ताजा समाचार

Supreme Court ने बलात्कार और हत्या मामले में दोषी को दी 25 साल की सजा, मृत्युदंड को किया रद्द

Supreme Court ने मंगलवार को 2016 के एक बलात्कार और हत्या मामले में दोषी को दी गई मृत्युदंड की सजा को रद्द कर दिया और उसे बिना किसी छूट के 25 साल की सजा सुनाई। यह मामला एक चार वर्षीय बच्चे के साथ हुए यौन शोषण और हत्या का था। न्यायमूर्ति बीआर गावई, अरविंद कुमार और केवी विश्वनाथन की पीठ ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि यह मामला ऐसा नहीं है जिसमें सुधार की संभावना पूरी तरह से समाप्त हो।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह भी कहा कि यह मामला ‘नियामक ढंग से निष्कासन’ (rarest of rare) श्रेणी में नहीं आता। पीठ ने यह माना कि अपराध की प्रकृति को देखते हुए दोषी को बिना किसी छूट के निश्चित समय के लिए कारावास की सजा पर्याप्त है। यह सजा जनता में विश्वास को भी कम नहीं करेगी।

मामले की पृष्ठभूमि

यह फैसला गुजरात उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ दी गई अपील पर आया, जिसमें आरोपी संभु भाई राय संघभाई पाढियार को हत्या और बलात्कार के कई आईपीसी धाराओं के तहत मृत्युदंड दिया गया था। उल्लेखनीय है कि 2016 में गुजरात के भरुच जिले में आरोपी पाढियार ने एक चार वर्षीय बच्चे का अपहरण किया था। वह बच्चे को आइस क्रीम का लालच देकर अपने साथ ले गया और फिर उसे यौन शोषण का शिकार बना दिया। इसके बाद उसने उसी बच्चे की हत्या कर दी।

Supreme Court ने बलात्कार और हत्या मामले में दोषी को दी 25 साल की सजा, मृत्युदंड को किया रद्द

इस अपराध के बाद आरोपी को गिरफ्तार किया गया और गुजरात उच्च न्यायालय ने उसे दोषी करार देते हुए मृत्युदंड की सजा सुनाई। लेकिन इस फैसले के खिलाफ अपील करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसे फिर से समीक्षा किया और यह फैसला सुनाया कि आरोपी को मृत्युदंड नहीं, बल्कि 25 साल की सजा दी जाए।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला ‘नियामक ढंग से निष्कासन’ (rarest of rare) के तहत नहीं आता है, जैसा कि देश में मृत्युदंड की सजा के लिए सामान्यतः तय किया जाता है। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि इस तरह के मामलों में यह देखा जाता है कि क्या दोषी का अपराध समाज में भय और घृणा पैदा करता है, और क्या उसके सुधार की संभावना पूरी तरह समाप्त हो चुकी है। लेकिन इस मामले में अदालत ने यह माना कि दोषी का सुधार संभव हो सकता है, इसलिए उसे मृत्युदंड की सजा देने की जरूरत नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि कोई भी सजा ऐसी हो, जो न्याय के सिद्धांतों को सही तरीके से स्थापित करे, न कि केवल अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए उसे खत्म कर दे। कोर्ट ने यह माना कि अपराध की गंभीरता के बावजूद, यह मामला मृत्युदंड के लिए योग्य नहीं है। अदालत ने इस फैसले में यह भी कहा कि 25 साल की सजा, बिना किसी छूट के, समाज में अपराधी के खिलाफ एक ठोस संदेश भेजने के लिए पर्याप्त है।

सुप्रीम कोर्ट की अन्य टिप्पणियां और दिशा-निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि अदालतें और सरकारी संस्थाएं यह सुनिश्चित करें कि ऐसे मामलों में दोषियों को कड़ी सजा दी जाए, लेकिन मृत्युदंड की सजा को अंतिम उपाय के रूप में ही लागू किया जाए। अदालत ने यह निर्देश दिया कि भविष्य में अपराधी के सुधार के बारे में विचार करते हुए सजा का निर्धारण किया जाए।

इस फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने न्याय व्यवस्था में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह फैसले समाज को यह संदेश देता है कि न्याय का पालन करते हुए दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए, लेकिन साथ ही उन्हें सुधारने का अवसर भी दिया जाए।

गैर-कानूनी निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक और महत्वपूर्ण निर्णय लिया, जिसमें उसने गैर-कानूनी निर्माण पर सख्त टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि अवैध निर्माण को सिर्फ समय की देरी या निर्माण पर हुए खर्चे के आधार पर जायज नहीं ठहराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि कोई निर्माण नियमों और कानूनों का उल्लंघन करके किया गया है, तो उसे अवैध माना जाएगा और उसे तुरंत ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की बेंच ने यह फैसला मेरठ के शास्त्री नगर में अवैध वाणिज्यिक निर्माण से संबंधित मामले में सुनाया। कोर्ट ने कहा कि यदि किसी स्थान पर कोई निर्माण नियमों के खिलाफ किया गया है, तो इसे संरक्षित नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि ऐसे निर्माणों को नष्ट किया जाए और इससे संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासनिक निष्क्रियता पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने यह माना कि जब तक किसी निर्माण में नियमों का उल्लंघन नहीं होता, तब तक उसे बनाए रखने की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन यदि नियमों का उल्लंघन किया गया है तो उस निर्माण को अवैध माना जाएगा और इसे ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के इन दोनों फैसलों ने भारतीय न्याय प्रणाली में न्याय के महत्व को स्पष्ट रूप से दर्शाया है। जहां एक ओर अपराधी को सजा के रूप में सुधारने का अवसर दिया गया, वहीं दूसरी ओर अवैध निर्माण के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए प्रशासन को दिशा-निर्देश दिए गए। इन फैसलों से यह स्पष्ट है कि अदालतें न्याय का पालन करते हुए समाज में व्यवस्था बनाए रखने के लिए सख्त कदम उठा रही हैं।

यह फैसला दोनों पक्षों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है, जहां एक ओर समाज में अपराधियों के लिए कड़ा संदेश दिया गया, वहीं दूसरी ओर अवैध निर्माण और प्रशासनिक निष्क्रियता के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की गई।

Back to top button