन जारी रहेगा और जब तक उनकी मांगों को स्वीकार नहीं किया जाता, तब तक वे आंदोलन करते रहेंगे।

आंदोलन के कारण, जहां एक तरफ पंजाब सरकार किसानों को समझाने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी तरफ किसानों के नेता यह साफ कर चुके हैं कि वे केवल केंद्र सरकार से ही बातचीत करेंगे, क्योंकि उनके अनुसार सुप्रीम कोर्ट की समिति ने उनके मुद्दों को हल करने में कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए हैं।

सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकार का महत्वपूर्ण कदम

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को आदेश दिया है कि वह किसानों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दे और उनकी चिकित्सा सहायता में कोई भी देरी न करे। यह निर्णय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि कोर्ट केवल कानून के शासन के लिए ही नहीं, बल्कि किसानों के मानवाधिकार और उनकी सेहत की चिंता भी करता है। साथ ही, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसानों के पास कोई नया प्रस्ताव है या कोई समस्या है, तो वे सीधे अदालत में अपना पक्ष रख सकते हैं।

पंजाब सरकार के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय है, क्योंकि एक ओर किसानों का आंदोलन और उनकी बढ़ती नाराजगी है, तो दूसरी ओर राज्य सरकार को केंद्र से मदद और सहमति का इंतजार है।

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किसानों के आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट का यह बयान एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न केवल सरकार के लिए एक चेतावनी है, बल्कि यह किसानों के मुद्दों को और अधिक गंभीरता से उठाने का भी संकेत देता है। सरकार और किसानों के बीच संवाद के रास्ते में कई बाधाएं आ रही हैं, लेकिन कोर्ट का यह कदम यह दिखाता है कि यदि दोनों पक्षों के बीच समाधान नहीं निकलता है, तो कोर्ट अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार है।

यह स्थिति तब तक बनी रहेगी जब तक केंद्र सरकार और राज्य सरकार इस मुद्दे को हल करने के लिए गंभीर कदम नहीं उठाती। किसान नेताओं का यह साफ कहना है कि जब तक उनकी मांगों को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया जाता, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा। ऐसे में सभी की नजरें अब केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के अगले कदमों पर होंगी।

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