“One Nation, One Election” विधेयक, नई दिल्ली में उठे सवाल और राजनीतिक उठापटक
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भारत में एक लंबे समय से चल रही बहस “One Nation, One Election” की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। यह प्रस्ताव भारत के चुनावी इतिहास में एक बदलाव की ओर इशारा करता है, जो लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ आयोजित करने की संभावना को लेकर है। इस प्रस्ताव को लेकर सरकार ने 12 दिसंबर 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी थी, लेकिन अब इस विधेयक के संसद में पेश होने को लेकर असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई है। सोमवार, 16 दिसंबर को इसे लोकसभा में पेश किया जाना था, लेकिन अब यह विधेयक लोकसभा में नहीं पेश होगा। इसके साथ ही, यह भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस सत्र में इस महत्वपूर्ण विधेयक पर चर्चा होगी या नहीं।
एक राष्ट्र, एक चुनाव क्या है?
“एक राष्ट्र, एक चुनाव” का विचार पहली बार उस समय सामने आया जब भारत के चुनाव आयोग और विभिन्न राजनीतिक दलों ने एक साथ चुनावों के आयोजन की संभावना पर चर्चा शुरू की। इसका मुख्य उद्देश्य देश में चुनावों के संचालन को सरल बनाना और चुनावों के खर्चों को कम करना है। इस प्रस्ताव के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक ही दिन और एक साथ आयोजित किया जाएगा।
इसका लाभ कई दृष्टिकोण से देखा जा सकता है:
- चुनावी खर्चों में कमी: चुनावों के अलग-अलग समय पर आयोजन से होने वाले खर्चों में भारी वृद्धि होती है। “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के लागू होने से इस खर्च को कम किया जा सकता है।
- चुनावी प्रक्रिया की स्थिरता: चुनावों के आयोजन की तारीखों का भिन्न-भिन्न समय पर होना राजनीतिक स्थिरता को प्रभावित करता है। एक साथ चुनावों के आयोजन से यह समस्या समाप्त हो सकती है।
- चुनाव प्रक्रिया में गति: चुनावों के आयोजनों के दौरान देश की राजनीतिक प्रक्रिया में कई बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। यदि सभी चुनाव एक साथ होंगे तो यह प्रक्रिया तेजी से पूरी हो सकेगी।
संविधान संशोधन विधेयक और इसकी प्रक्रिया
संविधान संशोधन विधेयक को पेश करने के लिए सरकार को दो महत्वपूर्ण कदमों से गुजरना होगा। पहला कदम संविधान में बदलाव का प्रस्ताव करना है, जबकि दूसरा कदम यह सुनिश्चित करना है कि राज्य विधानसभा और लोकसभा चुनावों के समवर्ती आयोजन की प्रक्रिया को वैध बनाने के लिए एक नया विधेयक पारित किया जाए।
यह विधेयक दो महत्वपूर्ण हिस्सों में विभाजित किया गया है:
- संविधान संशोधन विधेयक: यह विधेयक संविधान में संशोधन के लिए होगा, ताकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए जा सकें। इसके लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी।
- यूनियन टेरिटरी चुनाव विधेयक: दूसरा विधेयक विशेष रूप से उन तीन संघ शासित क्षेत्रों के लिए होगा जहां विधानसभा का गठन किया गया है। इसके लिए साधारण बहुमत की आवश्यकता होगी।
विधेयक की पेशी में देरी क्यों?
इस विधेयक के लोकसभा में 16 दिसंबर को पेश होने की उम्मीद थी, लेकिन अब यह विधेयक सूची से बाहर कर दिया गया है। इसके पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि सरकार ने विधेयक का एक मसौदा पहले ही सांसदों को भेज दिया है, ताकि वे इस पर अध्ययन कर सकें। यह एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि इस विधेयक पर चर्चा और विचार विमर्श करने के लिए सांसदों को इसकी पूरी जानकारी होनी चाहिए।
हालांकि, 16 दिसंबर को विधेयक पेश न किए जाने से संसद के शीतकालीन सत्र के समापन की तारीख, जो 20 दिसंबर है, से पहले विधेयक पर चर्चा और पारित होने की संभावना कम हो गई है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार इस मुद्दे पर एक गंभीर चर्चा का अवसर प्रदान कर पाएगी, या फिर इसे अगले सत्र तक के लिए टाल दिया जाएगा।
संसद में प्रस्ताव पर राजनीतिक प्रतिक्रिया
“एक राष्ट्र, एक चुनाव” पर राजनीति भी गर्मा चुकी है। भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) इस प्रस्ताव का समर्थन कर रही है और इसे अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल किया है। पार्टी का मानना है कि इससे चुनावी प्रक्रिया को बेहतर बनाया जा सकता है और संसाधनों की बचत होगी।
वहीं विपक्षी दल इस प्रस्ताव पर सहमति जताने में हिचकिचा रहे हैं। उनका कहना है कि यह कदम संविधान और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हो सकता है। विपक्षी दलों का यह भी कहना है कि राज्य सरकारों को अपने चुनावी अधिकारों को खोने से बचाने के लिए यह कदम नहीं उठाया जाना चाहिए। वे यह भी आरोप लगाते हैं कि इस प्रस्ताव को विपक्षी दलों को कमजोर करने के लिए पेश किया जा रहा है, खासकर उन राज्यों में जहां भाजपा का सत्ता में आगमन नहीं हुआ है।
संविधान संशोधन के लिए बाधाएं
“एक राष्ट्र, एक चुनाव” विधेयक को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी। इसके लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी, जो कि संसद में विपक्षी दलों के विरोध के कारण चुनौतीपूर्ण हो सकता है। विपक्षी दल इस संशोधन को संविधान के मूल अधिकारों के खिलाफ मानते हैं, क्योंकि यह राज्यों की स्वायत्तता को प्रभावित कर सकता है।
इसके अलावा, इस प्रस्ताव के लागू होने के बाद राज्यों में विधानसभा चुनावों के आयोजन का समय बदल सकता है, जिससे राज्य सरकारों को न केवल चुनावी लेकिन प्रशासनिक रूप से भी कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।
चुनाव आयोग की भूमिका
चुनाव आयोग का भी इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण योगदान है। आयोग ने पहले ही कहा था कि चुनावों के समवर्ती आयोजन से चुनावी प्रक्रिया को सरल और व्यवस्थित बनाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए हर राजनीतिक दल के समर्थन की आवश्यकता होगी। आयोग ने यह भी सुझाव दिया था कि इस प्रक्रिया को लागू करने से पहले विस्तृत योजना तैयार करनी होगी, ताकि इसे सही तरीके से लागू किया जा सके।
“एक राष्ट्र, एक चुनाव” की दिशा में सरकार ने एक अहम कदम उठाया है, लेकिन इस पर संसद में चर्चा और मंजूरी के लिए कई चुनौतियाँ हैं। हालांकि सरकार ने विधेयक का मसौदा संसद के सदस्यों को भेज दिया है, लेकिन इसके लागू होने में अभी समय लग सकता है। इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों के बीच मतभेद भी हैं, जो इसके पास होने में रुकावट डाल सकते हैं। संसद में इसका भविष्य अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन अगर यह पारित हो जाता है तो यह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक अहम कदम होगा।