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Supreme Court: आलोचनात्मक लेखों पर पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज नहीं होने चाहिए, सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

Supreme Court ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि सिर्फ इसलिए कि किसी पत्रकार का लेख सरकार की आलोचना के रूप में देखा जा रहा है, उस पर आपराधिक मामले दर्ज नहीं किए जाने चाहिए। न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाना चाहिए और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा की गई है।

यह टिप्पणी उस समय आई जब पीठ ने पत्रकार अभिषेक उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी। इस एफआईआर को उनके द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के आधार पर दर्ज किया गया था, जिसमें राज्य की सामान्य प्रशासन में जातिगत भेदभाव को उजागर किया गया था।

Supreme Court: आलोचनात्मक लेखों पर पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज नहीं होने चाहिए, सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

पत्रकारों के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय लोकतंत्र की नींव में से एक है, और यह हर नागरिक का मूलभूत अधिकार है। संविधान का अनुच्छेद 19(1)(A) सभी नागरिकों को अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अधिकार देता है, जिसमें पत्रकारों का महत्वपूर्ण स्थान है। यह अधिकार किसी भी लोकतंत्र में सरकार और जनता के बीच संवाद स्थापित करने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

पत्रकारों को उनके लेखन के कारण आपराधिक मामलों में घसीटना न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ भी है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पत्रकारिता को सरकार की आलोचना का साधन नहीं समझा जाना चाहिए, बल्कि इसे एक जिम्मेदार पेशे के रूप में देखा जाना चाहिए, जो समाज में जागरूकता फैलाने और महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने का कार्य करता है।

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अभिषेक उपाध्याय की याचिका का मामला

इस मामले में पत्रकार अभिषेक उपाध्याय ने आरोप लगाया है कि उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर कानून प्रवर्तन तंत्र का दुरुपयोग करके उनकी आवाज को दबाने का प्रयास है। उन्होंने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द किया जाए ताकि उन्हें और अधिक उत्पीड़न से बचाया जा सके।

अभिषेक उपाध्याय ने अपनी रिपोर्ट ‘यादव राज बनाम ठाकुर राज’ में राज्य के सामान्य प्रशासन में जातिगत भेदभाव का मुद्दा उठाया था, जिसके बाद उनके खिलाफ लखनऊ के हजरतगंज थाने में 20 सितंबर को एफआईआर दर्ज की गई। याचिका में कहा गया है कि यह रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद राज्य की सरकार और प्रशासन द्वारा इसे सरकार की आलोचना के रूप में देखा गया और एफआईआर दर्ज कर दी गई।

सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया और आदेश

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा कि अगले आदेश तक याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने एफआईआर को पढ़ने के बाद कहा कि इसमें कोई अपराध का खुलासा नहीं होता है, फिर भी याचिकाकर्ता को निशाना बनाया जा रहा है और रिपोर्ट प्रकाशित करने के बाद उनके खिलाफ और भी एफआईआर दर्ज की जा सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले की अगली सुनवाई चार हफ्तों के बाद होगी, जिसके बाद इस पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा।

पत्रकारों पर आपराधिक मामलों का असर

पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करना न केवल उनके पेशेवर जीवन पर असर डालता है, बल्कि यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए भी खतरा है। पत्रकारिता का उद्देश्य समाज के विभिन्न मुद्दों पर जागरूकता फैलाना और सरकार की नीतियों की निष्पक्ष समीक्षा करना है। अगर सरकारें पत्रकारों की आलोचना को व्यक्तिगत हमला मानकर उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करती हैं, तो यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खतरे में डालता है।

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पत्रकारों को उनके लेखन के कारण उत्पीड़ित करने से समाज में एक नकारात्मक संदेश जाता है और लोगों की सरकारों में विश्वास कम होता है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी इस दृष्टिकोण को स्पष्ट करती है कि लोकतंत्र में सरकार की आलोचना को एक सकारात्मक और जिम्मेदार पहल के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि आपराधिक कृत्य के रूप में।

कानून प्रवर्तन तंत्र का दुरुपयोग

इस मामले में एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह भी है कि पत्रकारों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को कानून प्रवर्तन तंत्र का दुरुपयोग कहा जा रहा है। अभिषेक उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा कि उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर सरकार की आलोचना को दबाने का एक प्रयास है और इसका उद्देश्य उन्हें और अन्य पत्रकारों को डराना है ताकि वे भविष्य में सरकार के खिलाफ लिखने से बचें।

अगर सरकारें अपने आलोचकों को आपराधिक मामलों में फंसाने लगेंगी, तो यह न केवल पत्रकारिता के पेशे को प्रभावित करेगा, बल्कि लोकतंत्र की नींव भी हिल जाएगी। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी बेहद महत्वपूर्ण है कि पत्रकारों के खिलाफ केवल आलोचनात्मक लेख लिखने के आधार पर आपराधिक मामले दर्ज नहीं होने चाहिए।

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