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भारत में Brain stroke उपचार की स्थिति चिंता जनक, केवल एक चौथाई रोगियों को मिल पाता है समय पर इलाज

भारत में Brain stroke या इस्कीमिक स्ट्रोक के मरीजों को समय पर इलाज मिलना एक गंभीर समस्या बन गई है। एक नए शोध के अनुसार, भारत में केवल चार में से एक मरीज को ही इस्कीमिक स्ट्रोक के बाद समय पर इलाज मिल पाता है। यह शोध इंटरनेशनल जर्नल ऑफ स्ट्रोक में प्रकाशित हुआ है, जिसमें यह भी दावा किया गया है कि भारत में एक मिलियन जनसंख्या पर स्ट्रोक के इलाज के लिए एक भी अस्पताल नहीं है।

इस शोध से यह भी सामने आया कि इस्कीमिक स्ट्रोक के इलाज के लिए उपलब्ध सुविधाओं में भारी कमी है। शोधकर्ताओं ने पाया कि 566 अस्पतालों में केवल 361 अस्पतालों में एंडोवस्कुलर थेरेपी (EVT) की सुविधा उपलब्ध है, जो स्ट्रोक के इलाज में सबसे प्रभावी मानी जाती है। इस्कीमिक स्ट्रोक के मामले में, मस्तिष्क को पर्याप्त रक्त आपूर्ति नहीं मिल पाती है, जब रक्त वाहिका में थक्का बन जाता है।

इस्कीमिक स्ट्रोक क्या है?

इस्कीमिक स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति में रुकावट आ जाती है। यह तब होता है जब रक्त वाहिका में रक्त का थक्का बन जाता है, जो मस्तिष्क तक रक्त पहुँचने से रोकता है। इस प्रकार का स्ट्रोक भारत में 70-80% मामलों में पाया जाता है। स्ट्रोक के बाद यदि समय रहते इलाज नहीं किया जाता है तो मस्तिष्क कोशिकाओं का नुकसान बढ़ सकता है, जो स्थायी रूप से शारीरिक और मानसिक विकलांगता का कारण बन सकता है।

भारत में Brain stroke उपचार की स्थिति चिंता जनक, केवल एक चौथाई रोगियों को मिल पाता है समय पर इलाज

अस्पतालों की स्थिति और उपचार सुविधाएं

इस शोध के अनुसार, भारत में 26 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में केवल 566 अस्पताल हैं जिनमें इस्कीमिक स्ट्रोक का इलाज करने की सुविधा है। इन अस्पतालों में 361 अस्पतालों में एंडोवस्कुलर थेरेपी (EVT) की सुविधा उपलब्ध है, जो स्ट्रोक के इलाज के लिए एक बेहतर तरीका माना जाता है। इस शोध में यह भी सामने आया कि मरीजों को समय पर इलाज के लिए औसतन 115 किलोमीटर दूर स्थित अस्पतालों तक यात्रा करनी पड़ती है।

इसके अलावा, शोध में पाया गया कि 26.3% भारतीयों को एक घंटे से भी कम समय में अस्पताल पहुंचने की सुविधा मिलती है, जहां इंट्रावेनस थ्रॉम्बोलिसिस (IVT) का इलाज किया जा सकता है, जबकि केवल 20.6% यानी पांच में से एक मरीज को एंडोवस्कुलर थेरेपी की सुविधा मिल पाती है।

उपचार की सुविधाओं की कमी

भारत में स्ट्रोक के इलाज के लिए अस्पतालों की संख्या बेहद कम है। शोध के आंकड़ों के अनुसार, एक मिलियन लोगों पर केवल 0.41 अस्पताल हैं जिनमें IVT-C (इंट्रावेनस थ्रॉम्बोलिसिस) की सुविधा है, जबकि एंडोवस्कुलर थेरेपी (EVT) के लिए केवल 0.26 अस्पताल हैं। इस प्रकार, अस्पतालों में उपचार की सुविधा न होना और दूरी की समस्या भारत में स्ट्रोक के उपचार की प्रमुख चुनौतियां बन गई हैं।

भारत में स्ट्रोक से होने वाली मौतें

भारत में स्ट्रोक के कारण होने वाली मौतों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह स्थिति तब और विकट हो जाती है जब समय पर इलाज उपलब्ध नहीं होता है। शोध के अनुसार, स्ट्रोक के अधिकांश मामलों में इलाज की किल्लत और देरी से मरीजों की हालत गंभीर हो जाती है, जिससे उनकी जान को खतरा हो सकता है।

स्ट्रोक के बाद यदि मरीज को जल्दी इलाज मिल जाता है तो मस्तिष्क कोशिकाओं का नुकसान रोका जा सकता है, लेकिन अगर समय पर इलाज नहीं होता है, तो स्ट्रोक के बाद की स्थिति और भी खराब हो सकती है। इसके कारण भारत में स्ट्रोक से होने वाली मौतों का आंकड़ा काफी बढ़ रहा है।

स्ट्रोक उपचार में सुधार के लिए कदम

सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा स्ट्रोक के इलाज की सुविधा बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। इसके बावजूद, देशभर में स्ट्रोक के इलाज की सुविधा का फैलाव काफी सीमित है। कई ऐसे जिले और शहर हैं जहां अस्पतालों में इस्कीमिक स्ट्रोक का इलाज करने के लिए आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। इस कमी को दूर करने के लिए अस्पतालों की संख्या बढ़ाने और उपचार के लिए जरूरी उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

इसके अलावा, जनता में स्ट्रोक के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए भी कई पहल की जा रही हैं। स्ट्रोक के शुरुआती लक्षणों को पहचानना और तुरंत इलाज के लिए अस्पताल जाना बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिशा में, स्वास्थ्य मंत्रालय और अन्य संगठन स्ट्रोक के बारे में जानकारी फैलाने के लिए अभियान चला रहे हैं।

रोगियों के लिए सुझाव

स्ट्रोक का इलाज समय पर करना बेहद महत्वपूर्ण है। अगर किसी व्यक्ति को स्ट्रोक के लक्षण जैसे चेहरे पर हलका झूलना, बोलने में कठिनाई, या शरीर के एक हिस्से में कमजोरी महसूस हो, तो उसे तुरंत अस्पताल जाना चाहिए।

अस्पताल तक जल्दी पहुंचने के लिए, यह जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति को स्ट्रोक के लक्षणों की जानकारी हो और वह तत्काल चिकित्सा सहायता प्राप्त करने में सक्षम हो। इसके लिए देशभर में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ावा देने और मरीजों को जागरूक करने की आवश्यकता है।

भारत में इस्कीमिक स्ट्रोक के इलाज के लिए अस्पतालों की संख्या और उपचार की सुविधाओं में भारी कमी है। इस शोध से यह स्पष्ट होता है कि केवल एक चौथाई मरीजों को ही समय पर इलाज मिल पाता है, जबकि बाकी मरीजों को दूर-दराज के अस्पतालों में इलाज के लिए यात्रा करनी पड़ती है। इसके लिए अस्पतालों की संख्या बढ़ाने, उपचार की सुविधाओं को बेहतर बनाने और लोगों को स्ट्रोक के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है। इस प्रकार, यदि भारत में स्ट्रोक के इलाज की स्थिति में सुधार नहीं होता है तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है, जिससे लाखों लोगों की जान पर खतरा मंडरा सकता है।

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