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वक्फ शासन में सुधार: समानता और पारदर्शिता की ओर एक कदम

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और निगरानी को लेकर एक ऐतिहासिक सुधार है। यह विधेयक पारंपरिक धार्मिक और धर्मार्थ मूल्यों को आधुनिक प्रशासनिक सिद्धांतों के साथ जोड़ने का प्रयास करता है। संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की सिफारिशों पर आधारित यह अधिनियम वक्फ प्रशासन में पारदर्शिता, जवाबदेही और न्याय सुनिश्चित करने के लिए अनेक संरचनात्मक बदलाव प्रस्तुत करता है।

इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य वक्फ और मुस्लिम ट्रस्टों के बीच की अस्पष्टता को समाप्त करना है। नई धारा 2(2A) यह स्पष्ट करती है कि मुसलमानों द्वारा अन्य विधियों के तहत बनाए गए ट्रस्ट अब वक्फ की परिभाषा में नहीं आएंगे। इससे ट्रस्टों को नौकरशाही निगरानी से स्वतंत्रता मिलेगी और धार्मिक स्वायत्तता को बढ़ावा मिलेगा।

धारा 3(आर) के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि केवल कानूनी रूप से संपत्ति के मालिक और प्रैक्टिसिंग मुसलमान ही वक्फ बना सकते हैं। यह प्रावधान न केवल वक्फ की पवित्रता को बनाए रखने में मदद करेगा बल्कि दुरुपयोग की संभावनाओं को भी सीमित करेगा। “उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ” की अवधारणा को हटाकर अधिनियम विवादित संपत्तियों को वक्फ घोषित करने की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाता है।

महिलाओं को वक्फ से जोड़े जाने की दिशा में भी यह अधिनियम एक ऐतिहासिक कदम है। धारा 3(आर)(iv) और धारा 3A(2) महिला उत्तराधिकारियों के अधिकारों को सुरक्षित करता है। इसके अतिरिक्त, विधवा, तलाकशुदा महिलाओं और अनाथों के लिए वक्फ के अंतर्गत भरण-पोषण की व्यवस्था भी की गई है। यह वक्फ की मानवीय भावना को सशक्त बनाता है।

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डिजिटलीकरण इस अधिनियम की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। धारा 3B(1) के अनुसार पंजीकृत वक्फ संपत्तियों की जानकारी को छह माह के भीतर केंद्रीय पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य है। यह पारदर्शिता लाने के साथ-साथ वक्फ संपत्तियों की निगरानी को अधिक प्रभावी बनाएगा। राज्य सरकारों को भी सर्वेक्षण डेटा 90 दिनों के भीतर पोर्टल पर डालना होगा, जिससे प्रशासनिक प्रक्रिया में स्पष्टता आएगी।

सरकारी संपत्तियों को गलती से वक्फ घोषित करने की समस्या को हल करने के लिए अधिनियम में कलेक्टर से ऊपर के अधिकारी को नामित अधिकारी नियुक्त करने का प्रावधान है। यह अधिकारी स्वतंत्र जांच कर राज्य सरकार को रिपोर्ट देगा, जिससे निष्पक्ष निर्णय लेने की संभावना बढ़ेगी।

वक्फ न्यायाधिकरणों की पुनर्रचना भी इस विधेयक का अहम हिस्सा है। जेपीसी ने न्यायिक निष्पक्षता बनाए रखने के लिए तीन-सदस्यीय ढांचे को बनाए रखने की सिफारिश की है। मुस्लिम कानून और न्यायशास्त्र में विशेषज्ञता रखने वाले सदस्य की अनिवार्यता निर्णयों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करेगी।

धारा 40A के अंतर्गत वक्फ विवादों पर सीमा अधिनियम, 1963 को लागू किया गया है, जिससे कानूनी मामलों को समयबद्ध रूप से सुलझाया जा सकेगा। इससे वर्षों तक लंबित रहने वाले मुकदमों पर लगाम लगेगी और जवाबदेही बढ़ेगी।

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हालाँकि अधिनियम के प्रावधान व्यापक और दूरगामी हैं, लेकिन चुनौतियां भी हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे वक्फ संस्थानों के लिए डिजिटलीकरण एक कठिन कार्य हो सकता है। महिलाओं के अधिकारों को स्वीकार करने में भी सांस्कृतिक बाधाएं आ सकती हैं। वहीं, कुछ धार्मिक समूहों को अलग बोर्ड देने से अन्य समुदाय उपेक्षित महसूस कर सकते हैं।

इसलिए, सरकार को अधिनियम के कार्यान्वयन के दौरान सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाना होगा। प्रशिक्षण, डिजिटल ढांचे का विकास, जागरूकता अभियान और निरंतर संवाद आवश्यक होगा। वक्फ प्रशासन को पारदर्शी, न्यायपूर्ण और समावेशी बनाने के लिए यह अधिनियम एक निर्णायक पहल है। यदि इसे गंभीरता से लागू किया गया, तो यह भारत की विविध धार्मिक व्यवस्थाओं के बीच संतुलन और सौहार्द की मिसाल बन सकता है।

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