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हरियाणा के इस गांव में पिछले 200 साल से नहीं मनाई जाती होली,जानिए क्यों

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सत्य खबर, कैथल । कैथल के चीका खंड के गांव दूसरेपुर में ग्रामीण बुधवार को होली पर्व से दूर हैं। न तो गांव में त्योहार को लेकर काेई खुशी है और न ही किसी प्रकार का रंग गुलाल उड़ रहा है। करीब 200 साल से हर होली पर गांव में यहीं माहौल होता है।

ग्रामीण साधु के श्राप से भयभीत होकर होली नही खेलते हैं। होली ना मनाए जाने को लेकर ग्राम पंचायत की तरफ से गांव में बाकायदा एक सूचना पट्ट भी लगाया गया है, जिस पर होली न मनाए जाने के संबंध में लिखा गया है।

दुसेरपुर गांव निवासी ब्लाक समिति गुहला के उपप्रधान ज्ञान नंबरदार ने बताया कि गांव में एक छोटे कद का साधु रहता था। साधु स्नेही राम ने होली के दिन गांव वासियों के समक्ष कोई मांग रखी थी, जिसे ग्रामीण पूरा नहीं कर पाए थे। ग्रामीणों के मुताबिक अपनी मांग पूरी ना होने से गुस्साए बाबा स्नेही राम ने होली के दिन समाधि ले अपने प्राण त्याग दिए थे।

दूसरी दंतकथा ये भी
दूसरी कथा यह भी प्रचलित है कि लोगों ने मिल जुलकर एक स्थान पर होलिका दहन के लिए सुखी लकड़ियां, उपले व अन्य समान इकट्ठा किया था, लेकिन दहन के निश्चित समय से पहले गांव के ही कुछ युवकों को शरारत सुझी और वे समय से पहले ही होलिका दहन करने लगे। युवाओं को ऐसा करते देख वहां मौजूद बाबा स्नेही दास ने उन्हें समय से पहले होलिका दहन करने से रोकना चाहा।

नंबरदार ने कहा कि बताया जाता है कि उन युवकों ने बाबा के छोटे कद का मजाक उड़ाते हुए समय से पहले ही होली का दहन कर दिया। युवाओं के इस कार्य से बाबा गुस्से से भर उठे और जलती होली में कूद पड़े। बताया जाता है कि होलिका में जलते जलते बाबा ने ग्रामीणों को श्राप भी दे दिया कि आज के बाद इस गांव में होली का त्योहार नहीं मनाया जाएगा और यदि किसी ने होली का पर्व मनाने का प्रयास किया तो उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

बाबा से युवकों की गलती के लिए माफी मांगी थी, परंतु बाबा ने माफी देने से तो इनकार कर दिया, लेकिन गांव वालों को श्राप से मुक्त होने का वरदान देते हुए कहा था कि होली के दिन गांव में किसी भी ग्रामीण की गाय को बछड़ा व उसी दिन गांव की ही किसी महिला के यहां यदि लड़का पैदा होता है तो उन्हें श्राप से मुक्ति मिल जाएगी।

लेकिन पिछले 200 सौ वर्षों में होली के दिन गांव में यह संयोग नहीं बना। अपने बुजुर्गों द्वारा बताई गई रीतों का पालन करते हुए जहां कुछ ग्रामीण आज भी मिठ्ठी रोटी बना बाबा स्नेही दास की समाधी पर पूजा करते हैं, वहीं कुछ लोग बाबा की याद में केवल एक दीपक जलाते हैं।

 

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